लेकिन हमें कैम्पस को छोड़ नहीं देना होगा। वहाँ हमें आम मध्यवर्ग और निम्न-मध्यवर्ग के उन तमाम युवाओं को संगठित करना होगा जो किसी तरह कैम्पस में पहुँच पा रहे हैं। इसके साथ ही हमें उच्च और खाते-पीते मध्यवर्ग के उन नौजवानों को भी खोजना होगा जो इस हद तक संवेदनशील और न्यायप्रिय हैं कि अपने वर्ग हितों का त्याग करके अपने सपनों और आकांक्षाओं को इस देश की उस बहुसंख्यक आम मेहनतकश आबादी के सपनों और आकांक्षाओं के साथ जोड़ सकते हैं, जो उनके अस्तित्व की भी हर शर्त को पूरा कर रही है लेकिन जो उनकी तरह अपने बच्चों को कॉलेजों-कैम्पसों में नहीं भेज सकती। हमारा मानना है कि हमारे देश ने ऐसे नौजवानों को पैदा करना अभी बन्द नहीं किया है। और भारत में इन्क़लाब के किसी भी प्रोजेक्ट की तैयारी में आज शुरुआती दौर में ऐसे नौजवानों की बेहद ज़रूरत है जो सक्षम संगठनकर्ता की भूमिका को निभा सकें; जिनके पास इतिहास, समाज और विज्ञान का ज्ञान हो। ऐसे में कैम्पस से आने वाले, अपने वर्ग से अलग होकर मेहनतक़श वर्गों के पक्ष में आकर खड़े होने वाले इन युवाओं की एक ख़ास भूमिका बन जाती है। ऐसे छात्रों को हमें लगातार कैम्पस में जोड़ना होगा और उन्हें लेकर मज़दूर बस्तियों, निम्न-मध्यवर्गीय कालोनियों, कारख़ाना गेटों आदि पर जाना होगा और शहीदे-आज़म भगतसिह के उसी सन्देश पर अमल करना होगा कि आज देश के छात्रों-युवाओं को क्रान्ति के सन्देश को लेकर इस देश की मज़दूर बस्तियों, गाँव की जर्जर झोंपड़ियों, कारख़ानों आदि में जाना होगा। कैम्पस में और उसके बाहर भी, छात्र-युवा आन्दोलन की केन्द्रीय माँग आज एक ही हो सकती है – ‘सबको समान एवं निःशुल्क शिक्षा और सबको रोज़गार।’ इससे कम हम किसी माँग को भी सुधारवादी और उदारवादी मानते हैं। इस मुद्दे पर होने वाला संघर्ष ही हमें आगे की राह दिखायेगा। इस माँग पर छात्र-युवा आन्दोलन ही हमें और बुनियादी मुद्दों तक लेकर जायेगा। आज के समय का सही संघर्ष इसी माँग को लेकर हो सकता है।