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गोरखपुर में आन्दोलनरत मज़दूरों पर मालिकों का क़ातिलाना हमला

गोरखपुर जैसे शहर के लिए, जो देश के बडे़ औद्योगिक केन्द्रो में नहीं आता, और राजनीतिक सरगमियों के लिहाज़ से एक पिछड़ा हुआ शहर माना जाता है, यह एक बड़ी घटना थी कि वहाँ से करीब 2000 मज़दूर इकट्ठा होकर देश की राजधानी पहुंच जायें। इस इलाके के फैक्टरी मालिकों के शब्दों में कहें तो इससे मज़दूरों का ‘’मन बढ़ जायेगा”। इसी डर के चलते फैक्टरी मालिक विशेषकर अंकुर उद्योग लिमिटेड और वी एन डायर्स लिमिटेड, स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर लगातार मज़दूरों को इस देशव्यापी प्रदर्शन में शामिल होने से रोकने का प्रयास कर रहे थे। इन सब कोशिशों को धता बताते हुए जब मज़दूर बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर दिल्ली चले गये तो मालिकों ने उन्हें ‘सबक सिखाने’ का तय किया। फलस्वरूप 3 मई, 2011 को अंकुर उद्योग लिमिटेड से करीब 18 मज़दूरों को बिना कोई कारण बताये फैक्टरी से निकालने का नोटिस थमा दिया गया। इस पर मज़दूर फैक्टरी के बाहर विरोध ज़ाहिर करने के लिए इकट्ठा होने लगे। मालिकों को यह पहले से ही पता था, और इसीलिए प्रदीप सिंह नामक एक हिस्ट्रीशीटर को तीन अन्य गुण्डों के साथ मौका-ए-वारदात पर बुला रखा था। धरना-प्रदर्शन और नारेबाज़ी शुरू होते ही इन गुण्डो ने फैक्टरी की छत पर चढ़कर निहत्थे मज़दूरों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें 19 मज़दूर घायल हो गये।

बिस्मिल के शहादत दिवस 19 दिसम्बर को क्रान्तिकारी जन-एकजुटता दिवस के रुप में मनाया गया

एक तरफ छात्र-नौजवान अपने नारों, पर्चों से क्रान्तिकारी विरासत को लोगों के दिलों में फिर से ज़िन्दा करने की कोशिश कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ ऐसे तमाम फ़ासीवादी व बुर्जुआ संगठन ‘बिस्मिल’ की क्रान्तिकारी व साम्प्रदायिक विरोधी विरासत को ग़लत तरीक़े से पेश करके कलंकित करने का काम कर रहे थे। मज़दूरों का नाम लेकर उनकी पीठ में छुरा भोंकने वाले कुछ संशोधनवादी “मौन जुलूस” (मुर्दा जुलूस) निकालकर यह बता रहे थे कि आज के दौर में उनकी राजनीति किसका पक्ष ले रही है? ज़ाहिर सी बात है कि मौन रहने से यह वर्तमान व्यवस्था का ही पक्ष लेगी।

जनचेतना की वार्षिक पुस्तक प्रदर्शनी

विगत वर्षों के मुकाबले इस वर्ष की पुस्तक प्रदर्शनी में नौजवान पाठकों की संख्या बहुत ज़्यादा थी। किशोरवय के लड़के-लड़कियाँ तक भगतसिंह और मार्क्सवादी साहित्य की खोज में प्रदर्शनी स्थल तक आये। सैकड़ों पाठकों ने पुस्तक प्रदर्शनी के बारे में लिखित प्रतिक्रिया दर्ज की। अनन्या ने लिखा – “ख़ूबसूरत कविता-पोस्टरों ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं कुछ किताबें ख़रीदूँ और पढूँ।” ज़्यादातर पाठकों ने बाज़ार में प्रगतिशील-क्रान्तिकारी साहित्य उपलब्ध न होने पर क्षोभ प्रकट करते हुए जनचेतना के प्रयासों की प्रासंगिकता और अनिवार्यता पर ख़ासा ज़ोर देते हुए टिप्पणियाँ दर्ज कीं।

शहीदे-आज़म भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू के 78वें शहादत दिवस पर नौभास व दिशा का दो-दिवसीय कार्यक्रम

भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव के 78वें शहादत दिवस (23 मार्च, 2009) के अवसर पर नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने दिल्ली के दिलशाद गार्डेन और करावलनगर इलाकों में व्यापक पैमाने पर कार्यक्रमों का आयोजन किया। 22 मार्च की शाम को जी.टी.बी. अस्पताल के कैम्पस के भीतर एक पोस्टर प्रदर्शनी, म्यूज़िक कंसर्ट और पर्चा वितरण का आयोजन किया गया। इसमें भगतसिंह और साथी क्रान्तिकारियों के जीवन पर एक विशाल पोस्टर प्रदर्शनी का अयोजन किया गया। इसके अलावा घर-घर जाकर लोगों को प्रदर्शनी देखने के लिए आमन्त्रित किया गया। लोगों की भीड़ आने पर म्यूज़िक कंसर्ट का भी आयोजन किया गया जिसमें क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की गई।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति की छात्र–विरोधी काली करतूतें

