पेपर लीक के लिए भाजपा सरकार, प्रशासन और शिक्षा माफ़ियाओं का नापाक गठजोड़ ज़िम्मेदार है!!

अविनाश (इलाहाबाद)

फ़ासीवादी मोदी सरकार का शासनकाल छात्रों-युवाओं के लिए किसी भयानक दुःस्वप्न से कम नहीं है। लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाने वाली सरकार अब एनटीए के ज़रिये छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर बुलडोज़र चला रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना सहित देश के हर राज्य में अन्धाधुन्ध पेपर लीक हो रहे हैं और धाँधली हो रही है। हाल में ही एनटीए में बड़ी धाँधली की ख़बर आयी है। एनटीए द्वारा आयोजित यूजीसी नेट, नीट यूजी, नीट पीजी, सीएसआईआर नेट में बड़ी गड़बड़ियाँ हुई हैं। नीट की परीक्षा में हुई धाँधली सम्भवतः आज़ाद भारत के इतिहास में परीक्षाओं में होने वाली सबसे बड़ी धाँधली है। हर तहक़ीक़ात के साथ इस धाँधली की व्यापकता बढ़ती जा रही है। बिहार, हरियाणा और गुजरात के बाद अब झारखण्ड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तक से इस मामले में गिरफ़्तारियाँ और पूछताछ शुरू हो चुकी है। क़ायदे से इतनी बड़ी धाँधली के बाद अब तक नीट परीक्षा को रद्द कर नये सिरे से परीक्षा करवानी चाहिए थी। लेकिन ‘ना खाऊँगा ना खाने दूँगा’ का जुमला उछालने वाली मोदी सरकार देश के छात्रों युवाओं का भविष्य खाने पर आमादा है। मोदी सरकार कभी एनटीए महानिदेशक को बदलकर तो कभी परीक्षा सुधार पैनल बनाकर इस मामले पर टालमटोल, लेटलतीफ़ी और लीपापोती कर असली अपराधियों को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।

