मारुति सुजुकी के मज़दूरों का संघर्ष और भारत के ‘‘नव-दार्शनिकों” के “अति-वामपन्थी” भ्रम और फन्तासियाँ
मारुति सुजुकी के मज़दूरों के संघर्ष के इन सकारात्मक नतीजों के बावजूद, इसे एक रैडिकल और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से समझना ज़रूरी है। मारुति सुजुकी मज़दूरों के संघर्ष का एक आलोचनात्मक मूल्यांकन आज इसलिए भी और ज़रूरी, बल्कि निहायत ज़रूरी और अत्यावश्यक कार्य हो जाता है, क्योंकि इस समय मज़दूर वर्ग की स्वतःस्फूर्तता का अनालोचनात्मक उत्सव मनाने की प्रवृत्तियाँ देखी जा रही है, और यह प्रवृत्ति क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन के कुछ हिस्सों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के राजनीतिक नौदौलतियों के बीच भी खास तौर पर प्रचलित है। जाहिर है कि कोई भी क्रान्तिकारी समूह या बुद्धिजीवी मज़दूर वर्ग के स्वतःस्फूत उभारों का स्वागत करेगा। यद्यपि, ऐसे किसी भी समूह या व्यक्ति की असली जिम्मेदारी ठीक इसी बिन्दु से शुरू होती है, और वह जिम्मेदारी है इस उभार या आन्दोलन के साथ एक आलोचनात्मक अन्तर्क्रिया का सम्बन्ध स्थापित करना, न कि मज़दूर वर्ग की स्वतःस्फूर्तता को ही उत्सव मनाने या अन्धभक्ति करने की विषयवस्तु बना देना।