Tag Archives: आह्वान पुस्तिका

प्रेम, परम्परा और विद्रोह

दो स्त्री-पुरुष नागरिकों के प्रेम करने की आज़ादी का प्रश्न एक बुनियादी अधिकार का प्रश्न है। व्यक्तिगत विद्रोह इस प्रश्न को महत्ता के साथ एजेण्डा पर लाते हैं लेकिन मध्ययुगीन सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों-संस्थाओं के विरुद्ध दीर्घकालिक, व्यापक, रैडिकल सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन के बिना इन मूल्यों को अपना हथियार बनाने वाली फासिस्ट शक्तियों के संगठित प्रतिरोध के बिना और इन मूल्यों को अपना लेने और इस्तेमाल करने वाली सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष के बिना प्रेम करने की आज़ादी हासिल नहीं की जा सकती। प्रेम की आज़ादी के लिए केवल मध्ययुगीन मूल्यों के विरुद्ध संघर्ष की बात करना बुर्जुआ प्रेम का आदर्शीकरण होगा। पूँजीवादी उत्पादन-सम्बन्ध के अन्तर्गत सामाजिक श्रम-विभाजन और तज्जन्य अलगाव के होते, न तो स्त्रियों की पराधीनता समाप्त हो सकती है और न ही पूर्ण समानता और स्वतन्त्रता पर आधारित स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ही अस्तित्व में आ सकते हैं।

क्रान्तिकारी छात्र-युवा आन्दोलन

पिछले कुछ दशकों में भारतीय समाज में आये परिवर्तनों के साथ ही उच्च शिक्षा संस्थानों के बदलते वर्ग चरित्र पर दृष्टिपात करते हुए इन लेखों में क्रान्तिकारी छात्र-युवा आन्दोलन के समक्ष मौजूद नयी चुनौतियों की चर्चा की गयी है और यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि क्रान्तिकारी छात्र-युवाओं को मेहनतकश वर्गों के बीच जाना चाहिए, उनके साथ घनिष्ठ रिश्ते बनाने चाहिए, मज़दूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश जनता के संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी करनी चाहिए और उसके संघर्षों के साथ अपने संघर्षों को जोड़ना चाहिए क्योंकि ऐसा किये बिना वे उस पूँजीवादी व्यवस्था को क़त्तई नष्ट नहीं कर सकते जो सभी समस्याओं की जड़ है।

आतंकवाद के बारे में: विभ्रम और यथार्थ

आतंकवाद अपने क्रान्तिकारी और प्रतिक्रियावादी दोनों ही रूपों में, मुख्यतः – साम्राज्यवाद और पूँजीवाद की दमनकारी राज्यसत्ताओं की, राजकीय आतंकवाद की प्रतिक्रिया है। आतंकवाद पुनरुत्थान, विपर्यय और प्रतिक्रान्ति के अँधेरे में दिशाहीन विद्रोह और निराशा के माहौल की एक अभिव्यक्ति है। आतंकवाद जनक्रान्ति की नेतृत्वकारी मनोगत शक्तियों की अनुपस्थिति या कमज़ोरी या विफलता की भी एक अभिव्यक्ति और परिणति है। यह कल्पनावादी, रोमानी, विद्रोही मध्यवर्ग की अपने बूते आनन–फ़ानन में क्रान्ति कर लेने की उद्विग्नता और मेहनतकश जनसमुदाय की संगठित शक्ति एवं सृजनशीलता में उसकी अनास्था की अभिव्यक्ति और परिणाम है। आतंकवादी भटकाव को भलीभाँति समझना और उसके विरुद्ध अनथक विचारधारात्मक संघर्ष चलाना नये सिरे से जनक्रान्ति की तैयारी के इस दौर का एक अनिवार्यतः आवश्यक कार्यभार है।

