Category Archives: मज़दूर आन्‍दोलन

मारुति सुजुकी के मज़दूरों का संघर्ष और भारत के ‘‘नव-दार्शनिकों” के “अति-वामपन्थी” भ्रम और फन्तासियाँ

मारुति सुजुकी के मज़दूरों के संघर्ष के इन सकारात्मक नतीजों के बावजूद, इसे एक रैडिकल और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से समझना ज़रूरी है। मारुति सुजुकी मज़दूरों के संघर्ष का एक आलोचनात्मक मूल्यांकन आज इसलिए भी और ज़रूरी, बल्कि निहायत ज़रूरी और अत्यावश्यक कार्य हो जाता है, क्योंकि इस समय मज़दूर वर्ग की स्वतःस्फूर्तता का अनालोचनात्मक उत्सव मनाने की प्रवृत्तियाँ देखी जा रही है, और यह प्रवृत्ति क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन के कुछ हिस्सों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के राजनीतिक नौदौलतियों के बीच भी खास तौर पर प्रचलित है। जाहिर है कि कोई भी क्रान्तिकारी समूह या बुद्धिजीवी मज़दूर वर्ग के स्वतःस्फूत उभारों का स्वागत करेगा। यद्यपि, ऐसे किसी भी समूह या व्यक्ति की असली जिम्मेदारी ठीक इसी बिन्दु से शुरू होती है, और वह जिम्मेदारी है इस उभार या आन्दोलन के साथ एक आलोचनात्मक अन्तर्क्रिया का सम्बन्ध स्थापित करना, न कि मज़दूर वर्ग की स्वतःस्फूर्तता को ही उत्सव मनाने या अन्धभक्ति करने की विषयवस्तु बना देना।

श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाफ़ दिल्ली मेट्रो मज़दूरों ने किया प्रदर्शन

चमचमाती मेट्रो रेल में काम करने वाले हज़ारों मज़दूरों (सफाईकर्मी, गार्ड, टॉम ऑपरेटर, निर्माण मज़दूर) के हालात की चर्चा की जाए तो साफ़ हो जाता है कि डी.एम.आर.सी. प्रशासन सिर्फ ठेका कम्पनियों के लिए “आदर्श” और “ईमानदार” है। क्योंकि डी.एम.आर.सी., ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के खुले उल्लंघन की अनदेखी कर रही है जिसका ज्वलन्त उदाहरण जे.एम.डी. कंसल्टेण्ट्स ठेका कम्पनी है जिसमें लगभग 300 टॉम आपरेटर मेट्रो स्टेशन पर कार्यरत हैं, ठेका कम्पनी द्वारा टॉम आपॅरेटरों का भयंकर शोषण किया जा रहा है। उन्होंने आगे बताया कि नियुक्ति के समय तमाम ठेका कम्पनियाँ 25,000 रुपये की सिक्योरिटी राशि जमा करती है। यही नहीं, नियुक्ति के समय ठेका मज़दूरों से नियुक्ति पत्र के साथ बख़ार्स्तगी पत्र पर भी हस्ताक्षर करा लिये जाते हैं। और यह नियुक्ति भी सिर्फ तीन महीने के लिए होती है, ऐसा नहीं है कि श्रम-कानूनों के इस उल्लंघन के बारे में डी.एम.आर.सी. प्रशासन नहीं जानता। लेकिन प्रधान नियोक्ता होने के बावजूद डी.एम.आर.सी. प्रशासन मूक बना रहता है

शिकागो के शहीद मज़दूर नेता

हमारी मौत दीवार पर लिखी ऐसी इबारत बन जायेगी जो नफरत, बैर, ढोंग-पाखण्ड, अदालत के हाथों होने वाली हत्या, अत्याचार और इन्सान के हाथों इन्सान की ग़ुलामी के अन्त की भविष्यवाणी करेगी। दुनियाभर के दबे-कुचले लोग अपनी क़ानूनी बेड़ियों में कसमसा रहे हैं। विराट मज़दूर वर्ग जाग रहा है। गहरी नींद से जागी हुई जनता अपनी जंज़ीरों को इस तरह तोड़ फेंकेगी जैसे तूफान में नरकुल टूट जाते हैं।

श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के खिलाफ दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्व में मेट्रो रेल ठेका कर्मचारियों के संघर्ष का नया दौर शुरू

11 जुलाई को दिल्ली मेट्रो रेल कर्मचारियों ने अपने आन्दोलन के नये दौर की शुरुआत करते हुए नई दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन किया और मेट्रो के निदेशक ई. श्रीधरन का पुतला दहन किया। पिछले करीब ढाई वर्षों से दिल्ली मेट्रो रेल के ठेका कर्मचारियों की यूनियन ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ मेट्रो रेल के कर्मचारियों को बुनियादी श्रम अधिकार भी नहीं मिलने के खिलाफ़ संघर्ष कर रही है। इस संघर्ष की शुरुआत 2008 में मेट्रो रेल स्टेशनों पर काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारियों के आन्दोलन से हुई थी।

