मणिपुर : जनजातीय संघर्ष का एक साल और फ़ासीवादी भाजपा की भूमिका
मणिपुर : जनजातीय संघर्ष का एक साल और फ़ासीवादी भाजपा की भूमिका अमित यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो…
मणिपुर : जनजातीय संघर्ष का एक साल और फ़ासीवादी भाजपा की भूमिका अमित यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो…
हमें यह समझना चाहिए कि सबके लिए समान और निःशुल्क शिक्षा हासिल करने के लिए जुझारू संघर्ष संगठित करने के लिए विश्वविद्यालय कैम्पसों के अन्दर मौजूद छात्रों के साथ ही, कैम्पस के बाहर मौजूद छात्रों-युवाओं की बड़ी संख्या को भी लामबन्द करना होगा। अर्थात कैम्पस की चौहद्दियों के बाहर के दायरों को भी समेटता हुआ एक व्यापक छात्र-युवा आन्दोलन ही इस सबकी शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित कर सकता है।
वास्तव में योगी सरकार द्वारा लाया गया यह बिल जनता के जनवादी अधिकारों पर एक फ़ासीवादी हमला है। ग़ौरतलब है कि पूँजीवादी व्यवस्था के पैरोकारों द्वारा व्यवस्था जनित संकटों, जैसे ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी आदि के लिए जनता को ही ज़िम्मेदार ठहराये जाने के लिए जनसंख्या में वृद्धि को एक हथकण्डे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही फ़ासीवादी भाजपा और संघ परिवार पिछले लम्बे समय से जनसंख्या में वृद्धि और मुस्लिम आबादी की जनसंख्या बढ़ने के मिथक का प्रचार करके साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति करते रहे हैं।
मोदी और इसके भक्तों के मुँह से ये अक्सर सुनने को मिलता है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें देशहित में बढ़ायी जा रही हैं और आप इस वृद्धि की शिकायत न करें और देश के लिए थोड़ी कुर्बानी करें। ये पैसा वापस देश के “विकास” के लिए ही खर्च होता है , मूलभूत अवरचना का निर्माण हो रहा है जो कि मोदीजी से पहले कभी नहीं हुआ! 1200 वर्षो की गुलामी के बाद अब पहली बार पिछले 4 वर्षो से देश फिर से विश्व विजयी और जगत गुरु बनने की ओर अग्रसर है। यहाँ पहली बार गाँव में बिजली पहुँच रही है, सड़क बन रही है, पुल का निर्माण हो रहा है, आपके बच्चों के लिए शिक्षा का इन्तज़ाम किया जा रहा है, स्वास्थ्य पर खर्च किया जा रहा है।