Category Archives: दमनतंत्र

लेने आये अनाज कूपन, मिली गोली

देश की सम्पूर्ण आबादी को भोजन उपलब्ध कराने वाली आम मेहनतकश ग़रीब किसान आबादी कालाहाण्डी और विदर्भ में आत्महत्याएँ करने को मजबूर है, देश के कारखानों में काम करने वाला मज़दूर जो ऐशो-आराम के सारे साज़ो-सामान बनाता है, सड़कें और इमारतें बनाता है, वह जीवन की बुनियादी शर्तों से क्यों वंचित है? क्योंकि इस शासन व्यवस्था के पैरोकारों के दिमाग़ पर लूट की हवस सवार है, जो शोषण की मशीनरी को चाक-चौबन्द करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय में पुलिस दमन के विरोध में छात्रों का जोरदार आन्दोलन

लेकिन इस आंशिक विजय के बावजूद अच्छी बात यह रही कि सारे चुनावबाज इस क्रम में पूरी तरह बेनकाब हो गये और आम छात्रों के बीच उनकी काफी लानत–मलामत हुई। इस आन्दोलन की विजय इस बात में निहित नहीं है कि सारी माँगें पूरी हुईं या नहीं हुईं। इसके विजय की असली कसौटी यह थी कि- (1) कोई भी पुलिस अधिकारी अब ऐसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा; (2) छात्रों की निगाह में दलाल चुनावबाज छात्र संगठनों का चरित्र बिल्कुल साफ हो गया। दिशा छात्र संगठन को मानसरोवर के छात्रों का पूरा समर्थन मिला।

“पैदा इुई पुलीस तो इबलीस ने कहा…”

शैतान के गर्भ से पैदा होने वाला तो शैतान जैसा चरित्र लेकर ही पैदा होगा। परन्तु आम घरों के बच्चे तो एक साधारण इंसान की तरह पलते-बढ़ते हैं। लेकिन जब वे पुलिस के मुलाजिम बनते है तो उनमें इन्सानियत ख़त्म होती है और यह खुद-ब-खुद नहीं होता। व्यवस्था योजनाबद्ध ढँग से उन्हें ऐसा बना देती है। यह व्यवस्था पैसों पर टिकी है और थोड़े से धन्नासेठों और मुनाफ़ाखोरों के लिए बनी है। आम घरों से जाने वाले नौजवानों के कन्धों पर जिस दिन पुलिस का बिल्ला लगाया जाता है उसी दिन से उन्हें ऐसे माहौल में रखा जाता है जो उन्हें लोगों के दुःख-दर्द और परेशानियों से उदासीन बनाना शुरू कर देता है। और पूरी ट्रेनिंग के दौरान यही बात उनके दिलो-दिमाग़ में ठूँस– ठूँस कर भरी जाती है कि जनता यानी भेड़-बकरी। हाँ! दो मुख्य कामों में बहुत ही एहतियात और सावधानी बरतने की बात कदम-कदम पर बतायी जाती है। पहली, कि धन्नासेठों और विशिष्ट जनों की देखभाल करना। दूसरी, आला अधिकारियों की जेबें गरम करने में कत्तई गड़बड़ी न करना। उनकी पदोन्नति इत्यादि का रास्ता यहीं से होकर जाता है। हर थाने से पुलिस के आला अधिकारियों को जाने वाले फ़िक्स रक़म के लिए इन्हें हर तरह के कुकर्म करने पड़ते हैं। लोगों को मार-पीट कर, फ़र्जी मुकदमा गढ़कर, धमकाकर अनेकों तरीकों से ये पैसे वसूल करने होते हैं।

नौजवान भारत सभा की पुलिस दमन–विरोधी मुहिम

‘नौजवान भारत सभा’ ने इस पुलिसिया दमन के खिलाफ़ आवाज़ उठाते हुए ‘पुलिस दमन विरोधी मुहिम’ चलाई। नौभास ने माँग की कि परमेश्वर की हिरासत में हुई मौत की उच्चस्तरीय जाँच की जाए, दोषी पुलिस कर्मियों को तत्काल निलम्बित किया जाए और उन पर हत्या का मुकदमा चलाया जाए, और परमेश्वर के मोहल्ले से गिरफ़्तार लोगों को तत्काल रिहा किया जाए। इसके ख़िलाफ़ 17 मार्च की शाम को करावलनगर में एक जनसभा की गई। पुलिस को बेनकाब करते हुए पर्चा बांटा गया। फ़िर हस्ताक्षर अभियान चलाकर करीब दो हजार हस्ताक्षर वाला माँगपत्रक 21 मार्च को पुलिस आयुक्त मुख्यमंत्री उपराज्यपाल, अध्यक्ष मानवाधिकार आयोग, को सौंपा गया।

सत्ताधारियों का आतंकवाद

आतंकवाद का ख़ात्मा विश्व साम्राज्यवाद के ख़ात्मे के साथ ही होगा क्योंकि वही आतंकवाद के पनपने की ज़मीन तैयार करता है। जब तक जनता की ऊर्जा क्रान्तिकारी और परिवर्तनकारी दिशा में नहीं मोड़ी जाती, तब तक आतंकवाद पनपता रहेगा और उसके ख़ात्मे के नाम पर यह व्यवस्था बेगुनाहों के ख़ून से अपने हाथ रंगती रहेगी।