फ़ासीवादियों और ज़ायनवादियों की प्रगाढ़ एकता!
फ़ासीवादियों और ज़ायनवादियों की प्रगाढ़ एकता! भारत जब से इज़रायल ने गज़ा में बमबारी करते हुए इस सदी के बर्बरतम नरसंहार को शुरू किया है, तब से आज तक दुनिया…
फ़ासीवादियों और ज़ायनवादियों की प्रगाढ़ एकता! भारत जब से इज़रायल ने गज़ा में बमबारी करते हुए इस सदी के बर्बरतम नरसंहार को शुरू किया है, तब से आज तक दुनिया…
विकास के खोखले दावों की पोल खोलते गिरते पुल, जलभराव, टूटी सड़कें! भारत मोदी सरकार लगातार देश की तरक़्की का ढोल पीटती है। लेकिन ये दावा ज़रा-सी मानसूनी बारिश से…
नूँह दंगा और सरकारी दमन : एक रिपोर्ट भारत बिगुल मज़दूर दस्ता की टीम कुछ अन्य जन संगठनों व बुद्धिजीवियों के साथ नूँह में फैक्ट फाइण्डिंग के लिए गयी। इस…
वास्तव में, ‘लव जिहाद’ कोई मसला है ही नहीं। ‘लव जिहाद’ तो बहाना है, जनता ही निशाना है। मोदी सरकार जनता को रोज़गार नहीं दे सकती, महँगाई से छुटकारा नहीं दिला सकती, खुले तौर पर अडानी-अम्बानी के तलवे चाटने में लगी है और सिर से पाँव तक भ्रष्टाचार में लिप्त है, तो वह उन असली मसलों पर बात कर ही नहीं सकती, जो आपकी और हमारी ज़िन्दगी को प्रभावित करते हैं। शाहाबाद डेरी में संघ के ‘लव जिहाद’ के प्रयोग को असफल कर दिया गया।
इतिहास का निर्माण जनता करती है। फ़ासिस्ट ताक़तें जनता की इतिहास-निर्मात्री शक्ति से डरती हैं। इसलिए वे न केवल इतिहास के निर्माण में जनता की भूमिका को छिपा देना चाहती हैं, बल्कि इतिहास का ऐसा विकृतिकरण करने की कोशिश करती हैं जिससे वह अपनी विचारधारा और राजनीति को सही ठहरा सकें। संघ परिवार हमेशा से ही इतिहास का ऐसा ही एक फ़ासीवादी कुपाठ प्रस्तुत करता रहा है। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस की घटना इस फ़ासीवादी मुहिम की एक प्रतीक घटना है।
इसे दुर्घटना न कह कर हत्या कहना ज्यादा उचित होगा। कहने के लिए तो बवाना में शनिवार के दिन अवकाश होता है, पर इस दिन भी मालिक कारखाने को चला रहा था। मालिक अन्दर और बाहर से फैक्टरी में ताला लगाकर मजदूरों की जान से खिलवाड़ कर रहा था। वास्तव में देखा भी जाए तो इन फैक्ट्री मालिकों के लिए मज़दूरों का मरना कीड़े मकोड़ों के मरने से कुछ अधिक नहीं है।