पाठकों के पत्र : उठो, जागो और इस दुनिया को बदल दो!
इस वक्त में पाते हैं हम रातों को दरवाजों पर दस्तक,
फिर कहीं होती है दिल में धक-धक,
न जाने किस घर में खाकी वर्दी आई है,
खाकी वर्दी के लोगों के चेहरों पर झाँई हैं,
चारों ओर सायरनों का शोर है,
रात के सन्नाटे में मचाता आतंक घनघोर है,