नीट में धाँधली : दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है

हर गुज़रते दिन के साथ नीट यूजी की परीक्षा में धाँधली के नये आयाम खुलते जा रहे हैं। धाँधली के बिहार, गुजरात, हरियाणा मॉडल के बाद अब महाराष्ट्र, उड़ीसा समेत देश के अन्य राज्यों से भी धाँधली की ख़बरें आनी शुरू हो गयी हैं। एनटीए के नोटिफ़िकेशन के मुताबिक़ परीक्षा परिणाम 14 जून को आना था लेकिन इस बार एनटीए द्वारा बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से ओएमआर का मूल्यांकन कर समय से 10 दिन पहले ही परिणाम तैयार कर लिया गया। परिणाम ठीक उसी दिन जारी किया गया जब देश की जनता लोकसभा चुनाव के परिणाम जानने में व्यस्त थी। क्या यह महज संयोग था या कोई प्रयोग?
दरअसल, इस धाँधली की ज़मीन बहुत पहले से तैयार हो चुकी थी। नीट परीक्षा के एक दिन पहले ही पटना समेत कई शहरों में पेपर लीक की बात सामने आनी शुरू हो गयी थी, कई जगहों पर इसके सबूत भी पाये गये थे। इस मामले में पटना पुलिस द्वारा अब तक 18 लोगों पर एफ़आईआर दर्ज कर गिरफ़्तारी की गयी है। पटना में एक धाँधलेबाज़ की निशानदेही पर जले हुए प्रश्नपत्र मिले और पूछताछ में यह बात सामने आयी कि 30-32 लाख रुपये के बदले छात्रों को परीक्षा के एक दिन पहले ही प्रश्नों के उत्तर रटवाये गये थे। आरोपी के पास से 4 फ़र्ज़ी प्रवेश पत्र भी बरामद हुए। लेकिन इन सब के बावजूद एनटीए बिहार पुलिस की जाँच में सहयोग करने की जगह आनाकानी करती रही। परिणाम आने पर देशभर में एनटीए के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया। जिसके बाद ही बिहार पुलिस को प्रश्नपत्र मुहैया कराया गया। प्रश्नपत्रों के सीरियल कोड के मिलान से पता चला कि जले हुए प्रश्नपत्र झारखण्ड के हज़ारीबाग स्थित ओवासिस स्कूल के हैं। अब सवाल यह है कि एनटीए में वह कौन है (और किसकी शह पर) जो बिहार पुलिस की जाँच में मदद नहीं कर रहा था? इसी तरह गुजरात के गोधरा स्थित जय जलाराम केन्द्र पर परीक्षा देने वाले सभी 27 छात्रों से पुरुषोत्तम राय और तुषार भट्ट नाम के दो व्यक्तियों ने 27-27 लाख रुपये में डील किया था। तुषार भट्ट जय जलाराम विद्यालय केन्द्र का नीट अधीक्षक भी था जिसकी गाड़ी से परीक्षा के दिन 7 लाख रुपये कैश बरामद हुआ था। पुरुषोत्तम राय के पास से 2.3 करोड़ कैश और 8 ब्लैंक चेक बरामद हुए थे। हरियाणा के झज्जर में कई परीक्षा केन्द्रों में एमएनओपी व पीक्यूआरएस दोनों सेट्स के प्रश्नपत्र छात्रों को बाँटे गये। 15-20 मिनट बाद छात्रों से एक-एक प्रश्नपत्र वापस लिया गया। मुम्बई के मानखुर्द में छात्रों को एक घण्टे बाद ओएमआर सीट दी गयी। इस तरह की घटनाएँ कई परीक्षा केन्द्रों पर हुईं। इन सब के बावजूद एनटीए ने अपने वेबसाइट पर प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिये घोषणा की कि देश के सभी परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षा समय से और सुचारु रूप से सम्पन्न हो गयी है। जिसके बाद मोदी सरकार के शिक्षा मन्त्री धर्मेन्द्र प्रधान एनटीए की तारीफ़ों के पुल बाँधते नहीं थक रहे थे। इस पूरे घटनाक्रम से यह बात स्वतः स्पष्ट है कि यह केवल पेपर लीक का मामला नहीं, बल्कि एनटीए और सरकारी लापरवाही (मिलीभगत) से परीक्षा में कई तरह की धाँधली की सचेत कोशिश है।
