‘जागो फि़र एक बार’
आह्वान संवाददाता, दिल्ली
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के 115वें जन्म दिवस के अवसर पर, ‘शहीद भगतसिंह पुस्तकालय’, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली में कवियों, छात्रों, नौजवानों तथा नागरिकों ने ‘महाप्राण निराला स्मृति काव्य सन्ध्या’ का आयोजन किया।
8 फरवरी (वसन्त पंचमी) के दिन ‘नौजवान भारत सभा’ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में, निराला को प्रगतिशील भारतीय चिन्तन परम्परा की गतिमान धारा के प्रमुख स्तम्भ के रूप में याद करते हुए छात्र, नौजवान और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आज उनके रचनाकर्म के जनोन्मुखी पक्ष से ऊर्जा लेने पर ज़ोर दिया। निराला का पूरा जीवन रचनाकार की जनपक्षधरता व विचारों के साथ बिना समझौता किये जीने के लिए समर्पित था। उन्होंने निःसंकोच कई बार अपनी ही मान्यताओं को खण्डित किया। उनकी प्रबल मान्यता थी कि जीवन की गतिकी में जो कुछ भी बाधक है, वह त्याज्य है। यह सब उनकी रचनाओं में व्याप्त है, चाहे वह बन्धनमुक्त छन्दों की बात हो या ‘कुल्ली भाट’ के माध्यम से समाज पर सवाल खड़ा करने और उसकी पश्चगामी रूढ़िवादिता पर चोट करने का सवाल हो। आज जब साहित्य के नाम पर निरर्थक बहसों और कलावाद का घटाटोप छाया हुआ है, ऐसे में निराला को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास और साहित्य को जनसंस्कृति से जोड़ने की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है।
इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए छात्रों, नौजवानों की टोली एक सप्ताह पहले से ही जुट गयी थी। ‘जागे हो बार-बार – जागो फिर एक बार’ के शीर्षक से पर्चा निकाला गया। पर्चे के वितरण के साथ नौजवानों की टोली घर-घर जाकर लोगों को कार्यक्रम से अवगत करा रही थी।
इलाक़े की आबादी के उत्साहवर्धन और सहयोग से कार्यक्रम आयोजित किया गया।
8 फरवरी को प्रातः 7 बजे छात्रों, नौजवानों, बच्चों और नागरिकों की टोली ने ‘जन तक कविता – कविता तक जन’ के नाम से प्रभात फेरी निकाली और नुक्कड़ कविता पाठ किया। प्रभात फेरी मुकुन्द विहार से निकलकर न्यूसभापूर गुजरान, भगतसिंह कॉलोनी होती हुई आकर शहीद भगतसिंह पुस्तकालय पर समाप्त हुई। छात्रों, नौजवानों ने नुक्कड़ों पर निराला की कविता ‘बहने दो, रोक-टोक से कभी नहीं रुकती है, यौवन मद की बाढ़ नदी की, किसे देख झुकती है; ‘वह तोड़ती पत्थर’; ‘बादल राग’ आदि कविताओं का पाठ किया। इसके अतिरिक्त ‘जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है’; ‘इतने भले नहीं बन जाना साथी’; ‘आयेंगे उजले दिन ज़रूर’ तथा अन्य कविताओं का पाठ किया गया।
‘महाप्राण निराला स्मृति काव्य सन्ध्या’ की शुरुआत शाम 3 बजे वरिष्ठ कवि व ‘ज़िन्दा लोग’ अख़बार के सलाहकार सम्पादक राधेश्याम तिवारी द्वारा निराला की तस्वीर पर मार्ल्यापण करके की गयी। नौभास के सनी ने कार्यक्रम का आधार वक्तव्य पढ़ा। उन्होंने कहा कि निराला जनपक्षधर काव्यधारा की उस परम्परा से हैं जो वाल्मीकि, सरहपा, कबीर से आगे बढ़ती है और जो मुक्तिबोध, शमशेर, केदार तक जाती है। परम्परा रूढ़ि नहीं होती और साथ ही विरासत भी नहीं होती। उसे अर्जित करना पड़ता है। अतीत की सही धारा को पहचानकर उससे अपना सम्बन्ध स्थापित कर, उसका विस्तार कर हम अपनी परम्परा को अर्जित व विकसित करते हैं। निराला के अवदान और प्रासंगिकता को हम इसी आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं।
समारोह के प्रथम सत्र में निराला की कविताएँ – ‘वह तोड़ती पत्थर’, थोड़े के पेट में बहुतों को आना पड़ा; महँगू-महँगा रहा’ और ‘बादल-राग’ का पाठ किया गया। सामाजिक कार्यकर्ता नन्दा नेहा ने कहा कि ‘वह तोड़ती पत्थर’ उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में पढ़ी थी जो उनके लिए समाज के दमित वर्ग से एकात्म होने की प्रेरणा स्रोत बनी। आज सूचना-संचार माध्यमों का प्रयोग अपसांस्कृतिक कूड़ा-कचरा परोसने में किया जा रहा है। ऐसे में इन छोटे-छोटे प्रयासों की बेहद ज़रूरत है, जो हमें, हमारी जनपक्षधर प्रगतिशील संस्कृति से रूबरू करा सके। कवि राधेश्याम तिवारी ने कहा कि निराला का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उन्हें हर जगह समाज से टक्क्र लेनी पड़ी। समकालीन साहित्य जगत में उन्हें नकारा गया, लेकिन वे अपने रूढ़िभंजक और जनपक्षधर विचारों से अडिग रहे। उनकी छन्दमुक्त कविता भी लय और प्रवाह से युक्त है। बिगुल मज़दूर दस्ता से जुड़े प्रेम प्रकाश ने कहा कि ‘वह तोड़ती पत्थर’ के अन्त में ‘मैं तोड़ती पत्थर’ का आना रचनाकार के व्यष्टि का समष्टि से एकाकार हो जाना है। और इसी मायने में निराला दार्शनिक धरातल पर वेदान्तवादी होने के बावजूद रचनाकार के द्वन्द्व के रूप में टॉल्स्टाय की तरह ग्राह्य हैं।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वरिष्ठ और युवा कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। वरिष्ठ कवि राधेश्याम तिवारी ने अपने कविता संग्रह ‘इतिहास में चिड़िया’ से कई कविताओं का पाठ किया। युवा कवियों में दिल्ली विश्वद्यिालय के छात्र सनी और शमीम, रंगमंच से जुड़े नाट्यकर्मी आशुतोष, बिगुल मज़दूर दस्ता से जुड़े प्रेम प्रकाश व पत्रकारिता से जुड़े प्रदीप ने अपनी कविताओं का पाठ किया। नौभास के आशीष ने कहा कि आज जब कला और संस्कृति कुलीनों तक सीमित होती जा रही है; लेखक की जनपक्षधरता सत्ता पक्षधरता में बदल गयी है तो ऐसे में साहित्य के लोकोन्मुखी और संघर्षशील परम्परा को आम लोगों के बीच ले जाना सच्चे मायने में निराला की स्मृति होगी।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2011
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