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पाठक मंच, जुलाई-अक्टूबर 2020

‘आह्वान’ जनता के बीच उन विचारों को लेकर जा रही है जिन्हें ले जाने की हिम्मत कॉरपोरेट मीडिया में नहीं है। यह पत्रिका वैकल्पिक मीडिया के प्रयासों की एक अहम कड़ी है। इसके लेखों से युवाओं को विभिन्न चीज़ों को देखने और समझने का नज़रिया मिलता है। इसके लेख भाजपा और संघ परिवार की पोल खोलकर रख देते हैं कि आर्थिक संकट के समय पूँजीवाद किस तरह से फ़ासीवादी ताक़तों का इस्तेमाल कर रहा है। छात्रों-युवाओं और व्यापक मेहनतकश जनता को मुक्तिकामी विचारों की बेहद ज़रूरत है। मैं अपने तौर पर आह्वान पत्रिका को और लोगों तक पहुँचाने का भरसक प्रयास करूँगा। साथ ही मुझे लगता है आह्वान पत्रिका की नियमितता बरकरार नहीं रह पा रही है। इस चीज़ पर भी ध्यान दिया जाये।

पाठकों के पत्र : उठो, जागो और इस दुनिया को बदल दो!

इस वक्त में पाते हैं हम रातों को दरवाजों पर दस्तक,
फिर कहीं होती है दिल में धक-धक,
न जाने किस घर में खाकी वर्दी आई है,
खाकी वर्दी के लोगों के चेहरों पर झाँई हैं,
चारों ओर सायरनों का शोर है,
रात के सन्नाटे में मचाता आतंक घनघोर है,

पाठकों के पत्र : फासीवाद की चुनौती में वैकल्पिक मीडिया की अहम भूमिका होगी

मौजूदा दौर में जिस किस्म से मजदूरों, छात्रों, किसानों और नौकरीपेशा लोगों पर ये सरकार चौतरफा हमला कर रही है इस काम में मुख्य धारा की मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये ये फासीवादी जनता को भरमा रहे हैं। यह होना भी है क्योंकि भाजपा को सबसे ज़्यादा चन्दा देने वाले बड़े पूँजीपति भी मीडिया को चलाते हैं और ये पूरी तरह इनके हाथ में दस्तानों की तरह काम कर रहे हैं।

पाठक मंच, जनवरी-फरवरी 2018 – हमारी कैसी आज़ादी? – गुरदास सिधानी

बिच्छुओं के डंक,
साँपों ने अपनी कुण्डलिया छोड़ दी
तो बिच्छुओं ने कुर्सी को आ घेरा
फर्क क्या रहा
साँप भी डसते थे
डंक बिछुओं ने भी मारने
शुरू कर दिए
साँपों ने अपना जहर उगला
बिच्छुओं ने भी नहीं हटाई नजरें उस पर से

पाठक मंच, जुलाई-अगस्‍त 2017

मैं दो वर्ष से ‘आह्वान’ का नियमित पाठक हूँ। आह्वान के लेख काफी अच्छे होते हैं। विज्ञान का छात्र होने के नाते विशेष तौर पर मैं आह्वान लिया करता हूँ। लेकिन पिछले वर्ष से अनियमित आह्वान के प्रकाशन के कारण मैं काफी निराश हूँ। आह्वान जैसी क्रान्तिकारी पत्रिका का इस फासीवादी दौर में नियमित तौर पर निकलना ज़रूरी है। हालाँकि नियमित तौर पर पत्रिका का प्रकाशन, खास तौर पर प्रतिक्रिया के इस दौर में, न हो पाना कहीं न कहीं फासीवाद को साँस लेने देना होगा। आशा करता हूँ कि आह्वान पत्रिका नियमित तौर पर प्रकाशित होगी और इसकी भौतिकवादी द्वन्द्वात्मक पद्धति फिर से दुनिया को देखने, समझने, और बदलने का वैज्ञानिक नज़रिया प्रदान करेगी।

पाठक मंच, मई-जून 2016

सम्पादक महोदय, मैं पिछले तीन वर्ष से आह्वान का पाठक हूँ। मुझे आह्वान पत्रिका पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। इसके सभी लेखों को मैं ध्यान से पढ़ता हूँ। इस पत्रिका के लेख समाज की समस्याओं का गहराई से विश्लेषण करते हैं। आज समाज में ऐसी पत्रिकाओं की बहुत आवश्यकता है क्योंकि ये वैकल्पिक मीडिया का काम भी बख़ूबी करती है।

पाठक मंच

मैं पिछले एक साल से आह्वान पत्रिका की पाठिका हूँ। मुझे इसका बेसब्री से इन्तज़ार रहता है। अब तो लगातार दो बार से संयुक्तांक ही आये हैं। मेरी सम्पादक मण्डल से अपील है कि इसे नियमित किया जाये

पाठक मंच

  मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्‍बर 2015-फरवरी 2016 ‘आह्वान’ की सदस्‍यता लें!   ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में…

पाठक मंच

‘कतर में होने वाला फुटबाल विश्वकप, लूट और हत्या का खेल’ लेख भी अच्छा लगा जो बताता है कि किस तरह दुनियाभर की तमाम सरकारें जनता की बुनियादी ज़रूरतों को दरकिनार रखते हुए खेलों के बाजार पर अन्धाधुन्ध पैसा लुटा रही हैं। कतर में मूलभूत ढांचागत विकास के नाम पर मेहनतकशों की ज़िन्दगियों को मौत के मुँह में धकेला जा रहा है। विभिन्न जगहों पर किये गये कार्यक्रमों की रपटें भी अलग-अलग जगह पर होने वाले आन्दोलनों की अच्छी जानकारी देती हैं। चूंकि मुख्यधारा का मीडिया ऐसी खबरों को तवज्जो नहीं देता, इसलिए इस तरह की रपटें और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। पत्रिका वैकल्पिक मीडिया के तौर पर महत्वपूर्ण कार्य कर रही है – उम्मीद है इसकी नियमितता बरकरार होगी।