परीक्षा परिणाम के बाद धाँधली का सन्देह और भी पुख़्ता हो गया जब 67 छात्रों के 720/720 अंक आयें जिसमें से 6 छात्र हरियाणा के झज्जर के एक ही परीक्षा केन्द्र से हैं। यह वही केन्द्र है जहाँ से पर्चा लीक हुआ था। इसी केन्द्र से दो छात्र ऐसे हैं जिनकी दूसरी रैंक है। 650 से अधिक अंक पाने वाले छात्रों की संख्या 30000 से ज़्यादा है। नीट परीक्षा के इतिहास में पहली बार छात्रों को 718, 719 अंक भी मिले जो कि तकनीकी तौर पर असम्भव है। इसके बाद जब एनटीए की कार्यपद्धति पर सवाल उठने लगे, तब एनटीए की ओर से ऊटपटाँग स्पष्टीकरण दिये जा रहे हैं। एनटीए अब 13 जून, 2016 को जारी सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का हवाला देकर समय की आपूर्ति के लिए नॉर्मलाइजेशन की पद्धति के आधार पर परिणाम घोषित करने की बात कर रहा है। एनटीए के मुताबिक़ इस नॉर्मलाइजेशन पद्धति के आधार पर 1563 अभ्यर्थियों को ग्रेस मार्क (कृपांक) मिला है जिसकी वजह से ही कुछ छात्रों को 718, 719 अंक भी मिले है। अब सवाल यह है कि एनटीए के मुताबिक़ हर जगह परीक्षा समय से और सुचारू रूप से सम्पन्न हो गयी थी तो नॉर्मलाइजेशन क्यों किया गया? नीट परीक्षा के नोटिफ़िकेशन में नॉर्मलाइजेशन का ज़िक्र तक नहीं है और न ही परीक्षा के दौरान हुई लापरवाही के बाद नॉर्मलाइजेशन की बात की गयी। ऐसे में एनटीए द्वारा नॉर्मलाइजेशन किस आधार पर किया गया? और कृपांक का आधार क्या था? कृपांक केवल 1563 छात्रों को ही क्यों मिला? इन सब मसलों पर एनटीए ने मौन व्रत धारण कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब इन 1563 छात्रों की दोबारा परीक्षा करायी गयी तो इनमें से 750 से ज़्यादा छात्र परीक्षा ही देने नहीं आये। 720/720 पाने वाले 67 छात्रों में से ज़्यादातर छात्रों को कृपांक मिला था। इनमें से भी ज़्यादातर उम्मीदवार दोबारा परीक्षा देने नहीं आये। क्या यह तथ्य ही अपने आप में सन्देह पैदा करने वाला नहीं है?
यह अनायास नहीं है बल्कि सचेत धाँधली का परिणाम है। धाँधली इतने बड़े पैमाने पर हुई है कि एनटीए और मोदी सरकार का पुलिसिया तन्त्र लाठी के ज़ोर पर भी इसे दबाने में असमर्थ साबित हो रहा है। यह मामला इतना बड़ा और गम्भीर है कि मोदी सरकार के चरण चुम्बन में लगी आज की गोदी मीडिया भी परीक्षाओं में हो रही धाँधली को चाह कर भी पूरी तरह से ब्लैक आउट नहीं कर पा रही है और आंशिक ही सही लेकिन एक हद तक सच्चाई दिखाने के लिए मजबूर है।
अपनी लाज बचाने के लिए शुरू में तो एनटीए और ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ का सपना बेचने वाली मोदी सरकार ने किसी भी तरह की धाँधली से इनकार कर दिया लेकिन जब मामले ने तूल पकड़ लिया तब जाकर एनटीए द्वारा एक जाँच कमेटी बनायी गयी। यहाँ मज़ेदार बात यह है कि इस कमेटी के मुखिया ख़ुद तत्कालीन एनटीए प्रमुख सुबोध कुमार को बनाया गया। देशभर में छात्रों के आक्रोश और प्रदर्शन के तमाम पुलिसिया दमन के बावजूद जनाक्रोश से बौखलाये हुक्मरानों ने अन्ततः इस मामले की जाँच को सीबीआई को सौंप दिया है और एनटीए प्रमुख सुबोध कुमार को पद से हटा कर प्रदीप सिंह खरोला को एनटीए का महानिदेशक बनाया गया है।
अभी नीट यूजी का मसला चल ही रहा था इसी बीच संसाधनों का रोना रोते हुए एनटीए ने नीट पीजी की परीक्षा को स्थगित कर दिया। यह केवल मेडिकल की तैयारी करने वाले छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ का मामला नहीं है बल्कि देश की 140 करोड़ जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाली बात है।

