नवउदारवादी आर्थिक नीतियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनका प्रभाव
यह बात बेहद गौर करने लायक है कि आज देश की तमाम चुनावी पार्टियाँ उदारीकरण-निजीकरण और वैश्वीकरण की जनविरोधी नीतियों को लागू करने की हिमायती हैं। कांग्रेस, भाजपा समेत क्षेत्रीय पार्टियाँ हों या फ़िर सीपीआई, सीपीएम सरीखी नामधारी मार्क्सवादी पार्टियाँ ही क्यों न हों, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इन नीतियों को बढ़ावा देती रही हैं। विरोध की नौटंकी केवल विपक्ष में बैठकर ही की जाती है। उदाहरण के लिए भाजपा और वामपन्थी पार्टियों की बात की जाये तो स्थिति साफ़ हो जाती है। भाजपा और संघ परिवार से जुड़ा स्वदेशी जागरण मंच एक तरफ़ छोटी पूँजी को रिझाने के मकसद से व अपने पुश्तैनी वोट बैंक को साथ रखने की मजबूरियों के चलते विदेशी निवेश का कड़ा विरोधी रहा है वहीं भाजपा सत्ता में आते ही तुरन्त पलटी मारने में माहिर है।