अमेरिकी फाउण्डेशन:मुखौटों के पीछे का सच
अक्सर, शक्ति और प्रभाव के स्रोतों की अदृश्यता ही उसके प्रभावशाली होने का सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण होती है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही, अमेरिका में धनिकों द्वारा कई फ़ाउण्डेशन स्थापित होने लगे थे-फ़ोर्ड, रॉकफ़ेलर, कारनेगी और बिल गेट्स फ़ाउण्डेशन इनके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। अमेरिका की राजनीति विज्ञानी जोन रोयलोव्स के एक नए अध्ययन (फ़ाउण्डेशन एण्ड पब्लिक पॉलिसीः दी मास्क ऑफ़ प्लुरलिज़्म, स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क प्रेस, 2003) में अमेरिकी फ़ाउण्डेशनों के क्रियाकलापों की एक रूपरेखा और उनकी भूमिका की समीक्षा की गई है।
उनके हस्तक्षेपों का दायरा काफ़ी व्यापक है (जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कार्य, मीडिया, कला और संस्कृति, शोध, और साशमाजिक आन्दोलन शामिल हैं); कई मामलों में उनकी भूमिका निर्णायक है। बावजूद इसके राजनीति विज्ञानियों और समाजशास्त्रियों ने इस विषय पर कम लिखा है। रोयलोव्स लिखती हैं कि पिछले बीस वर्षों से वह ‘‘अन्य राजनीति विज्ञानियों को इस बात पर सहमत करने का प्रयास करती रही हैं कि राजनीतिक विश्व के किसी भी ब्योरे को फ़ाउण्डेशनों के क्रियाकलापों और उनके अनुदान भोगियों की गतिविधियों को समझना होगा’’, लेकिन उन्हें ज्यादा सफ़लता नहीं मिली। ‘ये अत्यन्त प्रभावशाली संस्थाएँ हैं, फ़िर भी, अधिकांश शोधकर्ताओं और स्वयं फ़ाउण्डेशनों द्वारा उनकी शक्ति को कम करके आँका जाता है। ‘द्वारपालकों’ और अनुदानदाताओं की अपनी भूमिका के द्वारा वे अपनी और अपने द्वारा प्रायोजित संगठनों की आलोचना को हतोत्साहित करते हैं और आलोचनात्मक अध्ययनों को हाशिये पर धकेल देते हैं।
रोयलोव्स यह तर्क देती हैं कि सत्ता वर्ग के सामाजिक और राजनीतिक प्रभुत्व को कायम रखने में फ़ाउण्डेशनों का महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि सत्ता वर्ग मात्र बन्दूक और कानून द्वारा ही शासन नहीं करता। उल्टे उन्हें तो इस बात की आवश्यकता होती है कि शासन करने के लिए उन्हें निरंतर बलप्रयोग की शरण न लेनी पड़े। इसलिए वह दलील देती हैं कि, वे कई किस्म के संस्थाओं, गतिविधियों और व्यक्तियों (जो अक्सर स्वयं शासक वर्ग के सदस्य नहीं होते) के जरिए शासित जनता की सहमति का निर्माण करते हैं, वे शासक वर्ग की विचारधारा का प्रसार इस तरह करते हैं जैसे कि यह एक सामान्य बोध की बात हो। एक ओर सत्ता वर्ग के विचारों से असंतोष को ‘‘अतिवाद’’ करार दिया जाता है और उसकी उपेक्षा की जाती है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति के असंतोष का स्वागत किया जाता है और उसे रूपान्तरित कर दिया जाता है। वास्तव में, अगर सत्ता वर्ग का प्रभुत्व रूढ़ और संकीर्ण न हो तो वह ज्यादा टिकाऊ होता है, बल्कि वह उभरते रुझानों को जल्द से जल्द अपने में समाहित कर लेने में सक्षम होता है।
इस प्रक्रिया को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अब भी अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था की एक अहम शख़्सियत ज्बिग्नियेव ब्रेज़ेज़िन्की ने स्वयं यह दावा किया हैः
‘‘अमेरिकी विश्व शक्ति के सांस्कृतिक प्रभुत्व के पहलू को सही ढँग से समझा नहीं गया है… जैसे-जैसे अमेरिकी तौर-तरीकों का प्रसार धीरे-धीरे पूरे विश्व में हो रहा है, वैसे-वैसे अप्रत्यक्ष और सहमति से प्रतीत होने वाले अमेरिकी प्रभुत्व को लागू करने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा अनुकूल स्थितियाँ तैयार हो रही हैं। और जैसा कि अमेरिकी घरेलू व्यवस्था के मामले में देखा जा सकता है, इस प्रभुत्व में परस्पर गुंथी संस्थाओं और प्रक्रियाओं की जटिल संरचना शामिल है, जिसकी रूपरेखा आम सहमति पैदा करने और सत्ता और उसके प्रभाव के बीच अस्पष्ट असमरूपताएं पैदा करने के लिए तैयार की जाती है।’’ (ज़ोर हमारा)
अमेरिकी फ़ाउण्डेशनों के कार्यकलापों के राजनीतिक महत्त्व के अध्ययन का लाभ भारत के लोगों के लिए बिल्कुल जाहिर है, क्योंकि यहाँ गैर-सरकारी संस्थाओं और अकादमिकों को विदेशी संस्थापकों के अनुदान अब व्यापक हो गए हैं। हाल ही में, मुम्बई में हुए वर्ल्ड सोशल फ़ोरम को दिए गए अनुदान को लेकर उत्पन्न विवाद ने इस विषय को केन्द्र में ला दिया है।
अमेरिकी फ़ाउण्डेशनः आरम्भ, आकार, लक्ष्य
बीसवीं सदी के आरम्भ से ही अमेरिका में फ़ाउण्डेशनों की स्थापना हो रही है। समाजवाद की चुनौती के समक्ष, आरम्भिक उद्देश्यों में यह दिखाने की आकांक्षा थी कि पूँजीवाद भी व्यापकतम ‘सार्वजनिक हित’ को बढ़ावा देने में समर्थ है। वर्तमान पूँजीपति के पास वह सौहार्द्र मुखड़ा नहीं है। 1892 में कार्नेगी ने होम्सटेड में अपने मज़दूरों पर हथियारबंद हमला करवाया, जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई। अपनी एक खान पर मज़दूरों और उनके 8 परिवारों के लुडलो हत्याकाण्ड (33 मरे, 100 घायल) से 1914 में रॉकफ़ेलर की राष्ट्रव्यापी बदनामी हुई। कार्नेगी ने 1911 और रॉकफ़ेलर ने 1913 में अपने-अपने फ़ाउण्डेशनों की स्थापना की। राज्य स्तर पर फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन की स्थापना 1936 में हुई। यह वही दौर था जब फ़ोर्ड मोटर कम्पनी समेत हर जगह मजदूरों के संगठित होने की लहर चरम सीमा पर थी। कम्युनिज़्म के द्वितीय युद्धोत्तर तीव्र प्रसार (जिसमें सबसे चौंकाने वाला चीन का ‘पतन’ था) के साथ ‘‘कम्युनिज़्म की चुनौतियों का सामना करने के लिए जनतंत्र को सहायता देने के लिए’’ फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन बनाया गया।
