स्त्री उत्पीड़न और भाजपा का रामराज्य
नीशू
उत्तर प्रदेश इस समय हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशाला बना हुआ है। “रामराज्य” और “योगी के अपराधमुक्त प्रदेश” के कानफाड़ू शोर के बीच पिछले कुछ महीनों के भीतर प्रदेश भर में अलग-अलग जगहों से स्त्रियों के साथ होने वाली बर्बरता की घटनाएँ सामने आयी हैं। इनमें सबसे ताज़ा घटनाएँ हाथरस और बलरामपुर की हैं जिन्होंने पूरे देश को एक बार फिर झकझोर कर रख दिया है। उससे पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक दलित बच्ची के साथ बलात्कार और बर्बर हत्या के दो दिन बाद ही गोरखपुर में भी दलित बच्ची के साथ बर्बर बलात्कार और उत्पीड़न की घटना सामने आयी थी। फिर उसके दो दिन बाद ही भदोही में दसवीं की छात्रा के साथ बलात्कार करके उसका शरीर तेज़ाब से जलाकर नदी में फेंक दिया गया। इन हालिया घटनाओं के पहले प्रदेश में हापुड़, बुलन्दशहर, जालौन, लखनऊ, सीतापुर में भी बलात्कार व हत्या की ख़बरें आ चुकी हैं। कोविड-19 की महामारी के दौरान कानपुर के स्वरूपनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) में रह रहीं 171 लड़कियों में से सात गर्भवती और लॉकडाउन में 57 लड़कियाँ कोरोना संक्रमित और एक लड़की एचआईवी पॉजिटिव पायी गयी। इनमें से एक को छोड़कर बाक़ी की उम्र 18 साल से कम है। मामले सामने आने के बाद मैनेजमेण्ट और प्रशासन लीपापोती करने में लग गया और दोष उन नाबालिग़ बच्चियों पर ही मढ़ दिया।
सितम्बर के मध्य घटी हाथरस की घटना के बाद पूरा योगी प्रशासन आरोपियों को बचाने में जुटा रहा। आठ दिन प्रशासन को गैंगरेप का आरोप दर्ज करने में लग गये। बीते 29 सितम्बर को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में पीड़िता की मौत के बाद योगी की फ़ासिस्ट सरकार के इशारों पर यूपी पुलिस ने परिजनों की रज़ामन्दी के बिना ही रात 2:30 बजे शव को जला भज दिया ताकि बलात्कारियों और हत्यारों के ख़िलाफ़ सबूत ही न बचें। हाथरस और बलरामपुर की ये जघन्य घटनाएँ कोई संयोग या कुछ पागल, उन्मादी हत्यारों की हरक़त मात्र नहीं है। जब भी कोई फ़ासीवादी, प्रतिक्रियावादी, कट्टरपंथी सरकार सत्ता में होती है, तो समाज के बर्बर, बीमार और आपराधिक तत्वों को ऐसी वारदातों को अंजाम देने का खुला हाथ मिल जाता है। विशेष तौर पर, जब सरकार और शासक फ़ासीवादी पार्टी में ही कुलदीप सेंगर और चिन्मययान्द जैसे बलात्कारी नेताओं, विधायकों और सांसदों की भरमार हो, तो फिर बीमार मानसिकता के आपराधिक बला को छूट मिलना स्वाभाविक है। साथ ही, जब ऐसे बर्बर कृत्य करने वालों को कोई सज़ा तक नहीं मिलती, तो ऐसे अमानवीय तत्वों को यह लगता है कि उनकी हरक़तें सज़ा से परे हैं। नतीजतन, उनका हौसला बढ़ता है और वे घृणित स्त्री-विरोधी अपराधों को अंजाम देते हैं। इसलिए हमें यह समझने की ज़रूरत है कि स्त्री-विरोधी अपराधों में भाजपा के राज में जो अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है, वह कोई इत्तेफ़ाक नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब भी जनविरोधी, स्त्री-विरोधी, दलित-विरोधी व अल्पसंख्यक-विरोधी ताक़तें सत्ता में होती हैं, तो स्त्रियों के विरुद्ध बर्बर अपराधों में इज़ाफ़ा होता ही है।
आज सत्ता में वे ही लोग हैं जिन्होंने कुलदीप सिंह सेंगर से लेकर चिन्मयानन्द जैसे बलात्कारियों-अपराधियों को बचाने में दिन-रात एक कर दिये थे। कठुआ में एक 8 वर्षीय बच्ची के बलात्कारियों और हत्यारों के समर्थन में इन्होंने रैलियाँ तक आयोजित की थी। हमें भूलना नहीं चाहिए कि 2002 में गुजरात में सैकड़ों मुस्लिम स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी हत्या करने वाले लोग यही थे। इनके ‘नारी सशक्तीकरण’ और ‘बेटी-बचाओ’ के नारों के ढोल की पोल इस बात खुल जाती है कि आज भारत महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों की सूची में सबसे ऊपर पहुँच चुका है। जिन लोगों की विचारधारा में बलात्कार को विरोधियों पर विजय पाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता हो, जिस पार्टी का इतिहास ही बलात्कारियों को संरक्षण देने का रहा हो क्या उनसे हम स्त्रियों के लिये न्याय, सम्मान, सुरक्षा और आज़ादी की उम्मीद कर सकते हैं? जिस पार्टी के 43 प्रतिशत सांसदों, विधायकों के ऊपर बालात्कार, हत्या के गम्भीर मामले दर्ज हों उनसे न्याय की उम्मीद करना हमारी बेवक़ूफ़ी ही होगी।
