एफ-वन रेस: देश की मेहनतक़श ग़रीब जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक
प्रशान्त
30 अक्टूबर को हुई पहली इण्डियन ग्रां प्री एफ-वन रेस देश के धनाढ्य वर्गों का अपनी शानो-शौकत और सम्पत्ति का शायद अब तक सबसे खर्चीला और विलासितापूर्ण प्रदर्शन था। 300 कि.मी. प्रति घण्टे की रफ्तार से दौड़ती कारें; बॉलीवुड, क्रिकेट जगत और कॉरपोरेट जगत की बड़ी हस्तियों का जमावड़ा और रेस के बाद विश्वविख्यात गायिका और नग्नता और अश्लीलता में अवाँ (आवारा?!) गर्द की भूमिका निभा रही लेडी गागा का गर्मागरम कार्यक्रम! यानी कि वह सब कुछ जिसके लिए देश का नया धनाढ्य वर्ग और मानसिक रूप से उनका गुलाम मध्य वर्ग पगलाया रहता है। साथ ही देश की मुख्य धारा के मीडिया ने एफ-वन रेस के सफल आयोजन के लिए आयोजकों और उ.प्र. सरकार के तारीफों के पुल बाँध दिए ताकि इसका हश्र पिछले साल हुए कॉमनवेल्थ खेलों की तरह न हो जाए।
इस रेस को देखने के लिए न्यूनतम टिकट 2500 रुपए था और कॉरपोरेट बॉक्स का टिकट तो 1.25 करोड़ रुपए तक था। रेस को देखने लगभग 95000 लोग आए थे और 1.25 करोड़ वाली टिकटें तो टिकटों की बिक्री शुरू होने के तीन घण्टे के अन्दर ही बिक गयी थीं। देश के इस पहले एफ-वन रेस ट्रैक का निर्माण मायावती के चहेते बिल्डर जेपी ग्रुप ने किया है और यह उसकी महत्वकांक्षी परियोजना जेपी ग्रीन स्पोर्ट्स सिटी का हिस्सा है। इस ग्रीन स्पोर्ट्स सिटी का कुल क्षेत्रफल लगभग 2500 एकड़ होगा। इस रेस ट्रैक की कुल लम्बाई 5.14 किमी है और इसका क्षेत्रफल 574 एकड़ है। इस ट्रैक का नाम बुद्धा इण्टरनेशनल सरकिट रखा गया है और इसके निर्माण में कुल 2000 करोड़ रुपए का खर्चा आया।
लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस देश में 80 प्रतिशत आबादी भरपेट खाने के लिए आवश्यक संसाधनों का भी बड़ी मुश्किल से इन्तज़ाम कर पाती हो; जहाँ भूखों, नंगों, बेघरों, बेरोज़गारों की फौज़ दिन-ब-दिन विशाल होती जा रही हो, वहाँ मुट्ठी-भर अमीरज़ादों के विलासितापूर्ण मनबहलाव के लिए धन की ऐसी बेहिसाब बर्बादी क्या देश की मेहनतकश ग़रीब आबादी के साथ किया गया एक अक्षम्य अपराध नहीं है? और ख़ासकर दलित वोट से चुनकर उ.प्र. की मुख्यमन्त्री बनी मायावती, जिनको कि दलितों के उत्थान के एक उदाहरण के रूप में दिखाया जाता है, से पूछा जाना चाहिए कि क्या उनकी सरकार यह सब दलित उत्थान के लिए कर रही है?
असल में देश के सम्पत्तिशाली वर्गों के मनोरंजन के आयोजित इस रेस के ट्रैक के निर्माण के लिए मायावती सरकार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। औद्योगिक विकास और रोज़गार निर्माण के नाम पर यहाँ रहने वाले किसानों से अत्यन्त सस्ते दामों पर ज़मीन हड़पकर जेपी ग्रुप को दे दिया जाना। इसे मनोरंजन शुल्क से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाना। हवाई अड्डे से ट्रैक को जोड़ने वाली 6 लेन हाइवे का निर्माण। सारांश यह है कि मायावती सरकार ने देशी और विदेशी पूँजीपति वर्ग को लुभाने में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी। अगर पूरे उ.प्र. पर नज़र डाली जाए तो यह बात और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है। जहाँ 2007-2011 के बीच उ.प्र. की विकास दर 7.28 प्रतिशत (2010-2011 के दौरान तो यह 8.08 प्रतिशत थी) वहीं नवजात शिशुओं की मृत्यु दर, साक्षरता, जन्म दर, मृत्यु दर, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य सुविधाओं, प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक-छात्र अनुपात, गाँवों का विद्युतीकरण आदि अनेक मानकों में उ.प्र. देश के 16 प्रमुख राज्यों में 13वें या 14वें स्थान पर आता है। देश में नवजात शिशुओं की मृत्यु की कुल संख्या का लगभग 25 प्रतिशत अकेले उ.प्र. से आती है। अर्थात शेष देश की ही तरह, उ.प्र. में भी आर्थिक विकास का यहाँ की आम जनता के विकास से कोई लेना-देना नहीं। साथ ही देशी-विदेशी पूँजीपतियों की सेवा में लगी मायावती पूँजी की निर्बन्ध गति में आने वाले सभी अवरोधों से सख्ती से निपटने के लिए पूरी तरह से कमर कस रखी है। इस समय मायावती ने सरकार पूरे प्रदेश में आम मेहनतकश किसान-मज़दूर आबादी से लेकर विश्वविद्यालयों के छात्रें के ऊपर वर्तमान समय का सबसे निरंकुश और स्वेच्छाचारी शासन कायम किया हुआ है (देखिए ‘आह्वान’ के पिछले अंक में मायावती शासन के ऊपर आया लेख)।
ऐसे में देश के धनाढयों वर्गों के मनोरंजन के लिए की गयी इस फिजूलखर्ची के ऊपर कहने के लिए ज़्यादा कुछ बचता नहीं है। संक्षेप में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि एफ-वन रेस एक उभरते हुए देश के उभरते हुए धनाढ्यों, उनकी मीडिया और उनकी सेवा में लगी सरकार द्वारा देश की मेहनतकश ग़रीब आबादी के साथ किया गया एक भद्दा मज़ाक है।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, नवम्बर-दिसम्बर 2011
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