गोरखपुर विश्वविद्यालय पिछले कई वर्षों से अराजकताओं और अव्यवस्थाओं तथा भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है । शिक्षा का स्तर गर्त में चला गया है । हर छह महीने साल भर पर कुलपति बदलते रहते हैं । इन्हीं अव्यवस्थाओं के बीच इस सत्र में स्थायी कुलपति एन.एस. गजभिए की नियुक्ति हुई जो आई.आई.टी. कानपुर से आये हैं । जिससे छात्रों, कर्मचारियों तथा शिक्षकों को उम्मीद बँधी थी कि विश्वविद्यालय की तस्वीर बदलेगी । और कुलपति ने भी कहा कि हम विश्वविद्यालय को नयी ऊँचाई और पहचान दिलायेंगे । लेकिन सभी की आशाओं पर कुठाराघात करते हुए दो ही महीने के अन्दर कुलपति के एकतरफा और निरंकुश निर्णयों की बाढ़ सी आ गयी । नये सत्र की शुरुआत के पहले ही छात्रावासों को मरम्मत के नाम पर जबरिया खाली करा लिया गया । जिसमें न ही किसी छात्र से और न किसी कर्मचारी या छात्रावास प्रतिनिधियों से राय–मशविरा किये बिना एकतरफा तरीक़े से छात्र आन्दोलन के बावजूद पुलिस और पीएसी के बल पर छात्रावास खाली कराये गये । अब छात्रावास में मेस भी अनिवार्य कर दिया गया है । पूर्वांचल में ग़रीब तथा आम घरों से आने वाले जो छात्र पहले 500–600 रुपये में अपना खर्च चला लेते थे, अब एक हज़ार रुपया मासिक दे कर सड़ा–गला तथा अधपका खाना खायेंगे । यह सब करते वक़्त छात्र हित से ज़्यादा ठेकेदार हित हावी था

स्मृति संकल्प यात्रा के तहत देश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यक्रम जारी

23 मार्च, 2005 को भगत सिंह और उनके साथियों के 75 शहादत वर्ष के आरम्भ पर शुरू की गई स्मृति संकल्प यात्रा के तहत देश के विभिन्न क्रान्तिकारी संगठन पिछले दो वर्षों से भगतसिंह के उस सन्देश पर अमल कर रहे हैं जो उन्होंने जेल की कालकोठरी से नौजवानों को दिया था; कि छात्रों और नौजवानों को क्रान्ति की अलख लेकर गाँव-गाँव, कारखाना-कारखाना, शहर-शहर, गन्दी झोपड़ियों तक जाना होगा। इस अभियान के दौरान इन जनसंगठनों ने जो भी जनकार्रवाइयाँ की हम उसका एक संक्षिप्त ब्यौरा देते रहे हैं और इस बार भी यहाँ दे रहे हैं। जिन इलाकों में अभियान की टोलियों ने मुहिम चलाई उनमें उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, कानपुर, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, हापुड़; पंजाब में जालंधर, लुधियाना, संगरूर, अम्बाला आदि जैसे शहर और साथ ही दिल्ली समेत पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भी शामिल है। इनमें से कुछ स्थानों की अभियान सम्बन्धी रिपोर्टें हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं।

शासन–प्रशासन तंत्र की आपराधिक संवेदनहीनता ने छीन ली हज़ारों बच्चों की ज़िन्दगी

इंसफ़ेलाइटिस से पीड़ित होने वाले अधिकांश बच्चे गरीबों के ही हैं। इसका कारण भी बहुत साफ़ है। यह बीमारी मच्छरों के काटने से फ़ैलती है जो ठहरे हुए पानी में और गन्दे स्थानों पर पलते हैं। समझा जा सकता है कि गाँवों और शहरों की गन्दी बस्तियों में रहने वाली आबादी जापानी इंसफ़ेलाइटिस के विषाणुओं के वाहक मच्छरों के लिए आसान शिकार हैं। यही असल कारण भी है कि क्यों शासन–प्रशासन तंत्र पिछले 27 सालों से इसके रोकथाम के कारगर उपाय नहीं कर रहा है। पूँजीपतियों और अमीरों की सेवा में दिन-रात जुटी रहने वाली शासन–प्रशासन की मशीनरी के लिए गरीबों की जान की कोई कीमत ही नहीं है।