क़तर में होने वाला फुटबॉल विश्व कप : लूट और हत्या का खेल
पूँजीवाद के हर जश्न और उल्लास के पीछे शोषण से पिसते मेहनतकशों के लहूलुहान जिस्म और दुखों का समन्दर है। इस व्यवस्था में यह जितना सच ‘वैभव’ और अट्टालिकाओं के बारे में है उतना ही सच पूँजीवादी कला आयोजनों और खेलों के बारे में भी है। खेल मुनाफ़े के कारोबार का एक अभिन्न हिस्सा हैं। दुनियाभर की तमाम सरकारें जनता की बुनियादी ज़रूरतों को परे रखते हुए खेलों पर अन्धाधुन्ध पैसा लुटा रही हैं। क्योंकि आज खेल उपभोक्ता बाज़ार का बड़ा हिस्सेदार है। इसी वजह से खेल वित्तीय पूँजी के इशारों पर नाचता है। अरब जगत से लेकर एशियाई और अफ्रीकी देशों में जो अच्छी-ख़ासी मध्यवर्गीय आबादी खड़ी हुई है इस पर वित्तीय जगत अपनी गिद्ध-दृष्टि टिका कर बैठा है। इसी के मद्देनज़र फ़ीफ़ा के अध्यक्ष सेप ब्लैटर द्वारा 2010 में प्रस्ताव रखा गया था कि किसी अरब देश में फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप का आयोजन किया जाना चाहिए। 2 दिसम्बर 2010 को तय हुआ कि 2022 में होने वाले फीफ़ा वर्ल्डकप को क़तर में आयोजित किया जायेगा। वर्ल्डकप की मेज़बानी मिलने के समय बताया गया कि इससे क़तर में मूलभूत ढाँचागत संरचनाओं का विकास होगा, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, आदि-आदि। दरअसल यह सारा विकास मुख्यतः विदेशी पूँजी को रिझाने के लिये किया जा रहा है। लेकिन जिन ढाँचागत संरचनाओं की बात की गयी थी वह मेहनतकशों की ज़िन्दगियों को मौत के मुँह में धकेल कर हो रही है।