गोरखपुर में आन्दोलनरत मज़दूरों पर मालिकों का क़ातिलाना हमला

गोरखपुर जैसे शहर के लिए, जो देश के बडे़ औद्योगिक केन्द्रो में नहीं आता, और राजनीतिक सरगमियों के लिहाज़ से एक पिछड़ा हुआ शहर माना जाता है, यह एक बड़ी घटना थी कि वहाँ से करीब 2000 मज़दूर इकट्ठा होकर देश की राजधानी पहुंच जायें। इस इलाके के फैक्टरी मालिकों के शब्दों में कहें तो इससे मज़दूरों का ‘’मन बढ़ जायेगा”। इसी डर के चलते फैक्टरी मालिक विशेषकर अंकुर उद्योग लिमिटेड और वी एन डायर्स लिमिटेड, स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर लगातार मज़दूरों को इस देशव्यापी प्रदर्शन में शामिल होने से रोकने का प्रयास कर रहे थे। इन सब कोशिशों को धता बताते हुए जब मज़दूर बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर दिल्ली चले गये तो मालिकों ने उन्हें ‘सबक सिखाने’ का तय किया। फलस्वरूप 3 मई, 2011 को अंकुर उद्योग लिमिटेड से करीब 18 मज़दूरों को बिना कोई कारण बताये फैक्टरी से निकालने का नोटिस थमा दिया गया। इस पर मज़दूर फैक्टरी के बाहर विरोध ज़ाहिर करने के लिए इकट्ठा होने लगे। मालिकों को यह पहले से ही पता था, और इसीलिए प्रदीप सिंह नामक एक हिस्ट्रीशीटर को तीन अन्य गुण्डों के साथ मौका-ए-वारदात पर बुला रखा था। धरना-प्रदर्शन और नारेबाज़ी शुरू होते ही इन गुण्डो ने फैक्टरी की छत पर चढ़कर निहत्थे मज़दूरों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें 19 मज़दूर घायल हो गये।

दिल्ली मेट्रो रेल के कामगारों का अपनी कानूनी माँगों के लिए संघर्ष

हम सभी मेट्रो रेल को दिल्ली की शान समझते है। मीडिया से लेकर सरकार तक मेट्रो को दिल्ली की शान बताने का कोई मौका नहीं चूकते। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से लेकर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह तक मेट्रो के कसीदे पढ़ते हुए, इसके कार्यकुशल प्रंबधन को उदाहरण के रूप में पेश करते हैं, तो दूसरी तरफ़ जगमगाती, चमकदार, उन्नत तक्नोलॉजी से लैस मेट्रो को देखकर कोई भी दिल्लीवासी फ़ूला नहीं समाता। लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि इस उन्नत, आरामदेह और विश्व-स्तरीय परिवहन सेवा के निर्माण से लेकर उसे चलाने और जगमगाहट को कायम रखने वाले मजदूरों के जीवन में कैसा अन्धकार व्याप्त है। चाहे वे जान–जोखिम में डालकर निर्माण कार्य में दिनों-रात खटने वाले मजदूर हो, या स्टेशनों पर काम करने वाले गार्ड या सफ़ाईकर्मी, किसी को भी उनका जायज़ हक़ और सुविधाएँ नहीं मिलती।

मज़दूरों द्वारा छात्रों को एक खुला खत

अकेले मत रहो। हमें बुलाओ, अधिक से अधिक लोगों को बुलाओ। हमें नहीं पता कि यह तुम कैसे कर सकते हो, तुम राह ढूंढ लोगे। तुम ने पहले ही अपने विद्यालयों पर कब्जा कर लिया है और तुमने हमें बताया है कि इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि तुम्हें तुम्हारे स्कूल अच्छे नहीं लगते। बढ़िया है, चूँकि तुमने उन पर कब्जे कर ही लिये हैं तो उनकी भूमिका बदलो। अपने कब्ज़ों को अन्य लोगों के साथ साझा करो। अपने विद्यालयों को हमारे नये सम्बन्धों के निवास की पहली इमारतें बना दो। उनका सबसे शक्तिशाली हथियार हमें बाँटना है। जो कि उनके थानों पर हमले करने से तुम नहीं डरते क्योंकि तुम एकजुट होते हो, वैसे ही हम सब के जीवन को मिल कर बदलने के लिये हमें बुलाने से भय मत खाओ।