चीन के सामाजिक फासीवादी शासकों का चरित्र एक बार फिर बेनकाब

सनी

पूरी दुनिया में आज चीन की कुलाँचे भरती विकास दर तथा ‘‘बाज़ार समाजवाद’‘ की उपलब्धियों का ख़ूब डंका पीटा जा रहा है। लेकिन सच्चाई यह हैं कि चीन में पूँजीवादी शासकों का ‘बाज़ार समाजवाद’ का नकाब अब मेहनतकश आबादी के प्रतिरोध को नहीं रोक पा रहा है। माओ-समर्थक लगातार पूँजीवादी शासकों के खि़लाफ संघर्ष कर रहे हैं। क्रूर दमन और कड़े कानूनों के बावूजद मेहनतकश आबादी के संघर्ष का सिलसिला बढ़ रहा है। 1976 में माओ की मृत्यु के बाद से चीन ने समाजवाद के मार्ग से विपथगमन किया और देघपन्थी ‘‘बाज़ार समाजवाद’‘ का चोला अपना लिया। इसके बाद से मेहनतकश आबादी की जीवन स्थितियाँ लगातार रसातल में जा रही हैं। हर साल कोयला खदानों में ही हज़ारों मज़दूर अपनी जान गवाँ देते हैं तो दूसरी तरफ समाजवादी व्यवस्था की ताकत की नींव पर खड़े होकर संशोधनवादी शासक आज साम्राज्यवादी ताकत के रूप में उभर रहे हैं। यही कारण है कि चीन में अरबपतियों और करोड़पति पूँजीपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 2006 की ‘फॉर्चून’ पत्रिका के अनुसार दुनिया के अरबपतियों की सूची में सात चीनी उद्योगपति थे। ये तस्वीरें चीन में अमीर-ग़रीब की बढ़ती खाई को दिखाती हैं। ऐसे में आम आबादी इस भ्रष्ट और तानाशाह सरकार के विरोध में विकल्प तलाश रही है। कुछ पूँजीवाद लोकतन्त्र की बात करते हैं तो कुछ संशोधनवादी पार्टी में कुछ सुधार की। बाकी आम लोगों का मानना है पूरी तरह सड़ चुकी चीनी सामाजिक फासीवादी राज्यसत्ता को माओ की शिक्षा द्वारा ही बदला जा सकता है और आज चीन में कई छोटे-छोटे ग्रुप माओ की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के अवदानों को समझकर नये क्रान्तिकारी विकल्प की तलाश कर रहे हैं, जो कि माओ की उस भविष्यवाणी को सही साबित करता है कि ‘’चीन में यदि पूँजीवादी पथगामी पूँजीवाद की पुनर्स्थापना में सफल हो भी गये तो वे कभी चैन से कुर्सी पर नहीं बैठ सकेंगे।’‘ जनप्रतिरोध इस कड़ी में एक ट्र्रेड यूनियन नेता झाओ डांगमिन ने शान्कशी में मज़दूरों का संगठन बनाने की कोशिश की तो उसे जबरन हिरासत में ले लिया। और एक साल बाद मुकदमे की तय तिथि से एक हफ्ते पहले ही उनको तीन साल की सज़ा सुना दी। यह चीनी सरकार के भय और उसके ग़ैर-जनवादी, तानाशाह तथा डरे हुए प्रशासन के चरित्र को दिखाता है। झाओ डांगमिन पेशे से वकील, मज़दूर कार्यकर्ता तथा माओ-समर्थक थे जो लम्बे समय से माओ स्टडी ग्रुप चलाते रहे हैं। अप्रैल 2009 में उन्होंने सैकड़ों मज़दूरों का नेतृत्व करते हुए शान्कशी के एक सरकारी उपक्रम में व्याप्त भ्रष्टाचार और निजीकरण रोकने के लिए ‘‘शान्कशी यूनियन राइट्स डिफेंस रिप्रज़ेण्टेटिव कांग्रेस’‘ बनाने का आवेदन प्रान्तीय पार्टी कमेटी तथा ट्र्रेड यूनियन फेडरेशन को दिया था क्योंकि मज़दूरों का मानना था कि सरकारी अधिकारी, प्रबन्धन डायरेक्टर, ट्रेड यूनियन नेतृत्व लगातार भ्रष्टाचार तथा मज़दूर विरोधी नीति पारित कर रहे हैं। इसलिए मज़दूर एक ऐसा संगठन बनाने चाहते थे कि जो उन पर नज़र रख सके तथा उनकी नीतियों का प्रतिरोध कर सके। लेकिन 19 अगस्त 2009 को झाओ पर आरोप लगया गया कि वह राज्य के विरुद्ध जनता को भड़का रहे हैं और इसके बाद उन्हें ग़ैर-कानूनी तरीके से जेल में डाला गया। झाओ की इस ग़ैर-कानूनी गिरफ्तारी के विरोध में कई शिक्षक, वकील, छात्र-नौजवान तथा मज़दूर-किसान सड़कों पर उतर आये। भारी जन-दबाव के देखते हुए सरकारी प्रशासन ने 25 सितम्बर 2010 तारीख़ को झाओ को कोर्ट में पेश किया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार केस की सुनवाई के दिन कोर्ट को 100 पुलिस वैन तथा 600 से ज़्यादा पुलिसकर्मियों ने घेर रखा था। कोर्ट ने फैसले की तारीख़ 25 अक्टूबर को तय की थी लेकिन जनता के भड़क रहे आक्रोश से डरकर प्रशासन ने केस की सुनवाई को षड्यन्त्रपूर्ण तरीके से निपटाते हुए फैसले की तय तिथि से एक हफ्ते पहले ही झाओ को तीन साल की सज़ा सुना दी। यह घटना सिर्फ शान्कशी प्रान्त या एक झाओ की नहीं, बल्कि पिछले एक दशक से पूरे चीन के अनवरत संघर्षों के सिलसिले की कड़ी है। चीन में ‘‘जनसमुदाय से सम्बन्धित घटनाएँ अथवा प्रदर्शन और दंगों’‘ की संख्या एक दशक पहले के 10,000 से बढ़कर 2003 में 58,000 और 2004 में 74,000 तक जा पहुँची है। (न्यूयॉर्क टाइम्स, 24 अगस्त, 2005)। पूरे चीन में लाखों नौजवान, करोड़ों मज़दूर और किसान आज माओ की शिक्षाओं को याद कर रहे हैं। यह समय इतिहास में आगे आने वाले सामाजिक बदलाव की सूचना दे रहा है। माओ का यह कथन रह-रहकर हमें भी याद आ रहा है और उन सामाजिक फासीवादी चीनी शासकों को भी आतंकित कर रहा होगा – ‘‘अब से लेकर अगले पचास सौ वर्षों तक का युग एक ऐसा महान युग होगा जिसमें दुनिया की सामाजिक व्यवस्था बुनियादी तौर पर बदल जायेगी, यह एक ऐसा भूकम्पकारी युग होगा, जिसकी तुलना इतिहास के पिछले किसी भी युग से नहीं की जा सकेगी। एक ऐसे युग में रहते हुए, हमें उन महान संघर्षों में जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए जो अपनी विशेषताओं में अतीत के तमाम संघर्षों से कई मायनों में भिन्न होंगे।’‘

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्‍बर-दिसम्‍बर 2010

 

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