इस ‘‘थर्ड सेक्टर’’-यानी जो न तो सरकारी है और न ही मुनाफ़े के लिए किया जाने वाला व्यवसाय है-के कार्यकलाप अमेरिकी अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मात्रा में हैं। 1998 में, अमेरिका में 12.3 लाख ‘स्वतंत्र सेक्टर’ के संगठन थे (जिसमें प्रमुख तौर पर अस्पताल और विश्वविद्यालय शामिल थे)। 1997 में ‘‘स्वतंत्र सेक्टर’’ की आय 665 अरब डालर थी और उसके 110 लाख कर्मचारी थे। रोयलोव्स के अनुसार यह ‘‘थर्ड सेक्टर’’ पूँजीवाद को कई तरीकों से एक सुरक्षा कवच प्रदान करता हैः ये बिना मुनाफ़े वाले संगठन औद्योगिक हृास से उत्पन्न आर्थिक मंदी को कम करते हैं; ये ऐसे कुछ माल और सेवा (बेघर लोगों को आश्रय देने से लेकर उन्नत संस्कृति तक) प्रदान करते हैं, जिसे बाज़ार नहीं दे सकता; इस तरह ये पूँजीवाद की फ़टी चादर में पैबन्द लगाने में मदद करते हैं; ये अव्यवस्था फ़ैलाने वाले और पार्थक्य में जी रहे लोगों को, जो अन्यथा व्यवस्था के लिए संकट बन सकते हैं, अक्सर ऐसे रोचक कार्य प्रदान कर आत्मसात कर लेते हैं, जिसमें सामाजिक उद्देश्य का भाव हो; ये जनान्दोलनों को अल्पसंख्यकों के कई अलग-अलग ‘पहचानों’ के आन्दोलनों (यहाँ तक की ग़रीब भी अल्पसंख्यक ठहराए जाते हैं), शिक्षा-सम्बन्धी कार्यकलापों और मुकदमेबाजी पर केन्द्रित आन्दोलनों में विभाजित करने में मदद करते हैं; और अन्ततः, ये ‘विघ्नकारी’ या क्रान्तिकारी आन्दोलनों को कुचलने के लिए कभी-कभार उपस्थित सत्ताधारी वर्ग के ढाँचे के अन्दर ही राजनीतिक परिवर्तन को भी बढ़ावा देते हैं।
हालाँकि ‘थर्ड सेक्टर’ की आय का मात्र 20 प्रतिशत ही अनुदानों से आता है, लेकिन रोयलोव्स दलील देती हैं कि फ़ाउण्डेशन ही इसके योजना बनाने वाले और तालमेल करने वाले हाथ हैं। अमेरिका में अनुदान देने वाले 50,000 फ़ाउण्डेशनों के पास 450 अरब डॉलर की सम्पत्ति है और वर्ष 2000 में उन्होंने 27.6 अरब डॉलर शिक्षा, स्वास्थ्य, मानवीय सेवाओं, कला, संस्कृति पर व्यय किया (जिसमें नागरिक अधिकार और सामाजिक कार्य, समुदाय सुधार, लोकोपकार और स्वयंसेविता और सार्वजनिक मामले भी शामिल हैं)। गेट फ़ाउण्डेशन (21 अरब डॉलर), लिली एंडोवमेंट (16 अरब डॉलर) और फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन (15 अरब डॉलर) सबसे ज्यादा सम्पत्ति वाले फ़ाउण्डेशनों में से हैं।
विचारधारा और सूचना
अकादमिक विश्वः फ़ाउण्डेशन विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, सांस्कृतिक संस्थानों, मीडिया और बुद्धिजीवियों के माध्यम से अपनी विचारधारा को प्रोत्साहित करते हैं। 1949 में फ़ोर्ड का एक राष्ट्रीय फ़ाउण्डेशन के रूप में उदय, फ़ाउण्डेशनों और सामाजिक विज्ञान के बीच गहरे सहयोग का अग्रदूत बना। रोयलोव्स दावा करती हैं कि ‘‘(अमेरिका में) आधुनिक समाज विज्ञान शोध लगभग पूरी तरह से फ़ाउण्डेशनों से अनुदान प्राप्त हैं।’’ इनसे फ़ण्ड लेने वाले क्षेत्रों में उच्च शिक्षा, शोध, अनुदान, इन्टर्नशिप, फ़ेलोशिप, व्यवसायिक संगठनों को सहयोग, विद्वतापूर्ण लेख, जर्नल, गंभीर पत्रिकाएँ, इन्टरनेट डेटाबेस, पब्लिक रेडियो और टेलीविज़न, चिंतक और निजी संस्थाएँ शामिल हैं। ये सबकुछ असंख्य माध्यमों से रिस-रिस कर बाकी जनता तक पहुँचता हैं। मसलन, फ़ाउण्डेशन समर्थित बुद्धिजीवी किताबें लिखते हैं (जिनमें अमेरिकी अर्थशास्त्र, राजनीतिशात्र और समाजशात्र के कई अग्रतम रचनाएँ शामिल हैं) और रिपोर्ट बनाते हैं; रेडियो, टेलिविज़न, और प्रिन्ट मीडिया के लिए समालोचक उपलब्ध कराते हैं, सम्मेलन आयोजित कराते हैं और योजना को जन्म देते हैं।
इस उद्देश्य के लिए समूचे अकादमिक विषयों को ही पुनर्गठित कर दिया गया है। फ़ोर्ड ने राजनीति विज्ञान की शाखा को आचरणगत दिशा में मोड़ने में सहायता की-जो वर्ग और उनके हितों जैसी उन परिघटनाओं, जो प्रत्यक्ष रूप से प्रेक्षण योग्य नहीं हैं, से अलग प्रेक्षण योग्य मानव राजनीतिक व्यवहार का एक ‘वैज्ञानिक’ अध्ययन है। अलग समझ रखने वाले पारम्परिक या मार्क्सवादी राजनीतिक शास्त्रियों को किनारे लगाते हुए 1951 से 1957 के बीच फ़ोर्ड के बिहेवियरल साइन्स डिवीज़न ने 230 लाख डालर खर्च किए। 1950 और 1960 के दशकों में ‘‘अमेरिकी लोकोपकारी संस्थाओं द्वारा राजनीति विज्ञान को दी गई राशि का नब्बे प्रतिशत फ़ोर्ड के पूरे ताने-बाने ने दिया था’’। रोयलोव्स विशिष्ट उदाहरण देकर बताती हैं कि किस प्रकार अकादमिक यह सीख गए कि समुदाय में स्वीकृत कैसे होना है और लगातार शोध अनुदान भी कैसे प्राप्त करते रहना है।
अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के अध्ययन में, काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशंस (सीएफ़आर) का प्रमुख स्थान है। आरम्भ में रॉकफ़ेलर और कार्नेगी इसे फ़ण्ड देते थे और अब फ़ोर्ड भी इसे फ़ण्ड देता है। यह विदेश नीति सम्बन्धी अकादमिकों, सरकारी अफ़सरों, व्यवसाय प्रबंधकों, मज़दूर नेता और पत्रकारों के बीच एकता कराता है। इसका संबंध केंद्रीय खूफ़िया एजेन्सी (सी.आई.ए) से भी है। रैण्ड कारपोरेशन (रिसर्च एण्ड डेवलपमेन्ट कॉरपरेशन) का गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन द्वारा प्राप्त अनुदान से हुआ था। इसने अपना दायरा अमेरिका की हवाई सेना के लिए शस्त्र अनुसंधान से युद्धनीति सम्बन्धी सभी सवालों तक विस्तारित कर लिया है।
