मेटामॉरफ़ॉसिस

अन्वेषक

आज के समय को मेटामॉरफ़ॉसिस काल कहना अधिक उचित होगा। जिस हिसाब से मेटामॉरफ़ॉसिस की प्रक्रिया आज समाज में चल रही है, उतनी इतिहास में कभी नहीं चली होगी। फ़्रेंज़ काफ़्का के लघु उपन्यास ‘मेटामॉरफ़ॉसिस’ में एक छोटा-सा क्लर्क होता है, जो तिलचट्टा बन जाता है, पर हमारे देश में तो बड़े-बड़े लोग, नेता इस प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं। भारतीय समाज थोड़ा जटिल समाज है, इसलिए यहाँ मेटामॉरफ़ॉसिस थोड़ी जटिल प्रक्रिया से होता है। अभी परसों की बात है। विपक्षी पार्टी के बड़े नेता सरकार को बड़े-बड़े शब्दों में गरियाते हुए सोये। पता चला अगले दिन वह सरकार के मन्त्रियों के साथ खड़े होकर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे थे। देखा, हुआ न रात भर में मेटामॉरफ़ॉसिस!

मैं सोचता हूँ कि रात भर वह नेता क्या सोच रहा होगा! ऐसा क्या हुआ कि सुबह उठते ही उसे वह सरकार इतनी पसन्द आने लगी जिसे रात में वह गाली दे रहा था। रात में उसे देश में हर जगह महँगाई-बेरोज़गारी दिख रही थी, सुबह उठने के बाद उसे देश में विकास दिखने लगा। कल तक सर्वधर्म समभाव की बात कर रहा था, आज सुबह से सनातन ख़तरे में दिखने लगा। रात भर में उसे यह दिव्य दृष्टि कहाँ से मिल गयी, सोते-सोते यह बोधिज्ञान कहाँ से प्राप्त हो गया, जो अब तक लुप्त था। क्या पता वो रात में यही सोचते-सोचते सो गया हो कि जीवन में आज तक आगे बढ़ने के लिए क्या-क्या किया और भविष्य में आगे बढ़ने के लिए क्या करना है! रात को वह सोया और सुबह उठा तो ख़ुद को एक क़िस्म के तिलचट्टे में बदला हुआ पाया। हो गया मेटामॉरफ़ॉसिस! मेटामॉरफ़ॉसिस की प्रक्रिया क्या होती है यह भी जान लीजिए! सबसे पहले रीढ़ की हड्डी मुड़ना शुरू हो जाती है और धीरे-धीरे ग़ायब हो जाती है। आँखें छोटी-छोटी हो जाती हैं, कान फैलकर चमगादड़ जैसे हो जाते हैं। हाथ-पैर छोटे-छोटे, दाँत नुकीले और और छाती-पेट सब फूलकर गोल हो जाते हैं। दिमाग़़ भी सिकुड़कर बिलकुल छोटा हो जाता है।
इसमें डरने की कोई बात नहीं है। मेटामॉरफ़ॉसिस करके तिलचट्टा बनना घाटे का सौदा नहीं है। वो तो क्लर्क था जो परेशान हो गया, पर हमारे यहाँ मेटामॉरफ़ॉसिस के बाद सब द्वन्द्व मुक्त हो जाते हैं। आख़िर वह तिलचट्टा बनकर तिलचट्टों के सबसे बड़े समूह का हिस्सा हो जाता है। उसमें सब एक ही तरह से दिखते हैं, बोलते हैं, चलते हैं, सबके चेहरे गुब्बारे जैसे फूले हुए और दाँत नुकीले होते हैं। नया-नया तिलचट्टा भी ख़ुद को यहाँ ताक़तवर समझता है।
