आजादी के 59 वर्ष बाद भी कर्ज में डूबे पिता कर रहे हैं आत्महत्याएँ

शैलेश, दिल्ली

एक पिता कर्ज़ न चुका पाने की वजह से फाँसी लगा लेता है-कर्ज़ उसने बेटी के ब्याह के लिए लिया था। बेटी जिसने अपनी एक नयी जिन्दगी की शुरुआत की है, जिसे लाड़–प्यार से पिता ने विदा किया था। वह बेटी पाती है कि उसकी शादी में लिए कर्ज को नहीं चुका पाने की वजह से उसके पिता ने आत्महत्या कर ली। वह बेटी किसको जिम्मेदार ठहराये ? अपनी शादी को ? अपने लड़की होने को ? अपने घर की आर्थिक स्थिति को ? किसको ? क्योंकि उसे शायद ये पता नहीं कि उसके पिता की आत्महत्या, आत्महत्या नहीं बल्कि एक ‘हत्या’ है। उसके पिता की हत्यारन ये व्यवस्था है, इस व्यवस्था में आम जनता की स्थिति है। इस समझ के अभाव में वो दु:ख अथाह दुख के सागर में डूब जायेगी। उसे दु:ख लोहे की अन्‍धेरी कोठरी–सी लगेगी जिससे निकलने का कोई रास्ता नहीं। उसके लिए यह तो मात्र एक ख़बर है-लेकिन हर दिन न जाने कितने पिता, कितने भाई और पति आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं कितनी माँ–बहनें, बेटियाँ बेबस हो कर अपने आपको बेचने के लिए मजबूर हो जाती हैं, गलाजत और जिल्लत भरी जिन्दगी जीती है। क्यों मुट्ठी भर लोग ऐशो–आराम और ठाठ की जिन्दगी जी रहे हैं-और आम इन्सान ? आम इन्सान अपनी छोटी–छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए हाड़तोड़ मेहनत करता है और फिर भी, मिलती है परेशानियाँ, दु:ख और आत्महत्याएँ।

आजादी के 59 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से भारत की चमकती तस्वीर पेश की। भारत प्रगति कर रहा है। प्रधानमंत्री जी, कौन सा भारत प्रगति कर रहा है वो भारत जो जगमगाते मॉल, बड़ी–बड़ी इमारतों, हाईटेक कारों, पॉश रिहायशी इलाकों में नजर आता है या वो भारत जो बेरोज़गारी, भुखमरी और शोषण का शिकार है, जिसके 30 करोड़ बेरोजगार है। जिसकी 70 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। जहाँ उड़ीसा में मजदूरों की और मध्यप्रदेश में बच्चों की मण्डी है। जहाँ पिता कर्ज के बोझ के तले दब कर आत्महत्या कर लेता है। जहाँ बहनें घर की आर्थिक तंगी को देखकर वेश्यावृत्ति करने को मजबूर होती है। जहाँ कुपोषण और भुखमरी से बच्चे तिल–तिल कर मरते हैं। या जहाँ की उ़ँची कीमत की दवाइयों के कारण और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मामूली बीमारियों से आम इन्सान मरते हैं। कहाँ है विकास ? कहाँ है प्रगति ? गौर से देखने पर तो बस उस बेटी की आँखो का सन्नाटा और बेबसी नजर आता है।

लक्ष्मीचंद की आत्महत्या तो बस हो रही तमाम आत्महत्याओं या कहें ‘हत्याओं’ में एक ख़बर है। अगर कोई राजनीतिक समझ या दिशा नहीं होती है तो आदमी अपने आप को बेबस और लाचार समझता है। वह अपनी दुर्दशा की वजह नहीं समझ पाता। यह नहीं समझ पाता कि आखिर इन तमाम आत्महत्याओं, बेरोज़गारी, अशिक्षा, भुखमरी, वेश्यावृत्ति का जिम्मेदार कौन है ? कौन है जो कुछ लोगों के लिए तो धरती पर स्वर्ग बना रहा है और एक बड़ी आबादी को नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर रहा है ?

इन सब के पीछे बड़ा परिवार, किसी की क्षमता या किस्मत जिम्मेदार नहीं है। इन सब की जिम्मेदार ये व्यवस्था है। और जब तक ये व्यवस्था है ये सारी चीजें होती रहेंगी और बढ़ती जाएँगी। अगर हमें इस नारकीय जिन्दगी, इन समस्याओं से निजात पाना है तो एक ऐसे समाज, एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना है जहाँ अमीर–गरीब की खाई न हो, हर हाथ के पास काम हो, सभी को शिक्षा मिले और जीवन की सुख सुविधायें मिले तो जरूरी है इस व्यवस्था को नेस्तनाबूत करना, इसे तहस–नहस करना, क्योंकि कोई भी जोड़–तोड़ या सुधार इस व्यवस्था को बदल नहीं सकता। इस व्यवस्था को धवस्त तभी किया जा सकता है जब हम जानें कि हमारी सारी समस्याओं, सारी परेशानियों और सारी दिक्कतों की जिम्मेदार ये व्यवस्था है।

आह्वान कैम्‍पस टाइम्‍स, जुलाई-सितम्‍बर 2006

 

'आह्वान' की सदस्‍यता लें!

 

ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीआर्डर के लिए पताः बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली बैंक खाते का विवरणः प्रति – muktikami chhatron ka aahwan Bank of Baroda, Badli New Delhi Saving Account 21360100010629 IFSC Code: BARB0TRDBAD

आर्थिक सहयोग भी करें!

 

दोस्तों, “आह्वान” सारे देश में चल रहे वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक कड़ी है। हम सत्ता प्रतिष्ठानों, फ़ण्डिंग एजेंसियों, पूँजीवादी घरानों एवं चुनावी राजनीतिक दलों से किसी भी रूप में आर्थिक सहयोग लेना घोर अनर्थकारी मानते हैं। हमारी दृढ़ मान्यता है कि जनता का वैकल्पिक मीडिया सिर्फ जन संसाधनों के बूते खड़ा किया जाना चाहिए। एक लम्बे समय से बिना किसी किस्म का समझौता किये “आह्वान” सतत प्रचारित-प्रकाशित हो रही है। आपको मालूम हो कि विगत कई अंकों से पत्रिका आर्थिक संकट का सामना कर रही है। ऐसे में “आह्वान” अपने तमाम पाठकों, सहयोगियों से सहयोग की अपेक्षा करती है। हम आप सभी सहयोगियों, शुभचिन्तकों से अपील करते हैं कि वे अपनी ओर से अधिकतम सम्भव आर्थिक सहयोग भेजकर परिवर्तन के इस हथियार को मज़बूती प्रदान करें। सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग करने के लिए नीचे दिये गए Donate बटन पर क्लिक करें।