फ़ाउण्डेशनों की सलाह पर हार्वर्ड, कोलम्बिया, एमआईटी, और अन्य विश्वविद्यालयों द्वारा स्थापित केन्द्रों/संस्थाओं में अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों से भी सीआईए निकटतम सम्बन्ध बनाए रखती है। वे केन्द्र/संस्थाएँ जो अमेरिकी सरकार के सुर से सुर नहीं मिलाते उन्हें फ़ाउण्डेशनों के फ़ण्ड से भी वंचित कर दिया जाता हैः स्वतंत्र और काफ़ी सम्मानित स्टैनफ़ोर्ड के हिस्पैनिक-अमेरिकन और लूसो-ब्राज़ीलियन स्टडीज़ को फ़ोर्ड से फ़ण्ड लेने के लिए बर्बाद कर दिया गया।
फ़ाउण्डेशनों की पहुँच वैश्विक है। न केवल तीसरी दुनिया के भावी नेता फ़ाउण्डेशनों द्वारा पोषित फ़ेलोशिप के साथ अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रशिक्षण पाते हैं, बल्कि फ़ाउण्डेशन विश्व भर के विश्वविद्यालयों के समाजविज्ञान विभाग को सहयोग देते हैं। 1961 में फ़ोर्ड ने कांगो में नेशनल स्कूल ऑफ़ लॉ एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन की स्थापना की। 1968 तक इस विद्यालय से 400 ऐसे स्नातक निकले जो कि प्रशासन और न्यायालयों के महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान नागरिक सेवकों का एक कुलीन तबका बन गए।
1919 से 1940 के बीच, ब्रिटेन में ‘‘समाज विज्ञान को प्राप्त मदद का मुख्य आधार’’ रॉकफ़ेलर से आने वाला फ़ण्ड था (लगभग 50 लाख डॉलर)। लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स और लंदन, जेनेवा, पेरिस, बर्लिन, कोपेनहेगेन, स्टॉकहोम, ओस्लो, नीदरलैंड आदि के अन्य संगठन इसमें शामिल हैं। ‘‘1950 के दशक तक विश्व के अधिकांश हिस्सों में राजनीति विज्ञान का अमेरिकीकरण विधिवत ढँग से आरम्भ हो चुका था।’’
पहचान की राजनीतिः मेहनतकश और दबे-कुचले लोगों की एकता की ख़िलाफ़त करने वाली विचारधाराओं को प्रोत्साहित किया जाता है। 1960 के दशक के आख़िरी वर्षों में आबादी के कई उत्पीड़ित हिस्सों के व्यवस्था विरोधी संगठनों की आपसी एकता ने अमेरिकी सत्ता वर्ग के लिए खासी मुश्किलें पैदा कीं (मसलन, न्यू मेक्सिको का एक जुझारू चिकानो संगठन ब्लैक बेरेट्स, ब्लैक पैन्थर्स, यंग लॉर्ड्स और अमेरिकन इण्डियन मूवमेन्ट से जुड़ने के साथ क्यूबा से भी एकता प्रकट करने लगा था)। इस तरह फ़ाउण्डेशनों की मदद की बदौलत, सामाजिक रूप से उत्पीड़ित हर हिस्से की एक अलग ‘पहचान की राजनीति’ की शुरुआत हुई। 1970 में इसकी शुरुआत करते हुए फ़ोर्ड ने नारी सम्बन्धी मुद्दों के अध्ययन को भी फ़ण्ड देना आरम्भ कर दिया, जो आज फ़ोर्ड के लिए एक विशाल क्षेत्र बन गया है।
अगर अलग-अलग समूहों की ‘पहचान की राजनीति’ को सभी उत्पीड़ितों की मुक्ति की व्यापक योजना से काट दिया जाए तो वह सत्ता वर्ग को अच्छी सेवा पहुँचा सकती है। उदाहरण के लिए, उस अमेरिकी साम्राज्यवाद को बनाए रखने के लिए, जिसमें अलग-अलग देशों में औरतों और उत्पीड़ितों की हत्या भी शामिल है, अमेरिकी सेना औरतों और अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान कर रही है। विभाजनकारी प्रभाव से आगे, फ़ाउण्डेशन की पहलकदमी ने उग्र आन्दोलनों को पेशेवरों के नेतृत्व वाले अकादमिक या नौकरशाही संगठनों में बदलने में मदद की है।
चिन्तक और मीडियाः मतभेद के दोनों पहलुओं को फ़ण्ड दे कर, फ़ाउण्डेशन यह सुनिश्चित कर देता है कि विवाद सत्ता वर्ग के दायरे में ही रहे। ब्रूकिंग्स इन्स्टीट्यूट प्रमुख ‘उदारवादी’ बौद्धिक तोप माना जाता है और अमेरिकन एन्टरप्राइज़ इन्स्टीट्यूट प्रमुख ‘दक्षिणपंथी’ बौद्धिक तोप माना जाता है। और दोनों ही फ़ोर्ड से अनुदान प्राप्त करते हैं। 1986 से फ़ाउण्डेशनों (जिसमें फ़ोर्ड भी शामिल है) द्वारा प्रोत्साहन प्राप्त इकोनॉमिक पॉशलिसी इन्स्टीट्यूट लेबर यूनियनों को रिसर्च इनपुट्स प्रदान कर रहा है, जिससे उन्हें कई तरह से मदद मिलती है, मसलन, इससे उत्तर अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते (नाफ्टा) का विरोध करने में इन यूनियनों को मदद मिलती है। लेकिन इसके साथ ही फ़ोर्ड अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र की नाफ्टा समर्थक संस्था और नाफ्टा समर्थक मंच को भी फ़ण्ड देता है (जिसमें 100 लातिन संगठनों और चुने हुए अधिकारियों का एक गठबंधन भी शामिल है)।
मीडिया इस श्रृंखला की आगे की कड़ी है। वामपंथी से लेकर दक्षिणपंथी पत्रिकाओं तक की एक पूरी कतार (जिसमे दी नेशन, मदर जोन्स, दी प्रोग्रेसिव और इन दीज़ टाइम्स शामिल हैं) फ़ाउण्डेशनों से फ़ण्ड प्राप्त करते हैं। और इसी तरह वैकल्पिक पत्रकारिता संस्थान, जन प्रसारण, डेटाबेस, वैकल्पिक ऑन-लाइन समाचार सेवाएँ, जैसे वनवर्ल्ड नेटवर्क, को भी फ़ण्ड प्राप्त हुए हैं।
फ़ाउण्डेशन न केवल व्यवस्था को देखने के नज़रिये को आकार देता है, बल्कि उसकी चादर के शर्मनाक छेदों पर पैबंद भी लगा देता है। राज्य और स्थानीय सरकार को दिए दान ने कई क्षेत्रों में सुधार लाने में मदद की है। रोयलोव्स कहती हैं कि ‘‘यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि शिक्षा में (निजी साथ ही साथ सार्वजनिक) हुए लगभग सभी आविष्कारों के स्रोत फ़ाउण्डेशन ही रहे हैं। कलात्मक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों को दिए गए फ़ण्डों ने एक ऐसी समृद्धि सुनिश्चित कर दी है जो बाज़ार अकेले नहीं कर पाता, और इस तरह कलाकार, लेखक और संगीतकारों को ख़तरनाक राजनीति से दूर रखा जाता है। (फ्रांसेस स्टोनर सॉन्डर्स के हू पेड दी पाइपर? दी सी.आई.ए एण्ड दी कलचरल कोल्ड वॉर में सी.आई.ए द्वारा इस सन्दर्भ में फ़ाउण्डेशनों के इस्तेमाल का विस्तृत अध्ययन है।)
