दिल्ली विश्वविद्यालय में दिशा छात्र संगठन का सहायता-केन्द्र
दिल्ली विश्वविद्यालय में 28 मई से नए सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो गई। देशभर के अलग-अलग इलाकों से आने वाले छात्रों ख़ासकर आम घरों से आने वाले छात्रों को फार्म भरने से लेकर कॉलेजों व पाठ्यक्रम के बारे में जानकारी लेने में तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं। ऐसे में ‘दिशा छात्र संगठन’ नए आने वाले छात्रों की सहायता के लिए पिछले तीन वर्ष से ‘सहायता डेस्क’ लगाता आ रहा है। जहाँ दिशा के कार्यकर्ताओं द्वारा दाखि़ले से सम्बन्धित हर जानकारी देकर, सही तरीके से फार्म में सहायता की जाती है। लेकिन इस बार भी विश्वविद्यालय प्रशासन से जब इस बारे में अनुमति मांगी गई तो प्रशासन ने दो टूक जवाब दे दिया कि विश्वविद्यालय के अन्दर किसी संगठन को ‘सहायता-डेस्क’ की अनुमति नहीं दी जायेगी, बाहर सड़क पर इसे लगा सकते हैं। बाद में कला-संकाय के बाहर ‘सहायता डेस्क’ लगाया तो पहले ही दिन पुलिस की सहायता से प्रशासन ने इसे हटवा दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय में लगातार जनवादी अधिकारों को कम करने की प्रक्रिया के इस नए कदम ने दिखा दिया कि जब भी नौजवान समाज को बदलने की दिशा में सोचना शुरू करते हैं तो शासक वर्ग अपने तमाम हथियारों पुलिस-प्रशासन, न्याय-व्यवस्था के दम पर उन्हें दबाता है। दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने बाद में कला-संकाय के अन्दर ‘मे आई हेल्प यू’ के बिल्ले लगाकर, खड़े होकर छात्रों को सहायता देना शुरू किया। सहायता व परामर्श के अलावा संगठन के कार्यकर्ताओं ने छात्रों के बीच स्वागत पुस्तिका भी वितरित की जिसमें बताया गया है कि आज भारत के विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए योग्य और सक्षम आबादी का सिर्फ 7 प्रतिशत हिस्सा कैम्पसों तक पहुँचा पाता है। बाकि 93 प्रतिशत नौजवानों बारहवीं के बाद कुछ तकनीकी शिक्षा लेकर कुशल मज़दूर बन जाते हैं, जो वह तकनीकी शिक्षा भी नहीं ले पाते वे अर्द्धकुशल या अकुशल मज़दूरों की जमात में शामिल हो जाते हैं और जो कोई भी काम पाने में असफल रहते हैं वे करोड़ों बेरोज़गारों की रिज़र्व आर्मी का हिस्सा बन जाते हैं। कई आर्थिक अनुसन्धान संस्थानों के मुताबिक इस समय देश मे 25 से 30 करोड़ लोग बेरोज़गार है जिनमें से 5 करोड़ शिक्षित बेरोज़गार है। सरकार उच्च शिक्षा को लगातार निजी हाथों में सौंपकर उसे आम घरों से आने वाले लड़के-लड़कियों की पहुँच से दूर कर रही है। मिसाल के तौर पर पिछले बीस वर्षों में छात्रों से वसूल जाने वाली फीस में औसतन 12 गुना की वृद्धि हुई है। शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत ख़र्च करने का दावा करने वाली सरकार 3 प्रतिशत से भी कम ख़र्च कराती है और लगातार इस हिस्से को घटा रही है। उच्चतर शिक्षा पर तो 1 प्रतिशत से कुछ अधिक ही ख़र्च किया जा रहा है। जनता को शिक्षा के समान अवसर मुहैया कराने के वायदे से सरकार लगातार पीछे हट रही है और शिक्षा को एक बाज़ारू माल बना रही है ये नाइंसाफियों तो उनके साथ की जा रही हैं जो कैम्पस में पहुँचते है या पहुँचने का सपना देखने की औक़ात रखते हैं। इसलिए दिशा सहायता और सुझाव के साथ नौजवानों से एक संवाद और एक रिश्ता स्थापित करना चाहता हैं। ताकि नौजवान आज के हालात पर सोच और शिक्षा और रोज़गार जैसे मुद्दे के लिए संघर्ष करे । क्योंकि शिक्षा और रोज़गार हर नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसलिए आज छात्र-युवा आन्दोलन के सामने जो सबसे केन्द्रीय माँग है वह है-‘सबको निशुल्क और समान शिक्षा और सबको रोज़गार।’
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2010
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