एनटीए यानी नॉन ट्रस्टेबल एजेंसी

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की शुरुआत 2018 में हुई। हालाँकि केन्द्रीय स्तर पर ली जाने वाली परीक्षा के लिए इस प्रकार के ढाँचे की बात सबसे पहले 1992 में ‘प्रोग्राम ऑफ़ एक्शन’ में की गयी थी। 2010 में इसके बनने की प्रक्रिया आधिकारिक रूप से शुरू हुई। इस दौरान आईआईटी के डायरेक्टरों की एक कमेटी चुनी गयी, जिसमें एनटीए को बनाने का प्रस्ताव रखा गया। वर्ष 2013 में ‘एमएचआरडी’ ने सात सदस्यों की एक ‘टास्क फ़ोर्स’ बनायी, जिसकी मुख्य ज़िम्मेदारी यह थी कि एनटीए की परियोजना को आगे लेकर जाने के लिए इसकी एक ठोस योजना तैयार करे। वर्ष 2017 में तत्कालीन वित्त मन्त्री ने अपने वक्तव्य में एनटीए की घोषणा की और विनीत जोशी (जो कि अभी मणिपुर के मुख्य सचिव हैं और जिनकी संघ परिवार और भाजपा से नज़दीकी जगज़ाहिर है) को इसका महानिदेशक चुना गया। 7 जुलाई, 2018 को तत्कालीन शिक्षा मन्त्री प्रकाश जावड़ेकर ने आधिकारिक रूप से यह घोषणा की कि अब से विभिन्न परीक्षाएँ एनटीए के मातहत ली जायेंगी।
ग़ौरतलब है कि 2018 में एनटीए के आधिकारिक रूप से कार्यरत होने के तुरन्त बाद से ही परीक्षाओं पर सन्देह उठने शुरू हो गये थे। वर्ष 2020 में नीट (यूजी) की परीक्षा के नतीजे में मध्य प्रदेश की एक छात्रा विधि सूर्यवंशी के केवल 6 अंक आये, जिसके बाद वह ख़ुदकुशी करने पर मजबूर हो गयी। बाद में इसपर जब सवाल उठने शुरू हुए तो यह पता चला कि उसने 590 अंक हासिल किये थे। उसी साल मृदुल रावत नाम के एक छात्र को नीट (यूजी) की परीक्षा में 320 अंक आये, लेकिन इसपर सवाल खड़ा करने पर यह पता चला कि उसने अनुसूचित जनजातीय श्रेणी में पूरे भारत में टॉप किया था। बाद में एनटीए ने अपने ग़लती मानने के बजाय उल्टा इस पूरे मसले पर ही लीपापोती करने की कोशिश की। वर्ष 2022 में जेईई (मेन) के जनवरी व अप्रैल दोनों महीनों की परीक्षाओं में तकनीकी ख़राबी की वजह से कई परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षाएँ काफ़ी देरी से शुरू हुईं। इतना ही नहीं कई छात्रों के रेस्पॉन्स शीट में भी काफ़ी गड़बड़ी देखने को मिली थी। उसके बाद अब नीट, नेट, सीएसआईआर व अन्य परीक्षाओं में इतने बड़े पैमाने पर हुई धाँधली के बाद एनटीए की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होना लाज़िमी है। ऐसा नहीं है कि इससे पहले परीक्षाओं में धाँधली नहीं हुई थी। इससे पहले तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्चा लीक समेत परीक्षाओं के रद्द होने की कई ख़बरें आ चुकी हैं। लेकिन यूजीसी नेट, नीट जैसी परीक्षाओं का पेपर लीक या इसमें इस स्तर पर तकनीकी गड़बड़ी पहले कभी नहीं हुई थी। बाक़ी परीक्षाओं की धाँधली को रोकने के बजाय मोदी सरकार के कार्यकाल में उन परीक्षाओं में भी गड़बड़ी शुरू हो गयी, जिनमें गड़बड़ी की ख़बरें पहले कभी नहीं आयी थीं। यह भी सोचने वाली बात है कि एनटीए के निर्माण से अब तक इसके जितने भी महानिदेशक रहे हैं सबका सम्बन्ध या तो संघ परिवार और भाजपा से रहा है या इनसे नज़दीकी रही है। एनटीए के चेयरमैन प्रदीप जोशी आरएसएस के बगलबच्चा संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े हुए हैं। प्रदीप जोशी का नाम मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग, छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग में हुई धाँधलियों में आता रहा है इसके बावजूद केवल संघ से जुड़ाव की वजह से मोदी सरकार ने इन्हें यह महत्वपूर्ण पद सौंप रखा हैं जहाँ से यह देश के जाने माने अकादमिक केन्द्रों में संघियों की भर्ती कर रहा है। यानी देश की भर्ती प्रक्रिया और फ़ेलोशिप की परीक्षाओं पर अप्रत्यक्षतः संघ परिवार और भाजपा का नियन्त्रण है। यह अनायास नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों से विभागों और अकादमिक जगत में संघियों की घुसपैठ पहले की तुलना में कई गुना ज़्यादा हो गयी है। पिछले 10 सालों में भाजपा द्वारा तमाम शैक्षणिक संस्थानों के भीतर घुसपैठ से हम सब भली-भाँति वाक़िफ़ हैं। साथ ही हमें यह भी पता है कि विचारधारा के आधार पर हुई तत्कालीन भर्तियों में कितने योग्य लोग ऊँचे पदों पर बैठे हैं! इसका ही नतीजा है कि आज तमाम शैक्षणिक और ग़ैर-शैक्षणिक संस्थानों में फ़ासीवादी हस्तक्षेप के बाद वे फिसड्डी साबित हुए हैं और एनटीए इसका प्रातिनिधिक उदाहरण हैं। आज एनटीए अपनी विश्वनीयता पूरी तरह से खो चुका है। ऐसे में देश की तमाम ज़रूरी परीक्षाओं को एनटीए जैसी अविश्वसनीय संस्था से कराना छात्रों-नौजवानों के भविष्य के साथ जानबूझ कर किया जाने वाला मज़ाक होगा, जिस पर आज फ़ासीवादी भाजपा आमादा है। इसलिए आज के दौर में एनटीए को रद्द कर परीक्षा आयोजित करने की पुरानी प्रणाली बहाल कराने की लड़ाई सभी इंसाफ़पसन्द और जनवादी छात्रों और नागरिकों की एक तात्कालिक महत्वपूर्ण लड़ाई बन गयी है। एनटीए जैसी संस्था को रद्द करने की माँग आज परीक्षाओं में पारदर्शिता की महत्वपूर्ण माँग का हिस्सा बन चुकी है।

