कन्या धन योजना की असलियत
अरुण कुमार, इलाहाबाद
उ.प्र. के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीतिक दरियादिली दिखाई, यहाँ पर उन्होंने ग़रीब लड़कियों के लिए अपने खज़ाने का दरवाज़ा खोलकर एक बार फ़िर ग़रीबों का मसीहा बनने की नौटंकी शुरू कर दी है।
‘कन्या धन योजना’ लागू करके यह दिखाया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी ग़रीबों का बहुत ख़्याल करती है। यह बात जग ज़ाहिर है। अभी यहाँ पर अनाज घोटाला जम कर चल रहा है। यह अनाज भूख से मर रही ग़रीब जनता के लिए आया हुआ था। लेकिन उसे तो यहाँ के मंत्री और अधिकारी मिलकर डकार गये। इस तरह की सभी योजनाओं का फ़ायदा कुछ ही लोगों को मिलता है।
‘कन्या धन योजना’ के तहत उन गरीब लड़कियों को 20,000 हजार रुपये दिये जायेंगे जिन्होंने इण्टर की परीक्षा पास की है और जो ग़रीबी रेखा के नीचे जी रही हैं। इस योजना के लिए 200 करोड़ रुपये का बजट पास किया गया है ताकि ग़रीब लोग भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला सकें। लेकिन ग़रीबी रेखा का जो पैमाना बनाया गया है (ग्रामीण क्षेत्र में 19,000 रु. शहरी क्षेत्र 25,000 रु. की सालाना आय हो) उसे देखकर लगता है कि शायद ही इन घरों के बच्चे पढ़ने जाते हों, इण्टर तो बहुत दूर की बात है। क्योंकि 19 या 25 हजार सालाना कमाने वाला परिवार किसी तरह दाल-रोटी खाकर अपना जीवन बसर करता है। वह अपने बच्चों की पढ़ाई कहाँ तक करवा सकता है, धरती पुत्र कहलाने वाले मुलायम सिंह को यह बात नहीं मालूम है।
इस योजना के लागू होते ही अधिकारियों की चांदी हो गई और पैसा गरीब जनता तक न पहुँच कर ग़लत लोगों के हाथों में पहुँच गया। फ़र्जी प्रमाण-पत्र धड़ल्ले से बनाये गये। अमीर लड़कियों को ग़रीब बनाया गया। इस घटना से मुलायम सिंह सपा कार्यकर्ताओं से नाराज़ हो गये कि वे इस योजना को ठीक तरह से लागू नहीं कर सके, क्योंकि इसी पर उनकी अपनी राजनीति टिकी थी। स्वयं मुलायम सिंह चेक वितरण करते समय छात्राओं से कह रहे थे कि घर जाकर कहना वोट सपा को ही दें।
घोटाले की जाँच कर रही टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट के अनुसार वे जाँच करने जिस भी क्षेत्र में गये वहाँ की कोई भी छात्रा ग़रीबी रेखा से नीचे की नहीं मिली, अधिकतर मध्य वर्ग, या उच्च वर्ग की छात्राएँ ही मिली। संयुक्त शिक्षा निदेशक अमर नाथ वर्मा के अनुसार गोरखपुर में 1,240 लड़कियों को 248 लाख, देवरिया के 792 लड़कियों को 248 लाख, महाराजगंज में 637 लड़कियों को 127.40 लाख और कुशीनगर में 1,172 लड़कियों को 234.40 लाख रुपये दिये गये। ये सारे पैसे तथाकथित ग़रीब छात्राओं को मिले जिनके पास अच्छे घर–बंगले, गाड़ियाँ, दुकानें आदि हैं। और जिनके बाप अध्यापक, तहसीलदार भूमि संरक्षण अधिकारी जैसे पदों पर हैं। ऐसी है हमारी प्रदेश की ग़रीब जनता! बाकी सभी अमीर है जो इस योजना से वंचित ही रह गये!
प्रदेश सरकार क्या वास्तव में गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना चाहती है? यदि वह उच्च शिक्षा दिलाना चाहती है तो उसे सबसे पहले शिक्षा को प्राइमरी से ले कर विश्वविद्यालय तक मुफ्त करना चाहिए और विश्वविद्यालयों का निजीकरण बन्द करना चाहिए। एक तरफ़ सीटों में कटौती और फ़ीसों में वृद्धि की जा रही है और दूसरी तरफ़ ग़रीब छात्राओं को उच्च शिक्षा देने की बात की जा रही है। क्या यह सब नौंटकी नहीं हो रही है? हर साल इण्टर पास करने के बाद हज़ारों छात्रों का स्नातक स्तर पर दाखिला नहीं हो पाता है। इसके लिए मुलायम सरकार और कालेज बनवाने के बारे में क्यों नहीं सोचती? वह केवल पैसे बाँट कर पीछा छुड़ाना चाहती है और साथ-ही-साथ अपने नाम को हाईलाइट करना चाहती है ताकि उनका वोट बैंक बना रहे। सही मायने में सबको शिक्षा तभी मिल सकती है जब पूरे भारत में एक बेहतर व्यवस्था हो जिसमें आम आदमी के बारे में सोचा-समझा जाता हो न की बड़े-बड़े पूँजीपतियों के बारे में।
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2005
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