दस्तावेज़ के अन्त में माकपा ने फिर से कुछ ‘विचारधारात्मक तोपें’ छोड़ी हैं, जैसे कि मार्क्सवाद प्रासंगिक है, उत्तरआधुनिकतावाद ग़लत है, सामाजिक जनवाद ग़लत है (!?) वगैरह! लेकिन आप भी अब तक इस पूरे दस्तावेज़ का असली इरादा समझ गये होंगे। इसका मकसद था मार्क्सवाद और समाजवाद का नाम लेते हुए मार्क्सवाद और समाजवाद के सिद्धान्त को विकृत कर डालना, उसकी क्रान्तिकारी अन्तर्वस्तु को नष्ट कर डालना, और नंगे और बेशर्म किस्म के संशोधनवाद को मार्क्सवाद का नाम देना! लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद अगर माकपा के इस दस्तावेज़ को कोई आम व्यक्ति भी पंक्तियों के बीच ध्यान देते हुए पढ़े तो माकपा की मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी, उसका पूँजीपति वर्ग के हाथों बिकना, उसका बेहूदे किस्म का संशोधनवाद और ‘भारतीय किस्म के समाजवाद’ के नाम पर भारतीय किस्म के पूँजीवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने का उसका शर्मनाक इरादा निपट नंगा हो जाता है! इस दस्तावेज़ में माकपा के घाघ संशोधनवादी सड़क पर निपट नंगे भाग चले हैं। मज़दूर वर्ग के इन ग़द्दारों की असलियत को हमें हर जगह बेनक़ाब करना होगा! ये हमारे सबसे ख़तरनाक दुश्मन हैं। इन्हें नेस्तनाबूद किये बग़ैर देश में मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी राजनीतिक आन्दोलन आगे नहीं बढ़ पायेगा!