कुछ सांस्कृतिक फ़ण्डों का प्रवाह विदेशों की ओर भी होता है, जिनके परिणामों का अनुमान लगाया जा सकता है। 1960 के दशक में फ़िलिपाइन शैक्षणिक रंगमंच संस्था (पेटा) का गठन हुआ, यह अमेरिका द्वारा फ़िलिपाइन्स के शोषण की छानबीन करने वाले नाटकों का मंचन करता था। फ़ोर्ड के फ़ण्ड के साथ ‘‘पेटा जो स्वयं को ‘विरोध का रंगमंच’ कहता था, अब ‘सशक्तीकरण के रंगमंच’ में बदल गया है, ठीक उसी तरह से पेटा के स्त्री रंगमंच कार्यक्रम का भी विकास हुआ है’’। अब बताया जाता है कि यह स्त्री-विरोधी घरेलू हिंसा और प्रजनन सम्बन्धी स्वास्थ्य पर बने नाटकों के साथ पूरे देश में भ्रमण करते हैं, यानी ऐसे विषयों पर बने नाटक जो स्वयं फ़िलिपाइन्स या अमेरिकी सत्ता वर्ग के लिए चिन्तनीय नहीं है।
सामाजिक आन्दोलनों में फ़ाउण्डेशनों का हस्तक्षेप
व्यापक जनान्दोलनों की जगह फ़ाउण्डेशन याचिकाओं का समर्थन करता है। याचिकाओं में जनान्दोलनों का समावेश नहीं होता; यह कार्यकर्ताओं के लिए एक सुरक्षित, रूढ़िवादी आउटलेट है। रोयलोव्स दावा करती हैं कि ‘‘पूरी तरह फ़ाउण्डेशनों द्वारा निर्मित जनहित कानूनों ने उच्चतम न्यायालय के एजेण्डे को आकार देने में मदद की है’’। फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन के अनुसार इसके लक्ष्य हैं ‘‘रचनात्मक तरीकों से अनिवार्य सामाजिक परिवर्तनों को आगे बढ़ाना। यह कानून यह दिखाने की चेष्टा करता है कि वर्ग और सामान्य हित को प्रभावित करने वाली कानूनी कार्रवाइयों में कम प्रतिनिधित्व वालों का प्रतिनिधित्व युक्तिसंगत भी है और सामाजिक रूप से उपयोगी भी…और साथ ही यह दिखलाने की चेष्टा करता है कि नई न्यायसंगत शिकायतों से निपटने के लिए परम्परागत क्रियाविधि को फ़िर से आरम्भ करने से, कानूनी प्रक्रिया में जनता का विश्वास सुदृढ़ होगा।
रंगभेद के आधार पर शोषण के ख़िलाफ़ होने वाला आन्दोलन अमेरिका के सबसे महत्वपूर्ण जनान्दोलनों में से एक था। 1920 और 1940 के दशकों के बीच अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी (CPUSA) ने कठिन परिस्थितियों और दमन के बावजूद रंग के आधार पर भेदभाव के प्रश्न को उठाया। परिणामस्वरूप सत्ता को आतंकित करते हुए इसने विश्वसनीय अश्वेत समर्थन जीता। प्रत्यक्ष जवाबी कार्रवाई के तहत, अश्वेत जनता के विकास के लिए राष्ट्रीय अश्वेत जनता प्रगति संघ (NAACP)-जिसकी अश्वेत जुझारूपन को रोकने में लम्बे समय तक महत्वपूर्ण भूमिका रही थी-1950 के दशक में फ़ोर्ड के फ़ण्ड ग्रहण करता था और नाक्प-कानूनी रक्षा निधि (LDEF) का गठन किया गया।
बाद में, 1950 के दशक में, जैसे ही अश्वेत और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों में एक विद्रोह शुरू हुआ, वैसे ही फ़ाउण्डेशनों ने जनहित याचिका संगठनों की संख्या को कई गुना बढ़ा दियाः रोयलोव्स 1967 और 1975 के बीच के ऐसे 23 संगठनों की सूची दिखाती हैं जो फ़ोर्ड द्वारा निर्मित थे या पूर्ण रूप से उसके द्वारा पोषित थे। अकेले 1970 में फ़ाउण्डेशनों ने 156 लाख डॉलर उचित प्रकार के अश्वेत लोगों के संगठनों को दिए। आरम्भ में सदर्न क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस फ़ण्ड प्राप्त करता था, लेकिन जब मार्टिन लूथर किंग ने ज़्यादा उग्र रास्ता अपनाया और सभी ग़रीबों (अश्वेत और श्वेत) के सामान्य हित पर बल दिया, साथ ही वियतनाम युद्ध का विरोध किया, तब कॉन्फ्रेंस को फ़ण्ड मिलना कम होने लगा था। उनकी हत्या के बाद, फ़ाउण्डेशनों और कॉरपोरेट के फ़ण्डों के साथ अटलान्टा में स्थापित मार्टिन लूथर किंग सेन्टर फ़ॉर नॉन वॉयलेन्ट चेन्ज (अहिंसक सामाजिक परिवर्तन के लिए मार्टिन लूथर किंग केन्द्र) ने उनकी यादों का पूरी तरह से सफ़ाया कर दिया।
अमेरिकी सत्ताधारी वर्ग ‘अश्वेत शक्ति’ के नारों से आतंकित था जिसका पहली बार इस्तेमाल 1960 के दशक में छात्र अहिंसक समन्वय समिति (स्टूडेण्ट नॉन-वायलेण्ट कोआर्डिनेटिंग कमेटी) ने किया था। फ़ोर्ड और रॉकफ़ेलर ने जवाबी कार्रवाई में ‘अश्वेत जनता की शक्ति’ को ‘अश्वेत जनता के पूँजीवाद’ में बदलने के लिए राष्ट्रीय शहरी गठबंधन (NUC) का निर्माण किया। नस्ली समानता कांग्रेस (CORE) के रॉय इनिस को फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन का फ़ेलो चुना गया, और वह राष्ट्रीय शहरी गठबंधन के बोर्ड का सदस्य बना। पिछड़े क्षेत्रों में लघु व्यवसाय और उद्योगों की स्थापना के लिए NUC और CORE समुदाय विकास कारपोरेशनों को सहायता देते थे। न्यूयॉर्क में बेडफ़ोर्ड-स्टूडेण्ट ने उग्रपंथी रैडिकल मोबिलाइज़ेशन फ़ॉर यूथ, समुदायिक कार्रवाई आन्दोलन और 1964 में पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ़ विद्रोह देखा। बेडफ़ोर्ड स्टूडेण्ट पुनर्स्थापना कॉरपोरेशन (BSRC) के रूप में फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन का जवाब आया जिसने उस क्षेत्र में लघु व्यवसायों को बढ़ावा दिया। इस कारपोरेशन का निदेशक फ्रैंकलिन थॉमस, बाद में फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन का प्रथम अश्वेत अध्यक्ष बना। कॉरपोरेशन और फ़ाउण्डेशन समुदाय विकास निगमों में लाखों का निवेश करते हैं, जिन्होंने वंचित समुदाय के तुष्टिकरण और मध्यमार्गी नेतृत्व के विकास में योगदान दिया है। फ़िर भी वे असफ़ल रहे-यहाँ तक कि तेज़ी के समय भी वे दीर्घकालिक ग़रीबी को रत्ती-भर भी कम नहीं कर सके।
1952 में फ़ोर्ड ने फ़ण्ड फ़ॉर रिपब्लिक की स्थापना की, जिसने मैकार्थी काल के काले दिनों में नागरिक स्वतंत्रता के लिए मुकदमे लड़े। लेकिन इन मुकदमों में जीत 1954 के बाद मिली, जिस समय तक अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी और प्रोग्रेसिव पार्टी को पूरी तरह से कुचल दिया गया था। जब फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन नागरिक स्वतंत्रता के कामों को फ़ण्ड दे रहा था, उस समय भी इसने सीआईए को सलाह दी कि खुफ़िया कार्रवाइयों में यह न्यूयॉर्क सिटी और अन्य पुलिस विभागों के साथ मिल कर काम करे।
