Category Archives: गतिविधि बुलेटिन

जनचेतना की वार्षिक पुस्तक प्रदर्शनी

विगत वर्षों के मुकाबले इस वर्ष की पुस्तक प्रदर्शनी में नौजवान पाठकों की संख्या बहुत ज़्यादा थी। किशोरवय के लड़के-लड़कियाँ तक भगतसिंह और मार्क्सवादी साहित्य की खोज में प्रदर्शनी स्थल तक आये। सैकड़ों पाठकों ने पुस्तक प्रदर्शनी के बारे में लिखित प्रतिक्रिया दर्ज की। अनन्या ने लिखा – “ख़ूबसूरत कविता-पोस्टरों ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं कुछ किताबें ख़रीदूँ और पढूँ।” ज़्यादातर पाठकों ने बाज़ार में प्रगतिशील-क्रान्तिकारी साहित्य उपलब्ध न होने पर क्षोभ प्रकट करते हुए जनचेतना के प्रयासों की प्रासंगिकता और अनिवार्यता पर ख़ासा ज़ोर देते हुए टिप्पणियाँ दर्ज कीं।

गणतन्‍त्र दिवस पर विचार-विमर्श…

संविधान के जन्म के ऐतिहासिक विकास से यह स्पष्ट है कि जनवाद की बात करने वाला यह भारतीय संविधान ज़मींदार और उच्च अभिजात्य कुलीन वर्ग का मानसपुत्र है। जो आज तक सच्चे और निष्ठापूर्ण तरीक़े से देश के शासकों और पूँजीपतियों की सेवा कर रहा है। आज अगर भारत की आम मेहनतकश जनता, भुखमरी और आत्महत्या के कगार पर खड़े किसानों को सच्चे मायने में जनवाद और जनतन्त्र चाहिए, जो उसके जीने की सच्ची आज़ादी को सुनिश्चित करे तो आज एक बार फिर सार्विक मताधिकार पर आधारित सच्चे जनप्रतिनिधियों द्वारा संविधान सभा बुलाने की माँग को उठाना होगा; जो सम्पत्ति पर आधारित किसी भी चुनाव प्रक्रिया का अंग न हो।

काकोरी के शहीदों की याद में ‘अवामी एकता मार्च’

आज देश एक भयंकर संकट के दौर से गुज़र रहा है तो दूसरी तरफ देश के नेता-नौकरशाह जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह वर्ष घोटालों और भ्रष्टाचार का वर्ष रहा और एक बार फिर देश की जनता के स्वप्न और शहीदों के मंसूबों को तार-तार किया गया। देश के हुक्मरान आये-दिन मेहनतकशों को धर्म-जाति के नाम पर बाँट रहे हैं। ऐसे में अशफ़ाक, बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी की शहादत को याद करने का एक ही मकसद है कि आज देश के नौजवानों के सामने शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार के ऐसे सवाल हैं जिनकों लेकर एकजुट होना होगा; तभी सच्ची आज़ादी आयेगी।

‘जागो फि़र एक बार’

निराला का पूरा जीवन रचनाकार की जनपक्षधरता व विचारों के साथ बिना समझौता किये जीने के लिए समर्पित था। उन्होंने निःसंकोच कई बार अपनी ही मान्यताओं को खण्डित किया। उनकी प्रबल मान्यता थी कि जीवन की गतिकी में जो कुछ भी बाधक है, वह त्याज्य है। यह सब उनकी रचनाओं में व्याप्त है, चाहे वह बन्धनमुक्त छन्दों की बात हो या ‘कुल्ली भाट’ के माध्यम से समाज पर सवाल खड़ा करने और उसकी पश्चगामी रूढ़िवादिता पर चोट करने का सवाल हो। आज जब साहित्य के नाम पर निरर्थक बहसों और कलावाद का घटाटोप छाया हुआ है, ऐसे में निराला को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास और साहित्य को जनसंस्कृति से जोड़ने की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है।

नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है……

बाबा नागार्जुन का जन्मशताब्दी वर्ष चल रहा है। जनसाधारण की भाषा में लिखने वाले नागार्जुन को 21 नवम्बर, 2010 को दिल्ली के एक इलाके में कुछ विशिष्ट ढंग से याद किया गया। आमजन के सपनों को अपनी रचना में जुबान देने वाले कवि को आमजनों व साहित्यकर्मियों ने बेहद आत्मीय रूप में अपने आस-पास महसूस किया। सादतपुर (दिल्ली) में तमाम साहित्यकर्मियों, कलाकारों, नौजवानों ने नागार्जुन की जन्मशती के अवसर पर एक साहित्य उत्सव का आयोजन किया। जिसमें बाबा नागार्जुन के साहित्य से जुड़ाव रखने वाले आमजनों के साथ-साथ हिन्दी समाज के ख्यातिलब्ध लेखकों, कलाकारों की बढ़-चढ़कर की गयी यह गतिविधि बेहद महत्त्वपूर्ण है।

नौजवान भारत सभा द्वारा तीन दिवसीय मेडिकल कैम्प

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ख़दरा क्षेत्र में अक्टूबर माह शुरू होते ही तमाम बीमारियों ने क्षेत्र के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया। आसपास के सरकारी व निजी अस्पताल मरीजों से भर गये और अन्धी कमायी अस्पतालों ने शुरू की। आम ग़रीब लोगों की वहाँ तक पहुँच भी नहीं हो पा रही थी, इसी के मद्देनज़र नौजवान भारत सभा ने 15-17 अक्टूबर तक तीन दिवसीय मेडिकल कैम्प का आयोजन किया गया। मेडिकल कैम्प में 8 सदस्यीय डॉक्टरों की टीम ने हिस्सा लिया।

