टाटा की काली करतूतें और उसकी नैनो
क्या टाटा को या नैनो के स्पेयर पार्ट्स बनाने वाली सहयोगी कम्पनियों को, मैन्युफ़ैक्चरिंग के लिये कच्चा माल उनके द्वारा बनायी जा रही अन्य गाड़ियों की अपेक्षा सस्ता मिला होगा? नहीं ऐसा तो हो नहीं सकता क्योंकि कच्चे माल के उत्पादन पर टाटा जैसे लोगों का ही कब्जा है और वे अपने मुनाफ़े में कमी करने से रहे। क्या टाटा ने नैनो परियोजना में लगे प्रबन्धन अधिकारियों और इन्जीनियरों को कम वेतन दिया होगा? ऐसा तो कदापि हो ही नहीं सकता। उनको तो और अधिक ही दिया गया होगा। तो फ़िर टाटा गाड़ी की लागत कहाँ से पूरा करेगा? यह एक अहम सवाल है। और इसका जवाब एकदम साफ़ है। वह लागत पूरी करेगा और मुनाफ़ा भी कमायेगा; मज़दूरों, मेहनतकशों के खून को निचोड़कर। उसके लिये कम से कम कीमत पर खेती की जमीन खरीदेगा और किसानों पर विरोध करने पर गोलियाँ बरसायेगा। निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों से कम से कम कीमत पर ज्यादा से ज्यादा घण्टे काम करवायेगा तब कहीं जाकर उसकी गाड़ी तैयार होगी। टाटा ये सब करेगा तभी जाकर इतनी कम कीमत पर वह गाड़ी बना पायेगा, वरना इसके अलावा कोई रास्ता नहीं।