तिलचट्टों का यह समूह चाहता है कि समाज में सब तिलचट्टे बन जायें, पूरे देश का मेटामॉरफ़ॉसिस हो जाये। इसलिए प्रधान तिलचट्टे ने अपनी तिलचट्टों की सेना को फैला दिया है मेटामॉरफ़ॉसिस करने के लिए। इसके लिए उनके पास तमाम हथकण्डे हैं। इसलिए मेटामॉरफ़ॉसिस अपने चरम पर है और एक ख़ास बात इसके तेज़ होने की यह भी है कि अभी देश में चुनाव हैं। मेटामॉरफ़ॉसिस करने के लिए ये तिलचट्टे कुछ भी करेंगे। इनका कोई धर्म नहीं है, पर धर्म के नाम पर दंगे करवा सकते हैं, ताकि मेटामॉरफ़ॉसिस जल्दी हो। इसके लिए यह एक सपना भी दिखाते हैं: देखो तुम्हारा मेटामॉरफ़ॉसिस हो गया, सिर्फ़ तुम्हारा ही नहीं देश का भी मेटामॉरफ़ॉसिस हो गया। अब हर जगह तिलचट्टे ही तिलचट्टे होंगे। खाने के लिए उन इंसानों का मांस होगा, जिनका मेटामॉरफ़ॉसिस नहीं हुआ, पीने के लिए ताज़ा रक्त होगा। तब कोई नौकरी नहीं करनी पड़ेगी, कोई महँगाई नहीं होगी, बस तिलचट्टों का ही राज होगा। इसके लिए पूरे समाज का मेटामॉरफ़ॉसिस करने की ज़रूरत है।
वैसे देखा जाये तो मेटामॉरफ़ॉसिस सिर्फ़ नेताओं के साथ नहीं हो रहा बल्कि आज यह एक सामान्य सामाजिक प्रक्रिया है। बहुत से साहित्यकार, कवि, पत्रकार, अभिनेता, जज, वकील और न जाने कौन-कौन इसी प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं। कल तक जिस कवि की कविता में क्रान्ति के अलावा कुछ आता ही नहीं था, फ़ासीवाद उसकी कविता से थर-थर काँपता था, आज वह कवि कहता है: जनता और सरकार सबको मिल जुलकर एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, हमारा देश सदियों पुराना देश है, हमारी संस्कृति अलग है, यहाँ फ़ासीवाद आ ही नहीं सकता। आजकल तो फ़िल्में भी ऐसी ही बन रही हैं। अधिकतर अभिनेताओं का तो मेटामॉरफ़ॉसिस हो चुका है, मैं कभी-कभी फ़िल्में देखता हूँ तो लगता है इंसानों को नहीं तिलचट्टों को अभिनय करते देख रहा हूँ।
बहरहाल समाज में अभी मेटामॉरफ़ॉसिस की प्रक्रिया तेज़ी पर है, पर अभी ज़्यादा संख्या इंसानों की ही है। आमतौर यह प्रक्रिया एक रात में नहीं होती। अगर आपको पता करना है कि आपका मेटामॉरफ़ॉसिस हुआ है या नहीं तो इसके कुछ लक्षण है, अगर वह लक्षण आपमें हैं तो यानी आपका भी मेटामॉरफ़ॉसिस हो चुका है और वह लक्षण नहीं है तो आप अभी भी इंसान हैं। वह लक्षण कुछ इस प्रकार हैं। ज़ुल्म होते देख अगर आप चुप रहते हैं, तो इस प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है। फिर हर ज़ुल्म को आप अनदेखा करने लग जायेंगे, हमेशा हत्यारों का महिमामण्डन करेंगे, हमेशा ताक़तवर के पक्ष में बोलने लगेंगे। अन्त में आपको इंसान के गोश्त और ख़ून की गन्ध अच्छी लगने लगेगी। अगर यह सब लक्षण आपमें है, तो मुबारक हो आप तिलचट्टे बन चुके हैं। आपका भी मेटामॉरफ़ॉसिस हो चुका है।

(मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2024)

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।