कश्मीर: यह किसका लहू है कौन मरा!
भारतीय राज्यसत्ता द्वारा सारी कश्मीर की अवाम को आतंकी के रूप में दिखाने की कोशिश कश्मीरी जनता के संघर्ष को बदनाम करने और कश्मीर में भारतीय राज्यसत्ता के हर जुल्म को जायज ठहराने की घृणित चाल है। पिछले लगभग छ: दशकों से भी अधिक समय के दौरान भारतीय राज्यसत्ता द्वारा कश्मीरी जनता के दमन, उत्पीड़न और वायदाखि़लाफ़ी से उसकी आज़ादी की आकांक्षाएँ और प्रबल हुई हैं और साथ ही भारतीय राज्यसत्ता से उसका अलगाव भी बढ़ता रहा है। बहरहाल सैन्य दमन के बावजूद कश्मीरी जनता की स्वायत्तता और आत्मनिर्णय की माँग कभी भी दबायी नहीं जा सकती। मगर यह बात भी उतनी ही सच है कि पूँजीवाद के भीतर इस माँग के पूरा होने की सम्भावना नगण्य है। भारतीय शासक वर्ग अलग-अलग रणनीतियाँ अपनाते हुए कश्मीर पर अपने अधिकार को बनाये रखेगा। भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक वर्ग अपने हितों को साधने के नज़रिये से कश्मीर को राष्ट्रीय शान का प्रश्न बनाए रखेंगे।