अरबपति बनाम कौड़ीपति
अमीर-ग़रीब की यह बढ़ती खाई पूँजीवादी विकास की कलई खोलती है। पूँजीवादी विकास स्वाभाविक रूप से असमान विकास होता है। ऐसे में यह सोचने की बात है कि “पूँजीवाद की अन्तिम विजय”और “इतिहास के अंत” के दावों में कितना दम है। यह मानना मुश्किल है कि लगातार ग़रीब से ग़रीब होती, दबाई जाती बहुसंख्यक आबादी हमेशा चुपचाप निराशा की गर्त में पड़ी रहेगी, वह निश्चित तौर पर बग़ावत करेगी। उसी मौके के लिए इंकलाबी नौजवानों को अपने आपको तैयार करना है, ताकि वे ऐसे जनउभार को परिवर्तनकारी क्रान्ति में बदल सकें।