स्त्रियों का उत्पीड़न करता एक और बाबा पकड़ा गया !
चुनावबाज पार्टियों के राजनीतिक संरक्षण में पल रहे पाखण्डी बाबा !!
योगेश
दिल्ली में बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित के अलग-अलग “आध्यात्मिक विश्वविद्यालयों” व आश्रमों में लगभग 48 नाबालिग लड़कियों व महिलाओं को अवैध रूप से बन्धक बनाकर रखा गया था। इन आश्रमों में लड़कियों व महिलाआें को धर्म और आध्यात्मिकता की आड़ में उत्पीड़न किया जाता था। बाबा के रोहिणी, द्वारका, नांगलोई के आश्रमों में कई नाबालिग लड़कियों व महिलाओं को बंधक बनाकर रखा गया था। इन आश्रम में महिलाओं और लड़कियों का शारीरिक शोषण भी आम बात थी। दिल्ली के करावलनगर इलाके के आश्रम में छह लड़कियों के बन्द होने का पता चला। खबरों के मुताबिक पुलिस के आने से पहले ही कई लड़कियों को आश्रम से हटा दिया गया था।
लेकिन बाबाओं द्वारा जारी यह घृणास्पद खेल कोई नई बात नहीं है। इनके द्वारा महिलाओं, विशेष तौर पर गरीब घर की महिलाओं का उत्पीड़न भी आये दिन अखबारों-न्यूज़ चैनलों की सुर्खियों में रहते हैं। इससे पहले बलात्कार के आरोपी आसाराम बापू से लेकर राम-रहीम और रामपाल जैसे बाबाओं की काली करतूतें सामने आई थी। इन सबके आश्रम गलाज़तों के अड्डे बने हुए थे। तो फिर क्या कारण है कि इन बाबाओं पर कोई लगाम नहीं कसी जा रही है? इनके ‘धंधों’ के फलने-फूलने के क्या कारण हैं? आज समाज में जनता के जीवन में जो दुख-दर्द और अनिश्चितता इस पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा थोपी गई है। उससे छुटकारा पाने के लिए ही लोग इन बाबाओं की शरण में जाते हैं। उनमें भी वे, जो सबसे ज्यादा दबाये और सताए गए हैं, जैसे कि स्त्रियाँ, इन बाबाओं द्वारा परोसी जा रही अन्धविश्वास अतार्किकता और ढकोसलों की अफीम का सेवन अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए करते हैं- अपने दुख-तकलीफों के कारणों को इस व्यवस्था में न तलाश कर इन्हें ‘भाग्य का लेखा’ और ‘पिछले जन्म के कर्म’ मान लिया जाता है। जनता के व्यापक हिस्से की इसी पिछड़ी चेतना और पहले से ही जड़ जमाई हुई अतार्किकता का फायदा ये जमकर उठाते हैं और लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। हालाँकि पढ़े-लिखे तबके का भी एक बड़ा हिस्सा इन बाबाओं के चक्कर में रहता है। लेकिन इससे भी बड़ा सच है है कि बाबाओं का यह साम्राज्य चुनावी पार्टियोें के प्रश्रय और संरक्षण के बिना चल ही नहीं सकता है। बाबाओं के पीछे चलने वाली भीड़ को चुनावी पार्टियाँ अपने वोट-बैंक के तौर पर देखती हैं। वैसे तो इन सभी बाबाओं को अलग-अलग चुनावबाज पार्टियों का संरक्षण मिलता रहा है। लेकिन केन्द्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से इस तरह के बाबाओं का साम्राज्य और बढ़ गया है। ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ का श्री-श्री रविशंकर अपने शिविरों में भाजपा और संघ परिवार की खुलकर वकालत करता है। ये वही है जिसने हाल ही में दिल्ली में यमुना के आस-पास की वनस्पतियों और बायो-डाइवर्सिटी को अपने एक कार्यक्रम के दौरान काफी नुकसान पहँुचाया था। और एनजीटी द्वारा 500 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाने के बाद भी इस बाबा ने जुर्माना भरने से साफ मना कर दिया और क़ानून के इस खुले उल्लंघन के लिए इसके खि़लाफ़ कोई कारवाई भी नहीं हुई! और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस मंच पर शिरकत करने पहुँच गए। राम रहीम से लेकर आसाराम बापू तक सबको भाजपा सरकार और संघ का आश्रय प्राप्त था। जहाँ तक इस बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित का सवाल है तो खुद केेन्द्रीय मन्त्री स्मृति ईरानी इसके सामने शीश नमन करती थी।
स्पष्ट है कि चुनावबाज पार्टियों की मिलीभगत के बिना इन बाबाओं का लम्बे समय तक टिके रहना सम्भव नहीं। इन बाबाओं द्वारा लोगों में अन्धविश्वास और अतार्किकता को बढ़ावा दिया जाता है और इससे काफी फायदा चुनावी पार्टियों को भी मिलता है। ये पार्टियाँ भी यही चाहती हैं कि लोग अन्धभक्त बन अपने जीवन की समस्याओं के मूल कारण तक न पहुँचें और कभी इस पार्टी को कभी उस पार्टी को वोट देते रहें। साफ है कि नेताओं और सत्तारूढ़ पार्टी के गठजोड़ के बिना इन बाबाओं के इतने बड़े आश्रम खुल ही नहीं सकते। जनता को पारलौकिक सुख का पाठ पढ़ाने वाले ये बाबा इहलोक में ही अपना जीवन सवाँर लेते हैं और करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति के स्वामी बन जाते हैं! इसलिए सरकार व चुनावी पार्टियों की मिलीभगत से ही ये बाबा और इनके अनगिनत आश्रम कुकुरमुत्तों की तरह पूरे देश में फल-फूल रहे हैं।
आज पूरे देश में सबसे पहली माँग तो यह बनती है कि इन सभी बाबाओं पर नकेल कसने के लिए केंद्र सरकार ‘अन्ध-श्रद्धा निर्मूलन कानून’ पारित कर ऐसे सभी बाबों की ‘दुकानें’ और ‘धन्धे’ बन्द करें। ‘अच्छे और सच्चे’ बाबा एक मिथक है। धर्म सभी नागरिकों का व्यक्तिगत मसला है और सार्वजानिक जीवन में इसका हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही प्रत्येक सरकार को राज्य में अंध-विश्वास विरोधी कानून जल्दी से पारित करना चाहिए। ज्ञात हो की ‘आम आदमी पार्टी’ की स्वाति मालीवाल, जो दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा भी है, ने इस वीरेंद्र दीक्षित के आश्रम पर छापा मारा था। लेकिन एक बाबा को पकड़ने से इस समस्या का अन्त नहीं हो सकता। इस बाबे के खि़लाफ़ तो सख़्त से सख़्त कार्रवाई तो होनी ही चाहिए- साथ ही सरकारों को अगर जनता और महिलाओं के प्रति वास्तव में कोई प्रतिबद्धतता और सरोकार है तो कम से कम ऐसे कानून को जल्द से जल्द पास किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार ने 2013 में जन-दबाव के चलते अन्ध-श्रद्धा निर्मूलन कानून पारित किया था, इसके अलावा, आज जनता के व्यापक हिस्से में अन्ध-श्रद्धा और अतार्किकता के खि़लाफ़ व्यापक प्रचार अभियान चलाये जाने की जरुरत है। लोगों को उनके जीवन की तकलीफों के असली कारण से अवगत कराये जाने की जरुरत है। जोकि वास्तव में पूँजीवाद ही है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जनवरी-फरवरी 2018
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