रोयलोव्स बताती हैं कि जनहित याचिकाओं के वास्तविक सामाजिक लाभ को ज्यादा से ज्यादा संदिग्ध ही कहा जा सकता है, और यह कि अमेरिका में कैद की सज़ाओं की दर सबसे ज़्यादा है, जेल की परिस्थितियाँ दयनीय है और मृत्युदण्ड का उदारता से प्रयोग किया जाता है। लेकिन, फ़ाउण्डेशन का एक उद्देश्य, जो असन्तोष की प्रचण्ड बाढ़ को अहिंसक पानी में बदलने का है, कारगर होता प्रतीत होता है। विरोध करने वालों और उग्र नेताओं की ऊर्जा अधिकारों के लिए किये गए मुकदमा अभियानों में खर्च हो गईं। एक प्रख्यात कानूनविद्, आर्थर एस. मिलर का दावा है कि यह न्यायिक सक्रियता का ही एक काम है किः ‘वह असंतोष को रोक कर इसे अहिंसक रूपों में बदल कर, न्यायालय को इस काम में सक्षम बनाता है कि वह ख़तरनाक सामाजिक अव्यवस्था को शांत करने के लिए न्यूनातिन्यून आवश्यक मुद्दों पर छूट देकर सत्ताधारी वर्ग को शीर्ष पर बने रहने में मदद करे’।“
जैसे ही कई मुद्दों पर स्वतंत्र संगठन पनपने लगे जैसे-सेन्ट्रल अमेरिकन सोलिडैरिटी समूह, युद्ध विरोधी समूह, अल्पसंख्यक समूह-वैसे ही फ़ाउण्डेशनों ने इनके समानान्तर संगठनों को प्रायोजित करना शुरु किया, जैसे-अमेरिकन वॉच; शांति समूह (1984 से शांति आन्दोलनों की आय के एक तिहाई का योगदान फ़ाउण्डेशनों ने करना शुरू कर दिया था); ‘टिकाऊ विकास’ संगठन; विभिन्न अल्पसंख्यकों के लिए कानूनी रक्षा फ़ण्ड। 1969 में फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन के तत्कालीन अध्यक्ष मैकजॉर्ज बण्डी से फ़ाउण्डेशनों पर कांग्रेस की सुनवाई में पूछा गया कि फ़ोर्ड ‘उग्र’ संगठनों की सहायता क्यों कर रहा है? इस पर उन्होंने जवाब दियाः
‘‘यहाँ एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव यह है कि फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन उन संस्थाओं और संगठनों के विकास को, जो अभी नए हैं और जिनकी दिशा अभी निर्धारित नहीं हुई है, इस हद बदल सकता है कि जब भी उनके पास कोई ज़िम्मेदार और रचनात्मक प्रस्ताव हो, तो वे उसके लिए समर्थन पा सकें। अगर उनको ऐसा समर्थन प्राप्त नहीं होता है तो संगठन में जो लोग तोड़-फ़ोड़, असहमति और यहाँ तक कि हिंसा की ओर आकर्षित हो सकते हैं, उनका यह विश्वास और दृढ़ हो जाएगा कि अमेरिकी समाज उनकी ज़रुरतों की कोई परवाह नहीं करता। लेकिन उन्होंने अगर कोई अच्छा प्रोजेक्ट रचनात्मक ढंग से हमारे सामने रखा है, और वे इसे जिम्मेदारी के साथ चलाते हैं और उन्हें इसके लिए सहायता मिलती है और वह कारगर साबित होता है, तो उन लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है जो सोचते हैं कि इस प्रकार गतिविधियों से लाभ होता है।’’
अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियाँ
1998 में अमेरिकी संगठनों ने सिर्फ़ 1.6 अरब डॉलर अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों पर खर्च किया, जिनमें से अधिकांश मित्रतापूर्ण स्वयंसेवी संगठनों की सहायता में खर्च किए गए। यह राशि तुच्छ लग सकती है। लेकिन इस राशि के साथ अमेरिकी सरकार के नेशनल एन्डोवमेंट फ़ॉर डेमोक्रेसी, एजेन्सी फ़ॉर इन्टरनेशनल डेवलपमेंट और अन्य गुप्त स्रोतों से आने फ़ण्ड के अतिरिक्त दूसरे साम्राज्यवादी देशों से आने वाले फ़ण्ड भी मिलते हैं। सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तो हस्तक्षेपों का वह विशाल दायरा है जो इस तुच्छ राशि से सम्भव हो जाता हैः अधिक ग़रीब देशों में काफ़ी कम खर्च में प्रभाव कायम किया जा सकता है।
कुछ प्रमुखतम अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, जैसे ह्यूमन राइट वॉच (अपने सम्बन्धित संगठनों अमेरिकाज़ वॉच, एशिया वॉच और समान संगठनों समेत) फ़ाउण्डेशनों से फ़ण्ड प्राप्त करते हैं। ऐसे ही फ़ण्ड कई ‘वैकल्पिक’ शिखर बैठकों को मिलते हैं, जैसे कि-‘ग्लोबल फ़ोरम’। यह रियो में संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और विकास पर होने वाले सम्मेलन, दी अदर इकोनॉमिक सम्मिट (TOES) और जी-7 (अमीरतम देशों की वार्षिक बैठक) का सहायक है। इस सूची में जो नया नाम जुड़ा है, वह है वर्ल्ड सोशल फ़ोरम।
अन्तर्राष्ट्रीय कार्यवाइयों में सीआईए फ़ाउण्डेशनों के संगठनों को एक ‘ज़रिए’ की तरह इस्तेमाल करता है। कांग्रेस फ़ॉर कल्चरल फ्रीडम ऐसा ही एक प्रसिद्ध मामला था, जिसका मकसद मार्क्सवाद को अविश्वसनीय सिद्ध करने की कोशिश करना था, ख़ासकर यूरोपीय बुद्धिजीवियों के बीच। 1967 में, जब ये लेन%देन सार्वजनिक हो गए तो आक्रोश का एक छोटा-सा दौर चलाः
‘‘प्रेस रिपोर्ट संकेत करती हैं कि शायद कुछ विशेष संगठनों को फ़ण्ड देने के लिए सीआईए ने कम-से-कम 46 संगठनों का एक प्रचलित तरीके के रूप में इस्तेमाल किया। ‘ट्रिपल पास’ के नाम से जानी जाने वाली एक प्रणाली के तहत एक सामान्य प्रक्रिया में सीआईए स्वयं द्वारा स्थापित ‘दिखावटी’ फ़ाउण्डेशनों को फ़ण्ड पहुँचाता था जो उसकी गतिविधियों के मुखौटे के रूप में काम करते थे। फ़िर ये ‘दिखावटी’ फ़ाउण्डेशन वास्तविक फ़ाउण्डेशनों को अनुदान देते थे। इसके बाद ये असली फ़ाउण्डेशन-जो कि अन्य फ़ण्डों को भी सम्भालते थे-सीआईए द्वारा निर्दिष्ट संगठनों को अनुदान देते थे, और इसके लिए ‘दिखावटी’ फ़ाउण्डेशनों से प्राप्त फ़ण्ड का उपयोग करते थे। हालाँकि कुछ उदाहरणों में यह स्वरूप भिन्न रहता था।’’
