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पाठक मंच

‘आह्वान’ अपने संकल्प के मुताबिक हर चीज़ पर सही तथा बेलाग-लपेट बात जनता के बीच लेकर जा रहा है। इसी कड़ी में इस बार का अंक भी सराहनीय था। ख़ासकर विकल्प के बारे में आया सम्पादकीय बेहद महत्वपूर्ण था। लेख में क्रान्तिकारी विकल्प की समस्याओं पर बात के साथ बहेतू-सट्टेबाज़ दार्शनिकों की अच्छी शिनाख़्त की गई है। दवा उद्योग पर आया लेख भी अच्छा है। प्रो. एजाज अहमद पर आया लेख प्रो. साहब के मौजूदा लेखन की पड़ताल तो करता ही है साथ में कई भ्रम भी दूर करता है। साथी पिछले कई अंको से ‘अन्तर्दृष्टि’ नामक स्तम्भ नहीं दिया जा रहा है। इसके अन्तर्गत आए लेख बेहद विचारोत्तेजक लगे। यदि इस स्तम्भ को जारी रखें तो पाठकों के लिए काफी अच्छा रहेगा। आह्वान को मेरा सहयोग जारी रहेगा।

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आह्वान पत्रिका इस समय की सबसे महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में से है। यही पत्रिका देश-विदेश में हो रहे बदलावों का जनपक्षधर विश्लेषण करती है। एफ.डी.आई. पर सही क्रान्तिकारी अवस्थिति, यूरोजोन संकट तथा आधुनिक भौतिकी पर आये लेख सराहनीय हैं। इन्जीनियरिंग कॅालेज में पढ़ने के कारण हमें इतना समय ही नहीं मिलता है कि हम इन विषयों पर सही समझ विकसित कर सकें। हालांकि टी.वी., इन्टरनेट व अखबारों से जमा होकर सूचनाओं का विशाल भण्डार तो होता है लेकिन वह हमें सच्चाई के करीब पहुँचने नहीं देता है। आह्वान इस मायने में एक वैकल्पिक क्रान्तिकारी मीडिया का रोल अदा कर रही है तथा जनपक्षधर सच्चाई बयान कर रही है।

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पिछले दिनों रेल में सफ़र के दौरान कुछ नौजवान मिले जो अलग ही अन्दाज़ में एक क्रान्तिकारी प्रचार अभियान चला रहे थे। उन्हीं से मुझे आपकी यह पत्रिका मिली। इसने मेरे कई पूर्वाग्रहों को ख़त्म करने का काम किया है। अन्ना हज़ारे की मुहिम की राजनीतिक आलोचना आपने इतने बेबाक तथा इतने सटीक ढंग से की है कि इसने भ्रष्टाचार की समस्या के प्रति मेरे नज़रीये को प्रभावित किया है। मुझे भी काफ़ी हद तक लगा कि नए प्रकार के नौकरशाह, नौकरशाही के भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर सकते। मैंने पत्रिका के बारे में अपने मित्रों से भी चर्चा की। उन्होंने भी इसे काफ़ी सराहा। कश्मीर व अमेरिकी ऋण संकट पर आए लेख भी महत्वपूर्ण थे। आप लोगों का प्रयास सराहनीय है, आज युवाओं को ऐसे ही बेबाक ढंग से सच्चाई से अवगत कराने की जरूरत है।

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‘आह्नान’ पहले हमेशा से अधिक विचारोत्तेजक रूप में निकल रही है। इसके लिए पूरी आह्नान टीम बधाई की पात्र है। पिछले अंक में अण्णा हज़ारे और उनके आन्दोलन के चरित्र के बारे में जो सम्पादकीय आया वह पूरी तस्वीर को साफ़ कर देता है। इसके पहले भी दो हिस्सों में अण्णा हज़ारे के आन्दोलन की विचारधारा और राजनीति पर जो लम्बा लेख प्रकाशित हुआ वह काफ़ी विस्तार से इस भ्रष्टाचार-विरोध के चरित्र को साप़फ़ कर देता है। ब्रिटेन में हुए छात्र आन्दोलन के बारे में आयी टिप्पणी भी अच्छी लगी। नार्वे के जनसंहार के बारे में प्रमुख अखबारों आदि में आयी सामग्री काफ़ी सीमित थी। ऐसे में आह्नान में प्रकाशित टिप्पणी ने कई ऐसी जानकारियाँ दीं जो और कहीं उपलब्ध नहीं थीं।

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आह्वान का नियमित पाठक होने के कारण मैं कहना चाहूँगा कि पिछले अंक में अन्ना हजारे पर लेख वाकई प्रशंसनीय था, जहाँ एक तरफ छात्रों-नौजवानों की बड़ी आबादी अन्ना जी की राजनीति, सोच व जनलोकपाल को जाने बिना अंधा समर्थन कर रही थी। वही आह्वान में आपने इस विषय के उस पहलू पर जोर दिया। जो शायद ही किसी पत्रिका मे छपा हो। लेकिन मेरी एक शिकायत भी है कि पहले कवर पेज के अन्दर चार शहीदों के नाम और कोटेशन तो दिए गए हैं लेकिन उसमें ये नहीं बताया गया हैं कि वो किस आन्दोलन से इत्तेफाक रखते थे।

