नौजवान भारत सभा द्वारा तीन दिवसीय मेडिकल कैम्प
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के ख़दरा क्षेत्र में अक्टूबर माह शुरू होते ही तमाम बीमारियों ने क्षेत्र के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया। आसपास के सरकारी व निजी अस्पताल मरीजों से भर गये और अन्धी कमायी अस्पतालों ने शुरू की। आम ग़रीब लोगों की वहाँ तक पहुँच भी नहीं हो पा रही थी, इसी के मद्देनज़र नौजवान भारत सभा ने 15-17 अक्टूबर तक तीन दिवसीय मेडिकल कैम्प का आयोजन किया गया। मेडिकल कैम्प में 8 सदस्यीय डॉक्टरों की टीम ने हिस्सा लिया। डॉ. अरुण, डॉ. चन्दन व डॉ. अविनाश मेडिकल कॉलेज से तथा डॉ. ज्ञानेन्द्र, डॉ. तौसिफ, डॉ. दिलीप, डॉ. नरेन्द्र व डॉ. श्वेता बलरामपुर अस्पताल लखनऊ से थे। इस टीम ने ही तीन दिन तक क्षेत्र के 700 से अधिक लोगों का निःशुल्क परीक्षण किया व दवाएँ भी दीं। कैम्प में आने वालों का पंजीकरण भी किया गया। इस कैम्प का आयोजन इलाके से जुटाये गये संसाधनों द्वारा किया गया, चाहे वह दवा के लिए धनराशि का सवाल हो या बैठने आदि के लिए अन्य ज़रूरी संसाधन। इससे इस आयोजन के बारे में यह भ्रम भी टूट गया कि यह आयोजन किसी एन.जी.ओ. द्वारा किया जा रहा है अथवा निहित स्वार्थों के कारण। सुबह 10 बजे से नौजवान भारत सभा की 8 सदस्यीय वालण्टियर टीम रात के 8 बजे तक काम में जुटी रहती थी। इस टीम में मुख्य रूप से लालचन्द्र, शिवार्थ, सन्दीप, जॉनसन, दीपक, पंकज, बीनू, नीरज शामिल थे। कैम्प में आये लोगों ने नौजवान भारत सभा की इस शिविर के लिए प्रशंसा भी की और आगे के कार्यक्रम में भाग लेने व संगठन से जुड़ने की इच्छा भी ज़ाहिर की। कैम्प में आने वालों को ‘चिकित्सा और स्वास्थ्य: हमारा जन्मसिद्ध अधिकार’ नाम से छपा पर्चा भी दिया गया, जिसमें मुख्य रूप से यह बात रखी गयी थी कि ख़दरा के अलावा वे तमाम इलाके जहाँ पर मज़दूरों या ग़रीबों की रिहाइश होती है, वहाँ पर ही मलेरिया, डेंगू, मियादी बुखार जैसी तमाम बीमारियाँ क्यों पैदा होती हैं। 100-150 साल पहले जिन बीमारियों का इलाज खोजा जा चुका है, उन्हीं बीमारियों से आज भी लोग क्यों मर जाते हैं। जबकि संविधान चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार का दर्जा देती है। कारण साफ है – केन्द्र व राज्य में सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, उसका पक्ष साफ है कि वह पैसे वालों की पूजा करेगी व ग़रीबों को उनकी हवन की सामग्री के रूप में इस्तेमाल करेगी। यह इस देश की जनता के साथ गन्दा मज़ाक से कम नहीं कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए 70 हज़ार करोड़ ख़र्च किया जाता है, ताकि देश का नाम रौशन हो। जबकि आम आदमी बुनियादी चीज़ों से भी मरहूम कर दिया जा रहा है। देश की जनता के लिए न उनके पास पैसा है और न ही समय। सरकारी महकमे रहस्यमय बीमारी पैदा होने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। नेता लोगों की लाशों पर सियासत करते हैं और बरसाती मेढक का रूप चरितार्थ करते हैं। अकेले ख़दरा, जो लगभग 50 हज़ार से ऊपर की आबादी वाला क्षेत्र है, में 80 से ऊपर मौतें अक्टूबर माह में हो चुकी हैं। क्षेत्र की साफ-सफाई न होने से क्षेत्रवासी नारकीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं। साफ पानी भी उन्हें नहीं मिलता। दवा-इलाज के नाम पर एक डॉक्टर वाली डिस्पेंसरी है जहाँ दवाएँ भी ठीक से नहीं उपलब्ध होती हैं, ऐसे में स्वास्थ्य और चिकित्सा का मौलिक अधिकार बेमानी हो जाता है। ऐसे समय में क्या लोग चुपचाप बैठकर अपनों की मौत का तमाशा देखते रहेंगे या अपने सभी मौलिक हकों को इस जालिम व्यवस्था से लड़कर छीन लेंगे। हमारे पास केवल अन्तिम रास्ता है, अपनी व्यापक एकजुटता व अपने हकों के लिए अनवरत संघर्षों का सिलसिला अन्यथा बचने का कोई उपाय नज़र नहीं आता। कैम्प में आये डॉक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में बीमारियों का मुख्य कारण कुपोषण को बताया। कुपोषण का कारण उनकी ग़रीबी है। इन्हें सबसे पहले इस समस्या पर सोचना होगा कि आखि़र यह ख़त्म होगी तो कैसे?
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्बर-दिसम्बर 2010
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