भाषाई अस्मितावादियों से न्गूगी वा थ्योंगो को बचाओ!
इनके पास कोई तर्क नहीं है। तर्क की जगह इन्होंने भावनाओं को रख दिया है। ये भावनाएँ भाषाई अस्मितावादी और राष्ट्रवादी भावनाएँ हैं। इसी ज़मीन से इनका सारा कुतर्क पैदा होता है, इसी से इनके सवाल पैदा होते हैं। लेकिन ये किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहते हैं। इनसे हमने जितने सवाल पूछे या तो उन पर इन्हें सनाका मार गया है या ये गोलमाल कर रहे हैं। इनके तमाम प्रश्नों का हमने विस्तार से उत्तर दिया, उन उत्तरों पर भी इनका कोई उत्तर नहीं है। इनके पास बस एक ही चीज़ बची है : राष्ट्रवादी और भाषाई अस्मितावादी ज़मीन से भावनाओं को उभारना। ये उभर भी गयीं तो इसका नतीजा भविष्य में विनाशकारी ही होने वाला है। हम उम्मीद करते हैं कि इन्हें सद्बुद्धि आये।