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‘‘आह्वान” एक बेहतरीन पत्रिका है इसे नकारा नहीं जा सकता। यह एक नये छात्र-युवा आन्दोलन के लिए बहुत ही सहायक है। मुझे ‘‘आह्वान” इसलिए पसन्द है क्‍योंकि यह पुस्तक अन्य पत्र-पत्रिकाओं की तरह ख़बरों को घुमा-फिराकर मसालेदार चटपटा बनाने का काम नहीं करती, बल्कि सीधे सरल रूप से उस मुद्दे के उस दूसरे पहलू को बयाँ करती है। जिसे दबाने के लिए पुलिस, मीडिया तथा गली-मुहल्लां के छोटे-बड़े नेता पूरी मेहनत और लगन के साथ इस काम को करते रहते हैं, क्योंकि वे डरते हैं कि कहीं उनके उन बड़े-बड़े पूँजीपतियों तथा मन्त्रियों का असली चेहरा सबके सामने न आ जाये जिसे वे छोटे-छोटे कामों के ज़रिये छिपाये रखते हैं।

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‘मुक्तिकामी छात्रों युवाओं का आह्वान’ का जनवरी- फरवरी, 2011 अंक काफी प्रशंसनीय है। ‘आह्वान’ का कलेवर निरन्तर और अधिक समृद्ध तथा तर्कणा से पूर्ण होता देख बेहद ख़ुशी होती है। जहाँ ‘आह्वान’ के साथियों की परिवर्तनकामी मुहिम की प्रतिबद्धता ओज से भर देती है, वहीं दूसरी तरफ हमारी दृष्टि को वैश्विक बनाने का काम करती है। ‘अरब जन उभार के मायने’ और ‘नौजवान जब भी जागा इतिहास ने करवट बदली है’ लेख अरब जगत के जनउभार के कारण के रूप में पूँजीवाद के निरन्तर मानवद्रोही चरित्र की उपज को व इनके केन्द्र में सर्वहारा वर्ग के सतत् संघर्ष के बावजूद मज़दूर वर्ग की संगठित ताकत के अभाव की वजह से आन्दोलन की सीमाओं को रेखांकित करते हुए एक सम्यक विवेचन रखता है। बिनायक सेन पर अदालत के फैसले पर आया लेख जिस प्रकार पूँजीवादी न्यायपालिका को बेनकाब करता है, प्रशंसनीय है।

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कम से कम मैंने आपके प्रकाशन के ज़रिये इस बात को आत्मसात किया कि एक सर्वहारा समाज की मुक्ति का सपना, परिवर्तन का सपना सिर्फ आह्वान के ज़रिये ही देखा जा सकता है। आपसे जुड़ने के फलस्वरूप ही मैंने महान क्रान्तिकारी भगतसिंह को करीब से जानने का मौका पाया। आह्वान में प्रकाशित हर लेख को मैं भगतसिंह की जेल डायरी के समकक्ष मानता हूँ। एक-दो पिछले अंक में विज्ञान विषय पर हिग्स बुसौन और बिग बैंग की जो सीरीज़ पढ़ी, उसी तरह की कोई शृंखला फिर प्रकाशित करें।

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मुझे भी पहले यही लगता था कि जनता के दुःख-दर्द को देखकर बड़े-बड़े उद्योगपति अरबों रुपये दान देते हैं, ताकि समाज का उद्धार हो सके। परन्तु अब मुझे समझ में आया यह सब तो एक छलावा मात्र है, ताकि जनता में भ्रम पैदा हो सके और इस तरह पूँजीवादी व्यवस्था के खि़लाफ जनता में जो क्रोध व्याप्त है उसे कम किया जा सके। विज्ञान स्तम्भ का लेख ‘‘कृत्रिम कोशिका का प्रयोग और नैतिकता’‘ काफी ज्ञानवर्धक था। कवि नागार्जुन की जन्मशताब्दी पर प्रकाशित उनकी कविता ‘‘26 जनवरी, 15 अगस्त’‘ पढ़कर देश की आज़ादी की एक तस्वीर मेरी आँखों के सामने उभरकर साफ हो गयी। भविष्य में भी आह्वान निरन्तरता के साथ अपना काम जारी रखेगा।

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‘‘आह्वान’‘ के ताज़ा अंक का बण्डल मिला। राशि भेज रहा हूँ। मुखौटों में पूँजीवाद के घिनौने चेहरों के आतंकी मानवहन्ता उद्देश्यों की शल्यक्रिया करती इस पत्रिका के साथ इन्‍कलाब होने का इन्तज़ार बेसर्बी से रहता है। पूँजीवाद जो आज अपने अनेक छद्म रूपों में मृगतृष्णा बना, आम आदमी के शोषण, दमन और उत्पीड़न का एक नया बदनुमा इतिहास रचने को तत्पर है, के खि़लाफ यह पत्रिका क्रान्ति का हरावल दस्ता है, यह तमाम मेहनतकशों को, उनके नारकीय जीवन से उबारने की गहराती चिन्ता है। – आयें, हम तमाम इसकी गूँजती आवाज़ को, अपनी रक्त वाहिनियों से होकर गुज़रने दें। ये पत्रिका कम, हम तमाम आम जनता के भविष्य की चिन्ता अधिक है।