पानी का निजीकरण: पूँजीवादी लूट की बर्बरतम अभिव्यक्ति
आज जब पूँजीवाद ने देश के सामने पानी के उपभोग का संकट खड़ा कर दिया है तो सरकार जनता को जल उपलब्ध करवाने के अपने कर्तव्य से बेहयायी से मुकरकर पूँजीपतियों से कह रही है कि लोग प्यास से मरेंगे, जाओ अब तुम लोगों को पानी बेचकर अपनी तिजोरियाँ भरो! निजीकरण पूँजीवाद की आम प्रवृति है और ऐसा प्रत्येक क्षेत्र जहाँ मुनाफे का स्वर्णिम अवसर है निजीकरण मानव जीवन तथा सम्पूर्ण मानवता की कीमत पर भी किया जायेगा। पानी, पर्यावरण तथा जीवन के लिए ज़रूरी किसी भी क्षेत्र की रक्षा एवं सर्वजन सुलभता, मुनाफा केन्द्रित समाज में नहीं बल्कि मानव केन्द्रित समाज में सम्भव होगी जो पूँजीवाद के रहते सम्भव नहीं।