आरक्षण पक्ष, विपक्ष और तीसरा पक्ष

सत्ताधारी वर्ग जब नौकरियों या उच्च शिक्षा में आरक्षण का लुकमा फेंकते हैं तो पहले से नौकरियों पर आश्रित, मध्यवर्गीय, सवर्ण जातियों के छात्रों और बेरोज़गार युवाओं को लगता है कि आरक्षण की बैसाखी के सहारे दलित और पिछड़ी जातियाँ उनके रोज़गार के रहे-सहे अवसरों को भी छीन रही हैं। वे इस ज़मीनी हक़ीक़त को नहीं देख पाते कि वास्तव में रोज़गार के अवसर ही इतने कम हो गये हैं कि यदि आरक्षण को एकदम समाप्त कर दिया जाये तब भी सवर्ण जाति के सभी बेरोज़गारों को रोज़गार नहीं मिल पायेगा। इसी तरह दलित और पिछड़ी जाति के युवा यह नहीं देख पाते कि यदि आरक्षण के प्रतिशत को कुछ और बढ़ा दिया जाये और यदि वह ईमानदार और प्रभावी ढंग से लागू कर दिया जाये, तब भी दलित और पिछड़ी जातियों के पचास प्रतिशत बेरोज़गार युवाओं को भी रोज़गार नसीब न हो सकेगा। उनके लिए रोज़गार के जो थोड़े से नये अवसर उपलब्ध होंगे, उनका भी लाभ मुख्यतः मध्यवर्गीय बन चुके दलितों और आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पिछड़ी जातियों के लोगों की एक अत्यन्त छोटी-सी आबादी के खाते में ही चला जायेगा तथा गाँवों-शहरों में सर्वहारा-अर्द्धसर्वहारा का जीवन बिताने वाली बहुसंख्यक आबादी को इससे कुछ भी हासिल नहीं होगा।

Reservation Support, Opposition and Our Position

when the ruling class hurls the bait of reservation in employment or higher education, the students and unemployed youth belonging to middle class and upper castes, who are already dependent on jobs for their livelihood think that the “dalits” and backward castes are now even robbing them off their remaining opportunities of employment with the aid of the crutches of reservation. They are unable to perceive this ground reality that in fact the opportunities for employment have dwindled away so much that even if the reservation is completely brought to an end, not all the unemployed from the upper castes will get employment. Similarly the youth belonging to “dalit” and backward castes fail to realise that if the percentage of reservation is raised a little more and if it is implemented in an honest and effective manner, even then not even fifty percent of unemployed youth from “dalit” and the backward castes will obtain employment. Whatever meagre opportunities for employment will be available to them, even their benefits will primarily be reaped by an exceedingly small population of “dalits” who have joined middle class and people belonging to economically, socially and politically influential backward castes; and the vast majority of population living their lives as proletariat-semi proletariat will obtain almost nothing from it.

छात्र-नौजवान नयी शुरुआत कहाँ से करें?

आज कैम्पस केन्द्रित छात्र आन्दोलनों की सम्भावनाएँ वस्तुगत तौर पर भी कम हो गयी हैं। छात्र आन्दोलन और नौजवान आन्दोलन के संयुक्त रूप में एक छात्र-युवा आन्दोलन के रूप में संगठित होने की अनुकूल परिस्थितियाँ अब पहले हमेशा से अधिक तैयार हैं और उसे व्यापक मेहनतकश अवाम के पूँजी-विरोधी संघर्षों से सीधे जोड़ देने की सम्भावनाएँ भी पहले से अधिक पैदा हो गयी हैं। पूरे समाज से लेकर कैम्पस तक में आये संरचनागत बदलावों के चलते, क्रान्तिकारी छात्र आन्दोलन के पुराने जड़ीभूत, बद्धमूल साँचे और खाँचे को पूरी तरह से बदल देना होगा और उपरोक्त बदलावों के मद्देनज़र एक नये कार्यक्रम के आधार पर नयी शुरुआत करनी होगी।