जल्लिकुट्टी आन्दोलन: लूट की अर्थनीति और दोगलेपन की राजनीति का विरोध
यह आन्दोलन महज जल्लिकुट्टी पर रोक हटाने की माँग को लेकर नहीं था बल्कि इसके मूल में मौजूदा पूँजी केन्द्रित राजनीतिक-आर्थिक संस्थाओं और जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध अरसे से पीड़ित जनसमुदाय का खदबदाता असन्तोष था। अन्यथा आन्दोलन में वे लोग शामिल नहीं होते जिनका इस खेल से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था, इन आयोजनों में कभी उनकी न कोई भागीदारी रही और न ही वे इसके नियमित दर्शक ही रहे। पोंगल के दो दिनों बाद मदुराई जिले के अलंगनल्लूर गाँव में जो जल्लिकुट्टी के हर साल खूब धूम धड़ाके के आयोजन के लिये प्रसिद्ध है, वहाँ सबसे पहले विरोध की शुरुआत हुई और शीघ्र ही यह पूरे मदुराई, कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, सालेम, चेन्नई आदि जगहों पर फैल गया, लगभग समूचे राज्य को इसने आन्दोलित कर दिया। विरोध प्रदर्शन का मुख्य केन्द्र बना चेन्नई का मरीना तट । गौरतलब है कि आन्दोलन की मुख्य शक्ति थे आम छात्र-युवा, जिसमेंं आयीटी समेत हर क्षेत्र के छात्र और युवा भी शामिल थे, मेहनतकश वर्ग और स्त्रियाँ। साथ ही बैंककर्मी-बीमाकर्मी जैसे संगठित क्षेत्र से आनेवाली आबादी जो पिछले लम्बे समय से किसी सामाजिक-राजनीतिक प्रतिरोध आन्दोलन से अलग थलग रही है, वह भी इस आन्दोलन की हिस्सा बनी।