अमृतकाल में बढ़ते स्त्री-विरोधी अपराध

शिवा

2014 के बाद से देश में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का ख़ूब शोर मचाया गया, लेकिन पिछले 8-9 सालों में बेटियों की दर्दनाक चीख़़ों में यह झूठा शोर डूब गया है। बीते कुछ सालों में देश में नाबालिग़ बच्चियों के साथ बर्बर बलात्कार की कई ऐसी घटनाएँ घटी हैं जो किसी भी संवेदनशील इंसान की रूह कँपा देंगी। इन घटनाओं ने आम जनता के सामने कुछ बातों को एक़दम स्पष्ट किया है। पहली बात तो यह कि भाजपा कितना भी स्त्री हितैषी होने का दावा करे, बीते कुछ सालों में जिस बेशर्मी से इसने बलात्कारियों को सुरक्षा और राजनीतिक संरक्षण देने का काम किया है वह अभूतपूर्व है। दूसरा देश में पुलिस प्रशासन से लेकर क़ानून व्यवस्था का चरित्र भी स्त्री-विरोधी पितृसत्तात्मक मानसिकता से ग्रस्त है।
देश में कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जब देश के किसी न किसी कोने से मासूम बच्चियों की चीख़़ें न सुनायी देती हों। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए उत्तर प्रदेश (जिसको भयमुक्त प्रदेश बताया जा रहा है) के बस्ती जिले में 14 साल की नाबालिग़ लड़की के साथ बलात्कार किया गया जिससे उसकी मौत हो गयी। उसके बाद बर्बरता की इन्तहाँ यह थी कि ख़ून से लथपथ लाश को पचास मीटर घसीटते हुए सड़क किनारे फेंक दिया। इस बर्बरता का मुख्य आरोपी कुन्दन सिंह भाजपा किसान मोर्चा बस्ती गौर मण्डल का उपाध्यक्ष है, बाकी राज साहनी और मोनू साहनी भाजपा के कार्यकर्ता और उसके दोस्त हैं। इन अपराधियों और बलात्कारियों की पहुँच ऊपर तक होने के कारण शुरु से ही पुलिस कार्रवाई करने की जगह लीपापोती करने में जुट गयी। इण्डियन एक्सप्रेस में लड़की के पिता का बयान छपा था कि पुलिस भाजपा के लोगों के ख़ि़लाफ़ कार्रवाई करने से बच रही है। जन दबाव की वजह से कार्रवाई हुई और अपराधियों को गिरफ़्तार किया गया। क़रीब दस दिन बाद जब नये विवेचक रामेश्वर यादव मामले की छानबीन करते हुए कुन्दन सिंह के मकान का निरीक्षण करने पहुँचे तो कुन्दन सिंह के अवैध शराब के व्यापार का भी खुलासा हुआ। मकान से अवैध शराब की कई खेप बरामद हुई। इस पूरे कारोबार में स्थानीय पुलिस प्रशासन को भी संलिप्त पाया गया और उस मकान का काफ़ी हिस्सा अवैध निर्माण होने का भी मामला सामने आया।
इस घटना के क़रीब एक महीने बाद ही 15 जुलाई को राजस्थान के जोधपुर शहर स्थित जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय परिसर में 17 वर्षीय दलित लड़की के साथ भाजपा की छात्र शाखा ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ के सदस्यों ने बलात्कार किया। इसी तरह से मध्य प्रदेश में भी दो बहनों का सामूहिक बलात्कार किया गया जिनमें से एक लड़की की उम्र 17 साल और दूसरी की 19 साल है। पुलिस ने जिन चार अपराधियों को गिरफ़्तार किया है उनमें से एक स्थानीय भाजपा नेता का बेटा भी है। फिर 26 अगस्त को ही राजस्थान के पाली में भाजपा नेता मोहनलाल जाट और उसके चार साथियों पर एक महिला ने बलात्कार और उसकी नाबालिग़ बेटी से छेड़छाड़ का मामला दर्ज़ कराया। इसी तरह 31 अगस्त को छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले के मन्दिर हसौद थाना इलाक़े से रक्षाबन्धन मनाकर लौट रही दो बहनों के साथ दस लोगों ने मिलकर बलात्कार किया। इस जघन्य और घृणित अपराध का मुख्य आरोपी पूनम ठाकुर भी “भारतीय संस्कृति” की रक्षा करने वाली पार्टी भाजपा के मण्डल उपाध्यक्ष का ही बेटा है, जिसके आपराधिक रिकॉर्ड का पुराना इतिहास है। इसके ख़िलाफ़़ थाना मन्दिर हसौद और आरंग में कुल पाँच मामले दर्ज़ हैं। साल 2019 में हत्या के एक मामले में इसे रायपुर पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर जेल भी भेजा गया था यही नहीं वर्ष 2022 में बलात्कार के एक मामले में रायपुर पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेजा था। इसकी हिम्मत तो देखिये, यह उस मामले में 17 अगस्त 2023 को ही ज़मानत पर रिहा हुआ था। और आते ही इसने फिर ऐसा घिनौना अपराध किया।
देश में स्त्री-विरोधी अपराधों की बाढ़ आयी हुई है। बलात्कारियों का मनोबल सातवें आसमान पर है। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो’ के अनुसार देश में हर रोज़ 90 नाबालिग़ लड़कियों के साथ बलात्कार होता है। इन आँकड़ों से स्थिति की भयंकरता का केवल अन्दाज़ा ही लगाया जा सकता है, क्योंकि ये बस वे मामले हैं जो दर्ज़ होते हैं। ज़्यादातर माता-पिता लोक लाज के डर से ऐसे मामले दर्ज़ ही नहीं कराते। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो’ के अनुसार 2020 के मुक़ाबले 2021 में रेप के 13.2 प्रतिशत मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है। दलितों में यह प्रतिशत और भी ज़्यादा है 2020 में दलित महिलाओं के रेप के कुल 3,372 मामले दर्ज़ किये गये जिनमें से मात्र 2,959 मामलों में ही चार्जशीट पेश की गयी और सिर्फ़ 225 मामलों में ही सज़ा सुनायी गयी यानी मात्र 6 प्रतिशत मामलों में। इनमें से भी ज़्यादातर की पहुँच ऊपर तक होने, आर्थिक पृष्ठभूमि मज़बूत होने की वजह से बहुत जल्द वहाँ से निकल आते हैं। बाहर आने के बाद ये फिर इसी तरह की बर्बरता करते हैं क्योंकि क़ानून-पुलिस-नेताशाही सब आँखों पर पट्टी बाँध कर गूँगे-बहरे बने बैठे रहते हैं।

