राष्ट्रीय दमन क्या होता है? भाषा के प्रश्न का इससे क्या रिश्ता है? मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति की एक संक्षिप्त प्रस्तुति
यह प्रश्न आज कुछ लोगों को बुरी तरह से भ्रमित कर रहा है। कुछ को लगता है कि यदि किसी राज्य के बहुसंख्यक भाषाई समुदाय की जनता की भाषा का दमन होता है तो वह अपने आप में राष्ट्रीय दमन और राष्ट्रीय आन्दोलन का मसला होता है। उन्हें यह भी लगता है कि असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में एन.आर.सी. उचित है क्योंकि यह वहां की जनता की राष्ट्रीय दमन के विरुद्ध ”राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति” है और इस रूप में सकारात्मक है। तमाम क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट साथियों को यह बात सुनने में अजीब लग सकती है लेकिन यह सच है! वाकई वामपंथी दायरे में अस्मितावाद के शिकार कुछ लोग हैं, जो ऐसी बात कह रहे हैं। राष्ट्रीय प्रश्न पर ऐसे लोग बुरी तरह से दिग्भ्रमित हैं। इसलिए इस प्रश्न को समझना बेहद ज़रूरी है कि दमित राष्ट्रीयता किसे कहते हैं और राष्ट्रीय दमन का मतलब क्या होता है। इस प्रश्न पर लेनिन, स्तालिन और तुर्की के महान माओवादी चिन्तक इब्राहिम केपकाया ने शानदार काम किया है।