देश में स्त्रियों की स्थिति और स्त्री मुक्ति का प्रश्न
इसी व्यवस्था के भीतर रह कर स्त्री मुक्ति की बात करना बेमानी है। जब तक वर्ग विभाजित समाज और व्यवस्था कायम रहेगी तब तक स्त्री-पुरुष का विभेद भी नहीं मिट सकता। स्त्री और पुरुष के विभेद का आधार भी श्रम विभाजन था और वर्ग विभाजन का आधार भी श्रम विभाजन था। जब तक यह असमान श्रम विभाजन ख़त्म नहीं होता तब तक स्त्री-पुरुष असमानता भी ख़त्म नहीं हो सकती। स्त्री मुक्ति का प्रोजेक्ट मेहनतकशों की मुक्ति के प्रोजेक्ट के एक अंग के तौर पर ही किसी मुकाम पर पहुँच सकता है। मेहनतकशों का भी आधा हिस्सा स्त्रियों का है। यही वे स्त्रियाँ हैं जो स्त्री मुक्ति की लड़ाई को लड़ेंगी और नेतृत्व देंगी, न कि उच्चमध्यवर्गीय घरों की खाई–मुटाई–अघाई स्त्रियाँ जो अपने सोने के पिंजड़े में सुखी हैं।