प्रशासनिक ढाँचा और स्त्री-विरोधी अपराध

देश में प्रशासनिक ढाँचे की हालत यह है कि इंसाफ़ के लिए गुहार लगाने से पहले एक स्त्री को सौ बार सोचना पड़ता है। पीड़ित अगर ग़रीब, दलित या अल्पसंख्यक समुदाय से है तो और भी सोचना पड़ता है। उसकी एफ़आईआर दर्ज़ ही नहीं होती। आरोपी अगर उच्च जाति का और आर्थिक तौर मज़बूत है तो और भी मुश्किल। देश में ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जब बलात्कार की प्राथमिकी दर्ज़ कराने गयी लड़की के साथ थाने में दोबारा बलात्कार किया गया। जहाँ स्त्रियों को न्याय दिलाने वाली संस्थाएँ ही स्त्रियों की सबसे बड़ी दुश्मन बन जायें, वहाँ एक स्त्री किस तरह के न्याय की उम्मीद कर सकती है? थाने में एफ़आईआर दर्ज़ कराने गयी लड़की को पुलिस वाले हफ्तों दौड़ाते हैं। ग़लत तरीक़े से सवाल पूछकर परेशान करते हैं। लड़की को ही दोषी ठहराने की कोशिश करना, समझौता करने का दबाव बनाना, एफ़आईआर को हल्का कर देना आम बात है। गैंगरेप को रेप लिख दिया जाता है। ऐसा एक दो नहीं ज़्यादातर मामलों में होता है। प्रशासन तब हरकत में आता है जब व्यापक जन प्रतिरोध खड़ा होता है। पिछले कुछ सालों में जितने भी बलात्कार के चर्चित मामले रहे हैं, उन पर थोड़ा नज़र डालते हैं तो स्थिति और भी साफ़ नज़र आती है। हाथरस काण्ड भला कौन भूल सकता है? जहाँ बलात्कार की शिकार लड़की एक तरफ़ ज़िन्दगी और मौत के बीच जंग लड़ रही थी और देश की इंसाफ़ पसन्द जनता सड़कों पर न्याय के लिए आवाज़ बुलन्द कर रही थी उसके बावजूद आठ दिन बाद चार्जशीट दाख़िल की गयी। उत्तराखण्ड की अंकिता भण्डारी के मामले में चार दिन के बाद एफ़आईआर दर्ज़ की गयी। उन्नाव के कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में साल भर लड़की न्याय के लिए भटकती रही। अन्त में उसे उत्तर प्रदेश मुख्यमन्त्री आवास पर आत्मदाह करने पर मजबूर होना पड़ा। देश के पहलवानों का मामला भी हमारे सामने है। क़ानून व्यवस्था के चाक-चौबन्द होने के झूठे विज्ञापनों पर कितना भी पैसा बहा दिया जाय और ‘सुरक्षा आपकी ज़िम्मेदारी हमारी’ जैसे कितने भी जुमले उछाले जायें, सच्चाई यह है कि इन जगहों पर भी बैठे हुए ज़्यादातर लोग पितृसत्तात्मक स्त्री-विरोधी रुग्ण बीमार कुण्ठित मानसिकता से ग्रस्त हैं। ये अपने क्षेत्र में ऐसे अपराधों को दर्ज़ ही करना नहीं चाहते ताकि इनपर आँच न आये। जो कुछ मामले दर्ज़ भी होते हैं उनमें भी 74 प्रतिशत अपराधी बाइज़्ज़त बरी हो जाते हैं। इस तरह की तमाम घटनाओं ने प्रशासनिक ढाँचों और क़ानून व्यवस्था के चरित्र को भी कटघरे में खड़ा किया है। एक बात तो एक़दम साफ़ है कि केवल क़ानून के भरोसे न्याय पाना असम्भव है। जब देश की संसद में 43 प्रतिशत सांसद अपराधी और बलात्कारी हों, तो सोचा जा सकता है कि वो किस तरह का क़ानून बनायेंगे।