परीक्षाओं में धाँधली अब अपवाद नहीं नियम बन चुका है

परीक्षाओं में धाँधली, पर्चा लीक अचानक से होने वाली कोई घटना नहीं है बल्कि मामला काफ़ी बड़ा और गहरा है। पिछले सात वर्षों में 80 से ज़्यादा पर्चे लीक हो चुके हैं, दर्ज़नों परीक्षाओं को टाला जा चुका है और दर्ज़नों मामलों में छात्र हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ पिछले सात सालों में पर्चा लीक और परीक्षाओं में धाँधली की वजह से 1 करोड़ 80 लाख से ज़्यादा छात्र प्रभावित हुए हैं। लाखों छात्र अवसाद और निराशा में आत्महत्या तक के क़दम उठा रहे हैं। इतने बड़े पैमाने पर हो रही धाँधली में अब तक मोदी सरकार और इसकी तमाम एजेंसियों ने जाँच के नाम पर केवल लीपापोती ही की है। हर बार ऐसी घटनाओं के बाद बयानबाज़ी और लफ़्फ़ाज़ी का दौर शुरू होता है। कुछ छोटे-मोटे कर्मचारियों, सॉल्वरों, कुछ छात्रों को इसका ज़िम्मेदार ठहराकर पूरे मामले को ठिकाने लगा दिया जाता है और बहुत सफ़ाई के साथ असली अपराधियों को बचा लिया जाता है। यही वजह है कि मोदी सरकार के शासनकाल में अब तक इस मामले में न तो कोई बड़ी गिरफ़्तारी हुई है और न ही कोई कार्रवाई हुई है।
भविष्य की अनिश्चितता के कारण छात्र-युवा और अभिभावक हर क़ीमत पर अपने भविष्य को सुरक्षित कर लेना चाहते हैं। इसी बढ़ती असुरक्षा का फ़ायदा शिक्षा माफ़िया उठाते हैं और शासन में अपनी पकड़ का इस्तेमाल कर छात्रों के भविष्य का सौदा कर करोड़ों रुपये बना रहे हैं। पर्चा लीक या धाँधली आम छात्रों के बस की बात नहीं है। सच्चाई यह है कि बिना नेताओं, अधिकारियों, शिक्षा माफ़ियाओं की मिलीभगत के इस तरह का कोई तन्त्र पनप ही नहीं सकता। एनटीए द्वारा परीक्षा कराने के लिए, पेपर छापने से लेकर परीक्षा के सेण्टर तक के लिए कई निजी कम्पनियों को ठेका दिया जाता है। अक्सर ये कम्पनियाँ शिक्षा माफ़ियाओं, नौकरशाहों और नेताओं की शह पर ही पेपर लीक करने का काम करती हैं। अब इसके कई प्रमाण भी हमारे सामने हैं। नीट धाँधली के पटना मॉडल में अनुराग यादव नामक एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी हुई है। यह व्यक्ति परीक्षा से एक रात पहले राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के गेस्टहाउस में किसी मन्त्री जी की सिफ़ारिश पर ठहरा था। जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि इस धाँधली में बिहार की जदयू-भाजपा नीत सरकार का कोई मन्त्री भी शामिल है। जिसकी वजह से लगातार जाँच-पड़ताल में सरकारी बाधा भी पैदा की जा रही है। उत्तर प्रदेश पुलिस और आरओ-एआरओ परीक्षा प्रश्नपत्र प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ। 2017 में हुए सीबीएसई पेपर लीक में कोचिंग संचालक और एबीवीपी के संयोजक सहित 15 लोग शामिल थे। व्यापम घोटाले का ओपन सीक्रेट शायद ही किसी से छुपा होगा जब मध्य प्रदेश में तत्कालीन भाजपा की सरकार और शिवराज सिंह चौहान के शासनकाल में सभी गवाह सन्देहपूर्ण परिस्थितियों में मारे गये। यह बात अब दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि परीक्षाओं में धाँधली सरकार की मिलीभगत के बिना सम्भव नहीं है।
तो अब सवाल यही उठता है कि क्या हम इस फ़ासीवादी निज़ाम को अपने भविष्य के साथ खेलने देंगे? क्या हम यह मानकर बैठ जायेंगे कि इसकी वजह से जिन छात्रों की जानें गयी, उसमें सरकार को कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी? क्या हज़ारों छात्रों को अवसाद के अन्धेरे में जाता देख हमारा ख़ून नहीं खौलता? अगर हाँ, तो आइये इस फ़ासीवादी निज़ाम को छात्रों की ताक़त से एक बार फिर परिचित कराते हैं। आज छात्रों-युवाओं को इन माँगों पर देशव्यापी आन्दोलन खड़ा करने की ज़रूरत है:

1. एनटीए को तत्काल रद्द किया जाये।
2. शिक्षा मन्त्री धमेन्द्र प्रधान इस्तीफ़ा दें।
3. पेपर लीक मामले की तत्काल जाँच करायी जाये, और साथ ही हर तरह के भ्रष्टाचार पर रोक लगायी जाये।
4. पर्चों की छपाई निजी प्रेसों की जगह सरकारी प्रेसों के माध्यम से करवायी जाये।
5. जिन परीक्षाओं में धाँधली हुई है, उससे प्रभावित छात्रों के नुक़सान का मूल्यांकन कर उचित मुआवज़ा दिया जाये।

(मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान)

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