‘आह्वान’ का नया अंक मिला। हमेशा की तरह विचारोत्तेजक था। मारुति सुजुकी मज़दूरों पर आये लेख ने अपनी जटिलता के बावजूद बहुत से भ्रमों का निवारण किया। निश्चित तौर से आज देश के मज़दूर आन्दोलन में प्रचलित अराजकतावादी प्रवृत्तियों के निरन्तर नकार की आवश्यकता है। व्यवस्थित शोषणकारी व्यवस्था को व्यवस्थित प्रतिरोध ही ध्वस्त कर सकता है।
कृत्रिम चेतना पर आया लेख ज्ञानवर्द्धक था। विज्ञान के कॉलम में नियमितता नहीं बन पा रही है, उसे बरकरार रखने का प्रयास करें। पहले के अंकों में कुछ विशेष राजनीतिक फिल्मों की समीक्षाएँ आयीं थीं, उन्हें भी दुबारा शुरू किया जाना चाहिए। फिल्मों का आज के युवाओं की मानसिकता पर जो प्रभाव पड़ता है, उसके मद्देनज़र पूँजीवादी प्रचार का नकार करने के लिए फिल्म समीक्षाएँ दी जानी चाहिए।