तीन दिवसीय क्रान्तिकारी युवा जनजागृति यात्रा

नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता व दिशा छात्र संगठन की 13 सदस्यीय युवा टोली ने 23 मई से 26 मई तक दिल्ली से बड़ौत तक साईकिलों से क्रान्तिकारी युवा जनजागृति यात्रा निकाली। यह यात्रा 23 मई की भोर 5 बजे दिल्ली के करावलनगर क्षेत्र से शुरू हुई। पहले दिन अभियान टोली लोनी, मण्डोला, खेकड़ा और काठापाली से होते हुए बागपत पहुँची। रास्ते में तमाम गाँवों में टोली ने जनसभाएँ आयोजित की और अभियान का सन्देश जनसमुदायों तक पहुँचाया। टोली की ओर से क्रान्तिकारी लोकस्वराज्य का नारा बुलन्द करते हुए 63 वर्षों की आज़ादी की असलियत को ग़रीब किसानों, मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी के बीच उजागर किया गया। इस मौके पर निकाले गये पर्चे को लोगों में व्यापक तौर पर वितरित किया गया। बागपत में टोली की मुलाकात कुछ सफाई कर्मचारियों से हुई जिन्होंने टोली को अपने मुहल्ले में एक धर्मशाला में रुकवाया। बागपत तक के रास्ते में टोली का गाँवों में लोगों ने तहे-दिल से स्वागत किया और टोली के सन्देश के साथ सहमति जतायी।

दिल्ली विश्वविद्यालय में दिशा छात्र संगठन का सहायता केन्द्र

दिल्ली विश्वविद्यालय में लगातार जनवादी अधिकारों को कम करने की प्रक्रिया के इस नए कदम ने दिखा दिया कि जब भी नौजवान समाज को बदलने की दिशा में सोचना शुरू करते हैं तो शासक वर्ग अपने तमाम हथियारों पुलिस-प्रशासन, न्याय-व्यवस्था के दम पर उन्हें दबाता है। दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने बाद में कला-संकाय के अन्दर ‘मे आई हेल्प यू’ के बिल्ले लगाकर, खड़े होकर छात्रों को सहायता देना शुरू किया। सहायता व परामर्श के अलावा संगठन के कार्यकर्ताओं ने छात्रों के बीच स्वागत पुस्तिका भी वितरित की जिसमें बताया गया है कि आज भारत के विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए योग्य और सक्षम आबादी का सिर्फ 7 प्रतिशत हिस्सा कैम्पसों तक पहुँचा पाता है। बाकि 93 प्रतिशत नौजवानों बारहवीं के बाद कुछ तकनीकी शिक्षा लेकर कुशल मज़दूर बन जाते हैं, जो वह तकनीकी शिक्षा भी नहीं ले पाते वे अर्द्धकुशल या अकुशल मज़दूरों की जमात में शामिल हो जाते हैं और जो कोई भी काम पाने में असफल रहते हैं वे करोड़ों बेरोज़गारों की रिज़र्व आर्मी का हिस्सा बन जाते हैं। कई आर्थिक अनुसन्धान संस्थानों के मुताबिक इस समय देश मे 25 से 30 करोड़ लोग बेरोज़गार है जिनमें से 5 करोड़ शिक्षित बेरोज़गार है। सरकार उच्च शिक्षा को लगातार निजी हाथों में सौंपकर उसे आम घरों से आने वाले लड़के-लड़कियों की पहुँच से दूर कर रही है।

शहादत दिवस पर तीन दिवसीय कार्यक्रम

सभा में नौ.भा.स. के उदयभान और नन्दलाल ने चुनावी पार्टियों की पोल खोलते हुए आज के हालात पर प्रकाश डाला तथा शहीदों के सपनों को पूरा करने के लिए नौजवानों-मेहनतकशों का आह्वान करते हुए बताया कि इस अन्यायी व्यवस्था की चादर में पैबन्द लगाने वाले एन.जी.ओ. व समाज को बाँटने वाली साम्प्रदायिक फासिस्ट पार्टियों तथा चुनावी पार्टियों के भ्रम से बाहर निकलकर एक बार फिर से क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिए कमर कसकर उठ खड़े होना होगा। शहीदों ने ऐसी आज़ादी का सपना नहीं देखा था, जैसा आज है। वे ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसमें एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का शोषण असम्भव हो जाय, लेकिन आज 10 फीसदी थैलीशाहों की हुकूमत 90 फीसदी मेहनतकश जनता पर है। पूरा समाज सिर के बल खड़ा है, इसे सीधा करने के लिए एक नई जनक्रान्ति की तैयारी करनी होगी। दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान का जन्तर-मन्तर पर विशाल प्रदर्शन

‘आह्वान’ के पिछले अंकों में हम पाठकों को दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता और स्त्री मुक्ति लीग द्वारा पिछले डेढ़ वर्ष से देश के विभिन्न हिस्सों में चलाए जा रहे ‘राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान’ के बारे में अवगत कराते रहे हैं। गत मई दिवस को इन संगठनों ने नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर शहरी रोज़गार गारण्टी की माँग को लेकर मज़दूरों, छात्रों और नौजवानों का एक विशाल प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हुए मज़दूर, नौजवान, स्त्रियाँ और छात्र शामिल हुए। इस प्रदर्शन के दौरान हुई सभा में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए अभियान के प्रतिनिधियों ने भाषण दिये। इसके बाद भारत सरकार के प्रधानमन्त्री को अभियान के संघटक अंगों की तरफ से करीब 30 हज़ार हस्ताक्षरों वाला एक ज्ञापन सौंपा गया जिसमें एक पाँच सूत्रीय माँगपत्रक भी शामिल था।