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पश्चिम बंगाल : भारतीय वामपन्थ का संकट या संशोधनवादी सामाजिक फ़ासीवाद से खुले प्रतिक्रियावादी पूँजीवाद की ओर संक्रमण?

पश्चिम बंगाल में बीते विधानसभा में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी)-नीत वाम मोर्चे की करारी हार के बाद जो दृश्य उपस्थित हुआ वह संशोधनवादी वामपन्थ ‘‘यानी, नाम में मार्क्‍सवादी, काम में पूँजीवादी’’ के पतन पर हमेशा ही उपस्थित होता है। पूरा मीडिया इसे वामपन्थ/मार्क्‍सवाद/कम्युनिज़्म के पतन की संज्ञा दे रहा था; खुले तौर पर पूँजीवादी (लोकतान्त्रिक!) अन्य पार्टियाँ भी यही गाना गा रही थीं। कुल मिलाकर, देश के पूँजीपति वर्ग की अगुवाई करने वालों ने हमेशा की तरह इस अवसर का पूरा लाभ उठाने की कोशिश की। 1989 में बर्लिन की दीवार गिरने, 1990 में सोवियत संघ के पतन और 1976 के बाद चीन में ‘‘बाज़ार समाजवाद” का जुमला उछलने के बाद विश्व-भर के पूँजीवादी मीडिया ने भी यही उन्मादी शोर मचाया था कि यह मार्क्‍सवाद की पराजय है। यह बेहद नैसर्गिक है कि पूँजीवादी मीडिया ऐसा करे।