नूँह दंगा और सरकारी दमन : एक रिपोर्ट

भारत

बिगुल मज़दूर दस्ता की टीम कुछ अन्य जन संगठनों व बुद्धिजीवियों के साथ नूँह में फैक्ट फाइण्डिंग के लिए गयी। इस दौरान टीम ने अलग-अलग गाँवों का दौरा किया और वहाँ हुई हिंसा के पीछे की सच्चाई और मौजूदा हालात का पता लगाया। 31 जुलाई की घटना और उसके बाद के हालात को जानने से पहले वहाँ की पृष्ठभूमि पर नज़र डालते हैं।
मेव बहुल इलाक़े को मेवात क्षेत्र कहा जाता है। मेव जाति के लोग तक़रीबन 1000 साल से इस इलाक़े में बसे हुए हैं। मेवात का इलाक़ा राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। हरियाणा के हिस्से वाले मेव बहुल इलाक़े को 2005 में हरियाणा सरकार ने मेवात जिला का दर्ज़ा दिया, जोकि पूर्व के गुडगाँव और फ़रीदाबाद जिले के मेव बहुल इलाक़ों को मिला कर बनाया गया है।

मेवात जिले की जनसंख्या व आर्थिक स्थिति

2011 की जनगणना के मुताबिक़ मेवात जिले की कुल जनसंख्या 10,89,263 है, जिसमें 88.5 फ़ीसदी गाँवों में रहते हैं। 2023 में नूँह की अनुमानित जनसंख्या 14,21,933 है। धार्मिक रूप से मेवात मुस्लिम बहुल जिला है। हरियाणा में मेव जाति को पिछड़े वर्ग का दर्ज़ा दिया गया है। भारत सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मन्त्रालय द्वारा करवाये गये अध्ययन के मुताबिक़ मेवात जिले की कुल जनसंख्या का 70.4 फ़ीसदी मुस्लिम है, जिसमें कुल मुस्लिम आबादी का 74.3 फ़ीसदी हिस्सा देहात में बसा हुआ है। मेवात जिला बनने से पहले यह क्षेत्र मुख्यतः गुडगाँव क्षेत्र में आता था, जिसकी 61.82 फ़ीसदी जनसंख्या हिन्दू थी और मेव सहित मुसलमानों की आबादी 23.2 फ़ीसदी थी। 2005 में बना यह नया जिला मुस्लिम बहुल हो गया। संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल व शिव सेना ने नया जिला बनाये जाने का विरोध किया था। मेवात जिला बनते ही संघ परिवार ने इसे साम्प्रदायिक रंग में रंगने की तैयारियाँ शुरू कर दी थी। मेवात जिले में कुल आबादी का 40 फ़ीसदी ही काम-धन्धे में लगे हुए हैं, जिसमें से लगभग 60 फ़ीसदी का मुख्य धन्धा खेती है इसमें से 15.4 फ़ीसदी खेतिहर मज़दूर के रूप में काम करते हैं मात्र 2 फ़ीसदी लोग घरेलू उद्योगों में लगे हैं और बाक़ी के 38.27 फ़ीसदी डेयरी, खनन, ट्रांसपोर्ट, कंस्ट्रक्शन जैसे अन्य काम करते हैं। मेवात में ज़मीन का मालिकाना मुख्यतः मेवों के पास है। जहाँ मेवों में कुलक, धनी किसान क्रमशः लगभग 2.25 फ़ीसदी व 7.38 फ़ीसदी है, वहीं हिन्दुओं में धनी किसान मात्र 0.46 फ़ीसदी हैं और धनी किसानों का हिस्सा 2.04 फ़ीसदी हैं। 41.31 फ़ीसदी मेव भूमिहीन है, जबकि हिन्दुओं में भूमिहीनों की संख्या 77.61 फ़ीसदी है। इस तरह यहाँ के ग्रामीण इलाक़े में धनी किसानों का ही दबदबा है।

31 जुलाई की घटना की पृष्ठभूमि

नूँह के नलहड़ गाँव में एक शिव मन्दिर है। कई सालों से इलाक़े के लोग ही इस मन्दिर को सम्भाल रहे हैं। लोग बताते हैं कि 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद हुए दंगों के बाद भी गाँव के लोगों ने जो कि अधिकतम मुस्लिम हैं, मन्दिर की रक्षा की। बीते 20 वर्षों में मन्दिर का नव निर्माण किया गया और सावन के महीने में आस-पास के लोग वहाँ जाने लगे। विश्व हिन्दू परिषद द्वारा पिछले तीन वर्षों से ही वहाँ बृजमण्डल यात्रा निकालने की शुरुआत हुई। पिछले वर्ष भी वीएचपी ने वहाँ दंगा करने की कोशिश की और मन्दिर के पास मौजूद मज़ार को तोड़ दिया। पर गाँव के दोनों धर्मों के लोगों ने आपसी माहौल को ख़राब नहीं होने दिया।