जाहिरा तौर पर, फ़ाउण्डेशन अमेरिका के लिए कोई नई बात नहीं हैं। जर्मनी में फ़ाउण्डेशन अग्रणी राजनीतिक पार्टियों से जुड़े होते हैं-कॉनरैड अडेन्योर फ़ाउण्डेशन (क्रिश्चियन डेमोक्रैट्स), फ्रेडरिक इबर्ट फ़ाउण्डशेन (सोशल डेमोक्रैट्स) और हेनरिक बॉल फ़ाउण्डेशन (ग्रींस)। अन्य फ़ाउण्डशनों में राइट्स एण्ड डेमोक्रेसी (कनाडा), वेस्टमिन्स्टर फ़ाउण्डेशन फ़ॉर डेमोक्रेसी (ब्रिटेन) और यूरोपियन फ़ोरम फ़ॉर डेमोक्रेसी एण्ड सोलिडेरिटी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, ये फ़ाउण्डेशन पूरे विश्व में गैर सरकारी संगठनों को मिलने वाले फ़ण्ड के स्रोत मात्र होने के अलावा भी बहुत कुछ हैं। प्रत्यक्ष कारपोरेट अनुदान और सरकारी फ़ण्ड, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। अमेरिकी कांग्रेस द्वारा स्थापित दी नेशनल एन्डोवमेंन्ट फ़ॉर डेमोक्रेसी, निजी फ़ाउण्डेशनों के मॉडल पर आधारित था; यह निजी उद्यम, मजदूर एकता, आदि को बढ़ावा देने के लिए सहायक फ़ाउण्डेशनों को फ़ण्ड देता है। डिपार्टमेंट फ़ॉर इन्टरनेशनल डेवलपमेंट (डीएफ़आईडी) ब्रिटेन का सहायता देने वाला आधिकारिक निकाय है।
अमेरिकी सरकार और निजी फ़ाउण्डेशनों के बीच की सीमा रेखा हमेशा से अस्पष्ट रही है। कई वर्षों तक फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन के न्यासकर्ताओं के अध्यक्ष रहे, जॉन. जे. मैक्लॉय ‘‘फ़ाउण्डेशनों को अमेरिकी सरकार का अर्ध-विस्तार मानते थे। उदाहरण के लिए, हर दो महीने पर वाशिगंटन के नेशनल सिक्यूरिटी काउन्सिल (एनएससी) में टपक पड़ना, और अनौपचारिक ढँग से यह पूछना कि क्या एनएससी की कोई विदेशी परियोजना है, और क्या एनएससी फ़ण्ड लेना चाहेगा, उनकी आदत में शुमार था।’’
फ़ाउण्डेशन का अमेरिकी सरकार की योजनाओं के साथ सहयोग का एक बड़ा उदाहरण इण्डोनेशिया में फ़ोर्ड का काम था, जिसकी बाद में हर जगह नकल की गई। एमआईटी, कॉर्नेल, बर्कले और अंत में हार्वर्ड के माध्यम से, फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन अमेरिकी संरक्षण के अन्दर काम करने वाले आधुनिक प्रशासकों के रूप में इण्डोनेशिया के अधिकारियों को प्रशिक्षण देता था। इसने इण्डोनेशिया के एक विश्वविद्यालय में अमेरिकी शैली के एक अर्थशास्त्र के पाठ्यक्रम की स्थापना की और इण्डोनेशिया के इस कार्यक्रम को चलाने के लिए शिक्षकों को अमेरिकी विश्वाविद्यालय में प्रशिक्षित किया। इण्डोनेशिया के उच्चस्तरीय अफ़सर अमेरिका में प्रशिक्षित किए गए, जहाँ उन्हें हावर्ड और सिरॉकस विश्वविद्यालयों में अमेरिकी सेना से विद्रोह को दबाने की, और साथ ही वाणिज्य और लोक-प्रशासन में प्रशिक्षण दिया जाता था। बर्कले से छुट्टी पर आए आरओटीसी के एक कोलोनेल के परामर्श पर कुछ समय तक इण्डोनेशिया के सभी सम्भ्रान्त विश्वविद्यालयों के छात्रों को सेना द्वारा एक कार्यक्रम के तहत अर्धसैनिक प्रशिक्षण दिया गया। इन सबसे 1965 के तख़्तापलट की ज़मीन तैयार करने में मदद मिली, जिसमें वैध-सरकार को हटा दिया गया और 500,000 से भी अधिक कम्युनिस्टों और उनके समर्थकों की हत्या कर दी गई।
लातिन अमेरिका ने बहुत से तख़्तापलट देखे हैं-निकारागुआ, कोलम्बिया, पेरू और कई जगहों पर। ‘‘बीसवीं सदी के आख़िरी तीन दशकों में हज़ारों की संख्या में एनजीओ देशभर में दिखने लगे। कुछ ने लघुस्तरीय आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया, जैसे कि ‘अनौपचारिक अर्थव्यवस्था’ में माइक्रोक्रेडिट या आर्थिक सहायता देना, जबकि दूसरे एनजीओ झुग्गी बस्तियों में स्वास्थ्य केन्द्रों का प्रबन्ध या मकान के मालिकाने के लिए अर्थप्रबन्धन करते थे। मानवाधिकार के लिए काम कर रहे एनजीओ जो व्यापक पैमाने पर काम कर रहे थे, यह सन्देश देते थे कि न तो स्त्री-समानता और न ही पुलिस की उचित प्रणाली में किसी बुनियादी परिवर्तन की ज़रूरत है। ‘यह गौर किया जाना चाहिए कि ये मानवाधिकार एनजीओ इस बात पर ध्यान देते थे कि मानवाधिकार के स्थानीय हननकर्ताओं के साथ अमेरिकी और यूरोपीय गठजोड़ को भी दोषी न ठहरा दिया जाए।’ फ़ाउण्डेशन द्वारा निर्मित अमेरिकन वॉच संगठन (अब, ह्यूमन राइट्स वॉच/अमेरिकाज़) ने लातिन अमेरिका में होने वाले मानवाधिकार हनन को अमेरिका-समर्थित सैन्यवाद (जिसमें डेथ स्क्वाड्स शामिल हैं) से जोड़कर नहीं देखा। इसने खोज की कि असली समस्या तो बस ‘मानवाधिकारों के प्रति सम्मान का अभाव है’।’’ रोएलोव्स कहती हैं,
‘‘लातिन अमेरिका के एनजीओ एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए काम करते थे। जब सैन्य तानाशाही और नवउदारवादी सरकारें आईं तो उस समय विश्वविद्यालयों और अन्य सरकारी नौकरियों में लगे कई बुद्धिजीवियों को नौकरी से निकाला गया, जैसे कि चिली में पिनोशे के शासन में… फ़ोर्ड, रॉकफ़ेलर और अन्य फ़ाउण्डेशनों द्वारा समर्थित स्वयंसेवी संगठनों और अनुसंधान केंद्रों में इन लोगों को ले लिया गया-जिनमें उग्रपंथी किस्म के लोग भी शामिल थे। धीरे-धीरे उनका उग्रपंथ कम होता गया।’’
नॉर्थ अमेरिकन कांग्रेस ऑन लैटिन अमेरिका, जो कभी स्वयंसेवी संगठनों की आलोचक हुआ करती थी, का रूपान्तरण कर दिया गया, और अब वह स्वयं फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन से भारी मात्रा में फ़ण्ड प्राप्त करता है। इसी प्रकार लातिन अमेरिका के शोध संस्थान अब साम्राज्यवाद की आलोचना या डिपेण्डेंसी थ्योरी पर वाद-विवाद नहीं करते। ‘पहचान की राजनीति’ आज का नया फ़ैशन है, जो राजसत्ता की हिंसा की बजाय घरेलू, पारिवारिक हिंसा को लक्ष्य बनाती है।