योगी के “अपराधमुक्त” प्रदेश और मोदी के “रामराज्य” की स्थिति नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की इस साल जनवरी में आयी सालाना रिपोर्ट से जानी जा सकती है। महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ 2018 में कुल 3,78,277 मामले हुए जिसमें अकेले यूपी में 59,445 मामले दर्ज किए गये। यानी देश में महिलाओं के साथ हुए कुल अपराध का लगभग 15.8%। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बलात्कार की 4,322 घटनाएँ सामने आयी। यानी हर दिन बलात्कार की 11 से 12 घटना। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का जुमला उछालने वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में हर 15 मिनट में एक लड़की के साथ बलात्कार होता है। पिछले दिनों महिलाओं के साथ हुए बर्बर उत्पीड़न में अपराधी भाजपा के विधायक और मंत्री थे। इनमें से कुछ भाजपा और न्यायालय के रहमोकरम पर जेल से बाहर हैं जबकि नित्यानन्द की रिहाई के मामले में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने फूल-माला चढ़ाकर मिठाइयाँ भी बाँटी थी।
जब-जब फ़ासीवादी और घोर प्रतिक्रियावादी ताक़तें सत्ता के गलियारों में पहुँचती हैं तो समाज में बर्बर, अमानवीय और पाशविक तत्वों को हौसला मिलता है। फासीवाद जातिवादी व सवर्णवादी मानसिकता को बढ़ावा देने का काम भी करता है तथा साथ ही वह स्त्रियों को उपभोग की वस्तु समझने वाली पितृसत्तात्मक मानसिकता को भी मज़बूती प्रदान करता है। इन फासिस्टों की नज़र में स्त्री का अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है; स्त्रियों को महज़ पुत्र पैदा करने वाली मशीन बताया जाता है, जिनका कर्तव्य पुरुषों की सेवा करना है। यही “हिन्दू राष्ट्र” में उनकी जगह है! जो इसे “हिन्दुओं का राज” मानते हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि यह अम्बानी, अडानी, टाटा, बिड़ला और धनपशुओं का राज है, जिनकी सबसे अश्लीलता और नग्नता से नुमाइन्दगी आज मोदी सरकार कर रही है। यह पैसे की ताक़त ही वह बीमार और उन्मादी भोगवादी सोच पैदा करती है कि ये धनपशु स्त्रियों को भी भोग की वस्तु समझने लगते हैं, जिनको ‘मनी पावर’ और ‘मसल पावर’ के बूते ख़रीदा और भोगा जा सकता है। स्त्रियाँ उनके लिए जीती-जागती इंसान नहीं बल्कि महज़ माँस का एक पिण्ड रह जाती हैं, जिसे पैसे की ताक़त से मनमुआफ़िक तरीक़े से भोगा जा सकता है और फिर फेंका जा सकता है। यही सोच समाज के लम्पट वर्गों तक भी मौजूदा बाज़ारू सांस्कृतिक माध्यमों के ज़रिये पहुंचती है। नतीजतन, एक रुग्ण फासिस्ट फिरकापरस्त भीड़ पैदा होती है। और इसी में से वे तत्व पैदा होते हैं, जो ऐसी बर्बरताओं को अंजाम देते हैं, जिसके बारे में पशु भी नहीं सोच सकते हैं। यानी, जब ऐसी मानसिकता वाले सत्ता में हों तो पैसे के नशे में चूर और आपराधिक किस्म के लम्पटों का हौसला दिन दुनी रात चौगुनी गति से बढ़ जाता है। इसी का नतीजा यह है कि स्त्री विरोधी अपराध अपनी चोटी पर हैं। बाल वेश्यावृत्ति का धन्धा अरबों का है। महिलाओं के साथ होने वाली बर्बर घटनाओं, उनकी व्यक्तिगत आज़ादी को लेकर बहुत मुखर होकर सामने नहीं आता। जनमानस में स्त्रियों को लेकर पैठी दक़ियानूसी मानसिकता स्त्रियों के साथ होने वाले अपराधों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का कमज़ोर करती है और पूँजीवादी पितृसत्ता को मज़बूत करती है।
हमारी चुप्पी स्त्री-विरोधी मानसिकता को फलने-फूलने के लिए खाद-पानी देने का काम करती है। हमें आये दिन हो रही इस बर्बरता के असल कारणों को समझते हुए अपनी मुर्दा ख़ामोशी, अपनी शिथिलता को तोड़कर अपनी आवाज़ बुलन्द करनी होगी। इसके अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-अक्टूबर 2020
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