31 तारीख़ की घटना

31 जुलाई की सोमवार को नूँह के नल्हड़ मन्दिर से विश्व हिन्दू परिषद और मातृशक्ति दुर्गावाहिनी की तरफ़ से एक कलश यात्रा फिरोज़पुर झिरका की तरफ़ रवाना हुई थी, जैसे ही वह यात्रा तिरंगा पार्क के पास पहुँची वहाँ एक‌ समुदाय के लोग पहले से जमा थे। उनके आमने-सामने आते ही दोनों गुटों में टकराव हुआ और इसके बाद आगज़नी शुरू हुई जिसमें कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। पथराव में दो होम गार्ड गुरसेवक और नीरज और तीन अन्य व्यक्ति की मौत हो गयी और दस पुलिसकर्मी गम्भीर रूप से घायल हो गये। कई लोगों ने बताया कि यात्रा में क़रीब 4-5 हज़ार लोग थे, सभी बाहर से आये थे और तलवार-डण्डे आदि से लैस थे। कलश यात्रा में ढेरों नक़ाबपोश लोग भी आये थे जिन्होंने पहले दंगे की शुरूआत की।

राज्य द्वारा दमन की शुरुआत

इस घटना के बाद 1 अगस्त की सुबह से ही नूँह के अलग-अलग गाँवों में गिरफ़्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया। नूँह में हुई हिंसा में अब तक 142 एफ़आईआर दर्ज़ की गयी है। इसके साथ ही हिंसा में तथाकथित तौर पर लिप्त अब तक 312 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है। जिले में मुरादबास गाँव से ही अकेले 22 लोगों को गिरफ़्तार किया गया जिसमें कई नाबालिग़ भी शामिल थे।
राजदा (उम्र 22) बताती हैं कि इनके पिता को, जिनका नाम हाकिम (उम्र 60) है, उन्हें 1 अगस्त को सुबह 4:00 बजे पुलिस द्वारा घर में जबरदस्ती घुस कर गिरफ़्तार कर लिया गया। राजदा के अलावा परिवार में 6 लोग और हैं। घर का गुज़ारा थोड़ा बहुत खेती का काम करके और दूध बेचकर चलता है। राजदा बताती हैं कि उनके पिता को 19 अगस्त तक कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया था। 1 अगस्त की सुबह उनके घर के आस पास में 50-60 पुलिस वाले आये, लोगों से धक्का मुक्की की और मारपीट करते हुए कई लोगों को पकड़ कर ले गये। उन्होंने महिलाओं से भी बदतमीज़ी की और उनके साथ कोई महिला पुलिस भी नहीं थी। राजदा को यह तक नहीं पता कि उनके पिता कहाँ बन्द हैं।
इस दौरान उन नाबालिग़ बच्चों ने भी अपनी आपबीती सुनाई जिन्हें पुलिस ने जबरन उठा लिया था। इसी प्रकार से ऊटका, पलड़ी, नलहड़ और कई इलाक़ों से गिरफ़्तारियाँ हुई। गिरफ़्तार हुए लोगों में ज़्यादातर मुस्लिम हैं। जिन्हें पकड़ा गया उसमें बहुत से लोगों के पास वकील तक करने के पैसे नहीं हैं, न ही सरकार की तरफ़ से उन्हें वकील मुहैया कराया जा रहा है।

बुलडोज़र राज

इसके बाद सरकार द्वारा पूरे इलाक़े में घरों को ज़मींदोज़ करने की शुरुआत हुई। सरकार द्वारा प्रस्तुत आँकडों के मुताबिक़ 443 मकान ध्वस्त किए गये, जिनमें से 162 स्थायी थे और शेष 281 अस्थायी थे। विध्वंस अभियान से प्रभावित व्यक्तियों की संख्या 354 थी, जिनमें से 71 हिन्दू और 283 मुस्लिम थे। फिरोजपुर झिरका के पास दूध की घाटी इलाक़ा है, जहाँ मेहनतकश आबादी रहती है, जो बेलदारी से लेकर खेत में मज़दूरी तक का काम करती हैं। उस पूरे इलाक़े में ही क़रीब 150 घरों को सरकार द्वारा बिना कोई नोटिस दिये तोड़ दिया गया। लोगों के पुनर्वास का भी कोई इन्तज़ाम नहीं किया गया। आज भी लोग वहाँ खुले आसमान के नीचे सोने के लिए मजबूर हैं। इस जगह के अलावा नगीना, नलहड़, खेड़ा और नूँह शहर में भी दुकानों और घरों को तोड़ा गया।