भाजपा का चरित्र

वैसे तो देश की सभी चुनावबाज़ पार्टियों में स्त्री-विरोधी अपराधी बैठे हुए हैं लेकिन भाजपा ने इस मामले में भी सबको पीछे छोड़ दिया। हाल की बलात्कार की तमाम घटनाओं में इनसे जुड़े हुए लोगों की भागीदारी ने भाजपा के स्त्री हितैषी होने के झूठ को तार-तार कर दिया है और इनका असली चेहरा आम जनता के सामने बेनक़ाब किया है। अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए जब देश के पहलवानों ख़ासकर महिला पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़़ यौन शोषण का आरोप लगाया था तो स्त्री सम्मान की रक्षा की बात करने वाली पार्टी भाजपा ने पूरी ताक़त से इस अपराधी का बचाव किया। देश की जनता के सामने एक ट्रेण्ड भी पेश किया गया कि ताक़त से टकराने का क्या मतलब होता है? और यह कोई नयी बात भी नहीं है इससे पहले भी कठुआ में 8 साल की बच्ची से रेप के आरोपी के समर्थन तिरंगा मार्च निकाला गया था जिसमें जम्मू-कश्मीर के भाजपा का राज्य सचिव भी शामिल हुआ था। एक तरफ़ मोदी का कहना है कि जो लोग यूसीसी का विरोध कर रहे हैं वह मुस्लिम बहनों के साथ विश्वासघात कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ 15 अगस्त 2022 के दिन गुजरात 2002 के दंगों में पाँच महीने की गर्भवती बिल्कीस बानो का बलात्कार और सात लोगों की हत्या करने वाले 11 अपराधियों को रिहा कर दिया गया। सोचने वाली बात यह भी है कि रिहाई का निर्णय लेने वाले पैनल में बीजेपी के दो नेता भी शामिल थे जिनमें से एक का नाम सी के राउल है, जो गोधरा सीट से बीजेपी विधायक है। बलात्कारियों की रिहाई पर इसने बयान दिया कि सभी 11आरोपी ब्राह्मण हैं, अच्छे संस्कार वाले हैं, किसी ने बुरी नीयत के चलते इनको सज़ा दिया। और इतना ही नहीं, जब ये अपराधी बाहर आये तो विश्व हिन्दू परिषद ने फूल-माला पहनाकर उनका स्वागत किया। इससे पहले भी भाजपा ने कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानन्द से लेकर तमाम बलात्कारियों का मज़बूती से साथ दिया है।
अन्तिम बात यह कि ऐसी जघन्य घटनाओं के ख़िलाफ़ मात्र विरोध प्रदर्शन करने से इनको ख़त्म नहीं किया जा सकता, न ही मानवता की गुहारें लगाने से इनमें कोई परिवर्तन लाया जा सकता है। जब तक सामाजिक आर्थिक ढाँचे में स्त्री-विरोधी अपराधों और स्त्री-विरोधी मानसिकता को बढ़ावा देने वाले मूल कारणों की पड़ताल नहीं की जाती, तब तक ऐसे अपराधों से लड़ना सम्भव नहीं है। हमें इस व्यवस्था का विकल्प सोचना ही होगा जो स्त्री को भोग की वस्तु की तरह पेश करती है।

(मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-अक्टूबर, 2023)

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