दक्षिण अफ्रीका में, अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस ने समाजवादी सिद्धांतों को अंगीकृत किया, सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया और दक्षिण अफ्रीकी कम्युनिस्ट पार्टी को भी अपने में समाहित कर लिया था। ज़मीन और अन्य संसाधनों को जनता को वापस देना एएनसी के घोषित लक्ष्य थे। दक्षिण अफ्रीका न केवल सोने और हीरे से, बल्कि ख़ास तौर पर क्रोमियम अैर फ़ेरोक्रोम, मैंगनीज़ और फ़ेरोमैंगनीज़, प्लैटिनम और वानाडियम से भी समृद्ध था। इसके अतिरिक्त, यहाँ विकास का पूरे अफ्रीका पर व्यापकतर प्रभाव हो सकता था।
दक्षिणी अफ्रीका के प्रति अमेरिका की नीतियों पर, 1978 में रॉकफ़ेलर ने एक अध्ययन आयोग का समन्वयन किया। इस आयोग की अध्यक्षता फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन के अध्यक्ष ने की थी। इस आयोग ने बहुमत के शासन के लिए क्रमिक संक्रमण के मार्ग का नक्शा दिया। अमेरिकी निजी संगठनों से आग्रह किया गया कि वे ‘‘परिवर्तन के लिए, अश्वेत नेतृत्व को सहयोग देने के लिए, और अश्वेतों के हित को बढ़ावा देने के लिए, अफ्रीका में काम कर रहे संगठनों का समर्थन करें’’(ज़ोर हमारा)। फ़ोर्ड ने जनहित कानून की कम्पनियों, अश्वेत ट्रेड यूनियनों, साउथ अफ्रीकन कॉउन्सिल ऑफ़ चर्चेज़ को सहायता देने के साथ अश्वेतों को वकील बनने में सक्षम बनाने के लिए छात्रवृति भी दी। आखिरकार जब रंगभेद का बातचीत से अन्त किया गया, तो एएनसी के अन्दर और बाहर एक नया नेतृत्व इन्तज़ार कर रहा था।
पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट कहे जाने वाले शासन के समाप्त होने के काफ़ी पहले से ही फ़ोर्ड, रॉकफ़ेलर, कार्नेगी, मैकआर्थर, ब्रॉडले, मेकनाइट, मॉट, मेलन और सोरोस फ़ाउण्डेशन पूर्वी यूरोप के विद्वानों, विश्वविद्यालयों, और संस्थानों को मदद देना शुरू कर चुके थे। कई दशकों से इन देशों के सम्भ्रान्त बुद्धिजीवी वर्ग के साथ सम्बन्ध बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध प्रयास किए जा रहे थे। निजी अनुदान देने वालों से और अमेरिकी सरकार से फ़ण्ड प्राप्त करने वाले समूह जैसे चेकोस्लोवाकिया में सिविक फ़ोरम और पोलैण्ड में सोलिडेरिटी वहाँ की सत्ता को उखाड़ फ़ेंकने का लक्ष्य रखते थे।
अगले चरण में भी यह अनौपचारिक और औपचारिक सहयोग जारी रहा-जिसने एक प्रभुत्वकारी सिद्धान्त और सम्भ्रान्त वर्ग का निर्माण किया। इसमें विश्वविद्यालयों से सहयोग (पुराने को ख़त्म कर एक नए सेन्ट्रल यूरोपियन विश्वविद्यालय का निर्माण किया गया), एक नई राजनीतिक पार्टी का निर्माण, नए संसद सदस्यों के लिए ‘प्रशिक्षण कार्यक्रम’, नए मीडिया संस्थान (स्वतंत्र अखबार केन्द्र, पत्रकारों के लिए प्रशिक्षण, रेडियो, टी.वी स्टेशनों के लिए संसाधन और उपकरण, पुस्तकालय और इलेक्ट्रानिक डाटाबेस), शामिल थे। 1989 से 1994 के बीच निजी फ़ाउण्डेशनों ने पूर्वी यूरोप में 4500 लाख डॉलर खर्च किए। विभिन्न देशों के प्रमुख अधिकारी और सलाहकार फ़ण्ड प्राप्त करने वालों में शामिल थे। 1995 तक, चेक गणराज्य में 29,000, पोलैण्ड में 20,000 और अन्य देशों में भी लगभग इतनी ही सँख्या में एन.जी.ओ. मौजूद थे। ‘‘ये लगभग पूरी तरह विदेशी कारपोरेशनों, फ़ाउण्डेशनों, सरकारों, राजनीतिक पार्टियों और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों जैसे यूरोपियन यूनियन और वर्ल्ड बैंक से समर्थित थे।’’
इस क्षेत्र को निजी फ़ण्ड देने वालों में जॉर्ज सोरोस संभवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। पूरे विश्व में सोरोस फ़ाउण्डेशन को 34 देशों में देखा जा सकता है, जिनमें से 26 पूर्वी यूरोप और पूर्व सोवियत गणराज्यों में हैं। हाल में ही जॉर्जिया की ‘क्रान्ति’ को अन्य तमाम लोगों के साथ सोरोस ने भी समर्थन दिया था (‘‘व्हेन एन.जी.ओज़ अटैकः इम्प्लीकेशंस ऑफ़ दी कू इन जॉर्जिया’’ देखें, www.counterpunch.com 6/12/03)। उक्रेन के वर्तमान संकट में सोरोस, नेड और अन्य पश्चिमी फ़ण्डिंग एजेन्सियों का हाथ है (यू.एस कैम्पेन बिहाइन्ड दी टर्मोइल इन कीएव’’ इयन ट्रॉयनर, 26/11/04; दी गार्जियन; ‘‘वेस्टर्न एग्रेशनः हाउ दी यू.एस एण्ड ब्रिटेन आर इन्टरवीनिंग इन यूक्रेन्स इलेक्शन्स’’ जॉन लाफ़लैण्ड, दी स्पेक्टेटर, 5/11/04, http://globalreserch.ca/articals/LAU411A.html; ‘‘आई.एम.एफ़ स्पॉन्सर्ड ‘डेमोक्रेसी’ इन दी युक्रेन’’ माइकल चोसूदोवस्की, 28/11/04, http://globalresearch.ca/articles/CH0411D.html)
राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए फ़ाउण्डेशनों से प्रत्यक्ष रूप से फ़ण्ड पाती हैं। जिन संगठनों ने चेकोस्लोवाकिया में कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फ़ेंका था उन्हें अमेरिका के नेशनल इण्डोवमेण्ट फ़ॉर डेमोक्रेसी के फ़ण्ड मिलते थे। हंगरी में अमेरिकी राजदूत, मार्क पालमर के शब्दों में ‘‘मैं विरोधी पार्टियों को सहयोग करने के पक्ष में हूँ, जिसमें नेशनल इण्डोवमेण्ट फ़ॉर डेमोक्रेसी से उनके लिए पैसे जुगाड़ना भी शामिल है। मैं समझता हूँ कि हमें इस पर गर्व होना चाहिए’’। बड़े पैमाने पर चल रही ये सभी फ़ण्डिंग गतिविधियाँ इस क्षेत्र में हो रहे व्यापक आर्थिक परिवर्तनों का समर्थन करती हैं और उन्हें सहायता देती हैं और ये आर्थिक परिवर्तन हैं व्यापक निजीकरण और व्यापक ग़रीबी।
एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन
रोएलोव्स के अध्ययन को आर्थिक सहायता, प्राफ़ेसर के रूप में स्वयं उनकी ही कमाई से मिली है। इसलिए उनको उपलब्ध समय और शोध संसाधन सीमित रहे होंगे, लेकिन फ़िर भी उनका यह अध्ययन इस विषय के महत्व और इस क्षेत्र में हो सकने वाले अनुसंधनों, को स्थापित करने में सराहनीय रूप से सफ़ल रहा है। वास्तव में यही उनका लक्ष्य भी है, और आगे के शोध के लिए सवाल उठाते हुए वे अपने अध्ययन का समाहार करती हैं।