नूँह में हिन्दुओं की स्थिति

संघ द्वारा ज़ोर-शोर से प्रचार किया जाता है कि मेवात इलाक़े में हिन्दू ख़तरे में है, उनका धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। इस तरह की अफ़वाहें उड़ायी जाती है। सच्चाई इसके उलट है। जिन भी गाँवों में टीम गयी, हर जगह हिन्दू आबादी ने बताया कि वहाँ उन्हें धर्म के आधार पर कोई समस्या नहीं है, बल्कि सब लोग साथ लम्बे समय से मिलकर रह रहे हैं। उन्होंने बजरंग दल वालों पर ही आरोप लगाया कि यही लोग माहौल ख़राब करना चाहते हैं।
शान्ता 50 वर्ष से मुरादबास गाँव में रह रही हैं। यह हिन्दू परिवार है। वह बताती हैं कि हिन्दू-मुस्लिम का झगड़ा हमारे गाँव में नहीं है, जिन्हें पुलिस पकड़ कर ले गयी है, उनका कोई अपराध नहीं है। वह लोग तो उस समय घरों पर ही थे जब दंगा हो रहा था। अगर पकड़ना है तो बिट्टू बजरंगी जैसे लोगों को पकड़ो जो लोग अनाप-शनाप बोल रहे थे।
घनश्याम (उम्र 27) जवाहर नवोदय विद्यालय में सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हैं। इन्होंने बताया जब गाँव में सब लोग सो रहे थे, तब पुलिस द्वारा रेड मारी गयी। जो कार्रवाई की जा रही है वह जायज़ नहीं है। 84 कोष की यात्रा भी निकाली जाती है और यह शान्ति से जारी है, लेकिन इसके नाम पर दंगे करना ग़लत है। हम लोग यह चाहते हैं 28 अगस्त को भी जो यात्रा निकलने वाली है, उसका शान्तिपूर्ण तरीक़े से निपटारा हो।
सारे गाँवों में डर का माहौल है। ज़्यादातर गाँवों में 20 से 50 वर्ष तक के पुरुष मौजूद नहीं हैं। उन्हें डर है कि कहीं उन्हें भी पुलिस गिरफ़्तार न कर ले। गाँवों में पुलिस की गाड़ियाँ देख लोग घरों में घुस जाते हैं। बच्चे तक स्कूल नहीं जा रहे हैं। बहुत से घरों के कमाने वाले लोग या तो गिरफ़्तार हैं या छिपे-छिपे घूम रहे हैं, जिस वजह से ग़रीब परिवारों को खाने-पीने तक की दिक़्क़त का सामना करना पड़ रहा है।
पुलिस प्रशासन ने भी जगह-जगह पुलिस और आरपीएफ की तैनाती की हुई है। हर एक आने-जाने वालों की तलाशी ली जा रही है। कहने के लिए प्रशासन और सरकार दंगाइयों पर कार्रवाई कर रही है, पर यह जगज़ाहिर है कि यह सब एकतरफ़ा कार्रवाई है। नूँह की घटना के बाद गुड़गाँव में चुन-चुन के मुस्लिम इलाक़ों को निशाना बनाया गया। मुस्लिमों को जगह छोड़ने की धमकी दी गयी। संघ द्वारा महापंचायत कर मुस्लिमों को बहिष्कार और उनके क़त्लेआम की बात कही गयी। इन सब पर खट्टर सरकार कान में तेल डाल कर सो रही है।

निष्कर्ष

असल में नूँह में मोनू मानेसर, बण्टी आदि जैसे अपराधी बजरंग दलियों और विहिप द्वारा योजनाबद्ध तरीक़े से दंगे भड़काये गये और उसके ज़रिये हरियाणा समेत पूरे देश में हिन्दू-मुसलमान दंगे फैलाने के प्रयास किये गये। इसका कारण है कि अगले साल हरियाणा और देश में चुनाव हैं और हमेशा की तरह संघ चुनाव से पहले दंगे कराने में लग गया है ताकि अगले साल वोट की अच्छी फ़सल काटी जा सके और जनता का ध्यान महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार से भटकाया जा सके।
पर हरियाणा और दिल्ली में साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की संघी हाफ़पैण्टियों की साज़िश पहले की तरह क़ामयाब नहीं हो पायी और काफ़ी दम लगाने के बाद भी दंगाई उन्माद नहीं भड़का पाये। हरियाणा और विशेष तौर पर मेवात की जनता ने दंगों को नहीं भड़कने दिया है और एकजुटता बनाये रखकर भाजपा की साज़िश को काफ़ी हद तक बेअसर किया है। फिर भी अभी हमें लगातार सावधान रहने और अपनी एकजुटता मज़बूत करने की ज़रूरत है, ताकि भविष्य में भी संघ परिवार की दंगाई साज़िशें क़ामयाब न होने पायें।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर 2023

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