देश की मेहनतक़श ग़रीब जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक
लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस देश में 80 प्रतिशत आबादी भरपेट खाने के लिए आवश्यक संसाधनों का भी बड़ी मुश्किल से इन्तज़ाम कर पाती हो; जहाँ भूखों, नंगों, बेघरों, बेरोज़गारों की फौज़ दिन-ब-दिन विशाल होती जा रही हो, वहाँ मुट्ठी-भर अमीरज़ादों के विलासितापूर्ण मनबहलाव के लिए धन की ऐसी बेहिसाब बर्बादी क्या देश की मेहनतकश ग़रीब आबादी के साथ किया गया एक अक्षम्य अपराध नहीं है? और ख़ासकर दलित वोट से चुनकर उ.प्र. की मुख्यमन्त्री बनी मायावती, जिनको कि दलितों के उत्थान के एक उदाहरण के रूप में दिखाया जाता है, से पूछा जाना चाहिए कि क्या उनकी सरकार यह सब दलित उत्थान के लिए कर रही है?