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पाठक मंच

शहीदे-आज़म भगतसिंह के जेल नोट्स के कुछ नये अंश देखकर यह पुरानी छवि और सुदृढ़ हो गयी कि भगतसिंह बीसवीं सदी के भारत के महान और साहसी क्रान्तिकारी ही नहीं थे बल्कि अगुआ चिन्तक भी थे। हावर्ड जिन, बरेली के दंगों और बजट पर आयी सामग्री प्रशंसनीय थी। समाज परिवर्तन की मुहिम में निश्चित रूप से ‘आह्वान’ एक धारदार हथियार का काम कर रहा है। मेरा साथ सहयोग सतत् उपलब्ध रहेगा।

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उस समय मैं कक्षा–11 में पढ़ता था। सन् 2005 की बात है। गोरखनाथ के पुल से आगे बढ़ने पर एक पान की दुकान थी ‘‘विकास पान भण्डार’’। मैं पान लेने गया हुआ था कि कुछ दूरी पर भीड़ दिखाई दी। करीब जाने पर पता चला कि एक व्यक्ति एक बूढ़ी महिला को घसीटते हुए पीट रहा था। और उस वृद्धा का लड़का उसे बचाने के कोशिश में उस व्यक्ति से मार खा रहा था। वह गुण्डे टाइप का व्यक्ति उस बूढ़ी महिला से ‘पैसा वसूलने’ आया था। कुछ दिन पहले वह और उसका लड़का वहीं छोटी–सी ज़मीन पर एक मेज लगाकर अण्डे बेचा करते थे। आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। आज उन्हें इस तरह मार खाता देख उन पर दया आ रही थी और करता भी क्या ? सारे लोग तमाशबीन बने देख रहे थे। वह चिल्ला–चिल्ला कर कह रही थी ‘‘किसी में हिम्मत नहीं है जो इस बाबा के आदमियों के खिलाफ आवाज उठाये, उससे लड़ाई मोल ले। ये लोग मुझे चैन से जीने–खाने भी नहीं देते।’’

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इस अंक में संकलित आलेख, सूचनाएँ और कविताएँ क्रान्ति की अदभुत चिंगारी लिये हुए हैं। यह मानवता के हित एक नये मानव के निर्माण के साथ-साथ प्रतिरोधी दानवीय शक्तियों का खात्मा भी करेगी। यह देश के युवाओं को एक नई जीवन दृष्टि, एक सही इतिहासबोध  और मानवीय समझ देगी। हमारी संकल्प दृढ़ता और विस्तृत कर्त्तव्य-बोध ही हमारी सफ़लता का कारक होगा, हमारी यह आकांक्षा है।

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मैं ‘आह्वान’ का नियमित पाठक रहा हूँ। पिछले कुछ समय से मैं सामाजिक कामों से भी जुड़ा हुआ हूँ। पिछले अंक में साथी अरविन्द की असमय मृत्यु के बारे में जानकर बेहद दुख हुआ। साथी अरविन्द हमारे लिए निश्चित रूप से प्रेरणा का अजस्र स्रोत बने रहेंगे। मैं तहे-दिल से उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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आह्वान का जनवरी–मार्च 2008 अंक पढ़कर अपार खुशी मिली । आज जबकि क्रान्ति पर प्रतिक्रान्ति की लहर हावी है और गतिरोध के कारण बर्बादी का माहौल छा चुका है जिसके बलबूते पर नकारात्मक ताकतें अंधेरगर्दी, बेइंसाफी और धक्कड़शाहियों का ताण्डव दिनदिहाड़े सरेआम कर रही हैं तब ही शोषितों और मनुष्य की आजादी के परवानों को एकसूत्र में पिरोने के लिए किसी ‘‘आह्वान’’ की जरूरत थी । और यह जिम्मेदारी ‘आह्वान’ बखूबी निभा रहा है ।

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‘आह्वान’ मिली। ‘आह्वान’ मानवता के हित इंकलाब का परचम है। इसकी अंतर्वस्तुओं में गूँजती बातें, इंकलाब का नारा है, भुजाओं का फ़ड़कना और मुट्ठियों का भिंचना, कुछ कर गुज़रने के संकल्प की प्रतिबद्धता है। मूल्यों के हित क्रान्ति के इस हरावल दस्ते में देश के हर युवा की एकजुटता ज़रूरी है। एक नया मानवीय इतिहास रचने को सदियों से शोषित-वंचित और उत्पीड़ित मानवता के हित दरिन्दों के ख़िलाफ़ कुछ सार्थक कर गुज़रना ही आदमी होने की पहचान है। मैं सोचता हूँ कि काश, अपनी रचनाधर्मिता के अलाव कुछ और कर पाता।

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आह्वान एक उमंग भर देने और तरो–ताजा कर देने वाली पत्रिका है। इसमें लिखने वाले भी इस समाज के बारे में भी अच्छा जानते हैं। उनकी लिखी बातें, दिलो–दिमाग पर छा जाती है। आह्वान से ही मुझे कविताएँ पढ़ने का शौक भी लगा है। और सभी पाठकों से यह भी कहना चाहता हूँ कि इस पत्रिका को आप ख़ुद भी पढ़ें तथा और दोस्तों को भी इसे पढ़ायें।

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राजस्थान विश्वविद्यालय (जयपुर) के बाहर दो युवा साथियों (भूलवश नाम याद नहीं) के आत्मीय वार्तालाप द्वारा (ताः 20/12) आह्वान से परिचित हुआ। दोनों साथियों को धन्यवाद कि उन्होंने मेरे वैचारिक स्तर को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पत्रिका से परिचित कराया।