चीन के सामाजिक फासीवादी शासकों का चरित्र एक बार फिर बेनकाब
1976 में माओ की मृत्यु के बाद से चीन ने समाजवाद के मार्ग से विपथगमन किया और देघपन्थी ‘‘बाज़ार समाजवाद’‘ का चोला अपना लिया। इसके बाद से मेहनतकश आबादी की जीवन स्थितियाँ लगातार रसातल में जा रही हैं। हर साल कोयला खदानों में ही हज़ारों मज़दूर अपनी जान गवाँ देते हैं तो दूसरी तरफ समाजवादी व्यवस्था की ताकत की नींव पर खड़े होकर संशोधनवादी शासक आज साम्राज्यवादी ताकत के रूप में उभर रहे हैं। यही कारण है कि चीन में अरबपतियों और करोड़पति पूँजीपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 2006 की ‘फॉर्चून’ पत्रिका के अनुसार दुनिया के अरबपतियों की सूची में सात चीनी उद्योगपति थे। ये तस्वीरें चीन में अमीर-ग़रीब की बढ़ती खाई को दिखाती हैं।