Tag Archives: आतंकवाद

पेशावर की चीख़ें

पाकिस्तान और ऐसे ही कई मुल्कों में आतंकवाद दरअसल साम्राज्यवादी पूँजीवाद और देशी पूँजीवाद की सम्मिलित लूट की शिकार जनता के प्रतिरोध को बाँटने के लिए खड़े किये गये धार्मिक कट्टरपन्थ का नतीजा है। इस दुरभिसन्धि में जनता दोनों ही आतंक का निशाना बनती है चाहे वह धार्मिक कट्टरपन्थी आतंकवाद हो या फिर उसके नाम पर राज्य द्वारा किया जाने वाला दमनकारी आतंकवाद।

नार्वे के नरसंहार की अन्तःकथा

इस घटना ने एक बार फिर इस इतिहाससिद्ध तथ्य को फ़िर पुख़्ता किया है कि मज़हबी, नस्ली और सांस्कृतिक कट्टरपंथी आर्थिक कट्टरपंथ की ही जारज औलादें है। इतिहास और वर्तमान दौर में भी फ़ासीवादी ताक़तों के उभार ने यही साबित किया है।

नया आतंकवाद-विरोधी कानून – असली निशाना कौन?

इस कानून की चपेट में इस्लामी कट्टरपंथी आतंकवादी ताकतें कितनी आएँगी यह तो समय बताएगा लेकिन पहले के आतंकवाद-विरोधी कानूनों की चपेट में कौन आया है इसका इतिहास गवाह है। पोटा और टाडा जैसे कानूनों के निशाने पर सबसे अधिक जनपक्षधर ताक़तें, क्रान्तिकारी संगठन और अल्पसंख्यक समुदाय की ग़रीब जनता आयी। इस कानून के साथ भी ऐसा ही होगा यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है। अतीत का अनुभव बताता है कि यह व्यवस्था सामाजिक बदलाव की इच्छा रखने वाले लोगों की गतिविधियों पर आतंकवाद का लेबल चस्पाँ कर उनकी राह में बाधा पैदा कर जनता को संगठित करने के काम को रोकना चाहती है।

मुम्बई पर आतंकवादी हमलाः सोचने के लिए कुछ ज़रूरी मुद्दे

कोई भी संवेदनशील और न्यायप्रिय नागरिक और नौजवान पूरे दिल से इन हमलों की निन्दा करेगा और इन्हें एक जघन्य अपराध मानेगा। हर कोई जानता है कि इन हमलों में तमाम आम, बेगुनाह लोगों की जानें गई हैं। उनके परिजनों-मित्रों के दर्द को हर कोई महसूस कर सकता है। इसमें कोई शक़ नहीं है कि ऐसे मानवताविरोधी कृत्यों की निन्दा सिर्फ़ औपचारिक रूप से दुख प्रकट करके नहीं की जा सकती और एक सोचने-समझने वाला इंसान अपने आपको ऐसे औपचारिक खेद-प्रकटीकरण तक सीमित नहीं रख सकता है। लेकिन हर विवेकवान नौजवान के लिए इस समय यह भी ज़रूरी है कि अंधराष्ट्रवादी उन्माद की लहर में बहने की बजाय वह संजीदगी के साथ आतंकवाद के मूल कारणों के बारे में सोचे? जिन आतंकवादियों ने मुम्बई में इस भयंकर हमले को अंजाम दिया वे जानते थे कि इसके बाद उनका बच पाना सम्भव नहीं है। इसके बावजूद वह कौन–सा जुनून और उन्माद था जो उनके सिर पर सवार था?

सत्ताधारियों का आतंकवाद

आतंकवाद का ख़ात्मा विश्व साम्राज्यवाद के ख़ात्मे के साथ ही होगा क्योंकि वही आतंकवाद के पनपने की ज़मीन तैयार करता है। जब तक जनता की ऊर्जा क्रान्तिकारी और परिवर्तनकारी दिशा में नहीं मोड़ी जाती, तब तक आतंकवाद पनपता रहेगा और उसके ख़ात्मे के नाम पर यह व्यवस्था बेगुनाहों के ख़ून से अपने हाथ रंगती रहेगी।