एक ओर रोएलोव्स फ़ाउण्डेशनों के महत्त्व को स्थापित करती हैं, लेकिन हमें सत्ताधारी वर्ग के अन्य उपकरणों को नज़रअन्दाज़ नहीं करना चाहिए या कम करके नहीं देखना चाहिए, विशेषकर से उनका मुख्य उपकरण राज्यसत्ता। फ़ाउण्डेशनों द्वारा की जाने वाली कई ऐसी गतिविधियाँ हैं, जिन्हें राज्यसत्ता प्रत्यक्ष रूप से करती है। अमेरिकी राज्यसत्ता पीड़ित और शोषितों के हिस्से को अपने में शामिल कर लेती हैं-नेतृत्व से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित करने के साथ महत्त्वपूर्ण जन कल्याण और संवैधानिक कार्रवाइयों को अंजाम देने वाले केनेडी और जॉनसन प्रशासन के नागरिक अधिकार आन्दोलनों को शांत करने के प्रयास इसके ही उदाहरण हैं। राज्यसत्ता स्वयं पूरे विश्व में एन.जी.ओ. को फ़ण्ड देती है, और ये फ़ण्ड यूएसएड और नेशनल इण्डोवमेण्ट फ़ॉर डेमोक्रेसी जैसे सरकारी अंगों के माध्यम से दिया जाता है (हालाँकि निश्चय ही ‘स्वतंत्र’ फ़ाउण्डेशनों की विश्वसनीयता सरकारी संस्थाओं से कहीं ज्यादा है)। अपने फ़ायदे के लिए, राज्यसत्ता ‘मानवाधिकार’, ‘नारी मुक्ति’, और ‘अल्पसंख्यकों की रक्षा’ के झण्डों का अफ़गानिस्तान, यूगोस्लाविया और इराक (और शायद भविष्य में सूडान पर) हमले को सही ठहराने के लिए उपयोग करते हुए बड़ी निपुणता से जनान्दोलनों के नारों को विकृत करती है।
इसके अलावा फ़ाउण्डेशनों और उसके कार्यकलापों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ, स्वयं फ़ाउण्डेशनों द्वारा नहीं बनाई जातीं, बल्कि देश में और विदेश में, दोनों जगहों पर राज्ससत्ता की दमनकारी कार्रवाइयों द्वारा बनाई जाती हैं। अपने देश में जनवादी मुखौटे के बावजूद, सत्ताधारी वर्ग उन शक्तियों का नृशंसता से दमन करने में कोई कसर नहीं छोड़ता जो व्यवस्था के लिए दूरगामी ख़तरा पैदा करती हैं। कई संगठनों के ख़िलाफ़ घुसपैठ, कुत्साप्रचारकों, उत्पीड़न, गिरफ्तारी और यहाँ तक कि हत्याओं का भी उपयोग किया जाता है। 1960 के दशक के आख़िर और 1970 के दशक की शुरुआत में, मुख्यतः इन्हीं तरीकों से, मैकार्थी काल में अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य कई संगठनों और आन्दोलनों के कोरों को बर्बाद किया गया था। वास्तव में इन संगठनों के ख़िलाफ़ दमन ने फ़ाउण्डेशनों द्वारा प्रायोजित ‘सुरक्षित’ गतिविधियों को ज़्यादा आकर्षक बनाने में मदद की है।
विदेशों में, तख़्तापलट के कामों को अंजाम दिया गया, विद्रोहों को कुचला गया, दमनकारी सत्ताओं को सहारा दिया गया, और साम्राज्यवादी सेना और खुफ़िया एजेन्सियों या उनके मातहतों के द्वारा विद्रोही राष्ट्रों में घुसपैठ की गई। 1973 में सैन्य तख़्तापलट के द्वारा ही अलेन्दे की सरकार को उखाड़ फ़ेंका गया और चिली के बुद्धिजीवियों को फ़ाउण्डेशनों की फ़ण्डिंग देने की ज़मीन तैयार की गई; उसी प्रकार इण्डोनेशिया में फ़ोर्ड का काम सैन्य तख़्तापलट के माध्यम से सुकर्ण को उखाड़ फ़ेंकने की प्रमुख घटना में सहायक था। साम्राज्यवादी देश और आश्रित सत्ता के बीच का रिश्ता मुख्यतः वैचारिक प्रभुत्व पर नहीं, बल्कि साम्राज्यवादी देश द्वारा आश्रित देश पर राजनीतिक प्रभुत्व पर आधारित होता है; और यह राजनीतिक प्रभुत्व स्वयं उन साम्राज्यवादी देशों की आर्थिक और सैन्य हैसियत पर निर्भर करता है। इस प्रकार पूर्वी यूरोप और तीसरी दुनिया के देशों में फ़ाउण्डेशन के हस्तक्षेप की परिस्थितियाँ वहाँ की सत्ता के चरित्र पर निर्भर करती है।
आख़िर में, जनसंख्या के अशान्त हिस्से के दिशा परिर्वतन और उन्हें शान्त करने की फ़ाउण्डेशनों द्वारा प्रायोजित गतिविधियों (या सम्मिलित करने या ध्यानाकर्षण करने के अन्य कार्य) का प्रभाव बहुत हद तक राजनीतिक अर्थव्यवस्था के चरित्र पर आधारित होता है। एक समाज में जहाँ एक विशाल समृद्ध वर्ग मौजूद है, यानी एक साम्राज्यवादी देश में समृद्धि के दौर में, वहाँ के सत्ताधारी वर्ग के लिए अपने विचारों का प्रचार करना, और विरोधियों को अलग-थलग करके, बाकी आबादी को जीतना आसान होता है। लेकिन साम्राज्यवादी देशों में भी मंदी के दौरान दरारें पैदा हो जाती हैं: अमेरिका में 1930 के दशक में कई जुझारू आन्दोलन उठ खड़े हुए, लेकिन युद्ध के बाद की समृद्धि के कारण वे दब गए। भारत जैसे देश, जहाँ एक बड़ी आबादी अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्ष कर रही है, वहाँ सत्ता वर्ग का अधिनायकत्व बहुत कमज़ोर होता है। इसका यह मतलब नहीं है कि हमारे जैसे समाज में फ़ाउण्डेशनों द्वारा प्रयोजित संगठनों, जैसे स्वयंसेवी संगठनों को गम्भीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन लोगों की चेतना और आन्दोलनों के मार्ग में उनके द्वारा पैदा किए जाने वाले रोड़ों को पार कर पाने की अधिक सम्भावना मौजूद होती हैं।
भारत की राजनीतिक परिस्थितियों के प्रेक्षकों के लिए रोएलोव्स की रचना की प्रासंगिकता सुस्पष्ट है। थोड़े बहुत बदलाव के बाद जो कुछ भी वह लिखती हैं, वह यहाँ बड़े पैमाने पर हो रही एन.जी.ओ. की घुसपैठ पर लागू होता है, जिनमें से अधिकांश अमेरिकी फ़ाउण्डेशनों से फ़ण्ड पाते हैं। जनहित याचिकाएँ, मानवाधिकार संगठन, नारी विमर्श, दलित विमर्श और आदिवासी संगठन, फ़ाउण्डेशनों से फ़ण्ड प्राप्त करते हैं जिनका प्रभाव वही है जो अमेरिका में है।
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2005
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!