नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता व दिशा छात्र संगठन की तीन-दिवसीय क्रान्तिकारी युवा जनजागृति यात्रा

नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता व दिशा छात्र संगठन की 13 सदस्यीय युवा टोली ने 23 मई से 26 मई तक दिल्ली से बड़ौत तक साईकिलों से क्रान्तिकारी युवा जनजागृति यात्रा निकाली। यह यात्रा 23 मई की भोर 5 बजे दिल्ली के करावलनगर क्षेत्र से शुरू हुई। पहले दिन अभियान टोली लोनी, मण्डोला, खेकड़ा और काठापाली से होते हुए बागपत पहुँची। रास्ते में तमाम गाँवों में टोली ने जनसभाएँ आयोजित की और अभियान का सन्देश जनसमुदायों तक पहुँचाया। टोली की ओर से क्रान्तिकारी लोकस्वराज्य का नारा बुलन्द करते हुए 63 वर्षों की आज़ादी की असलियत को ग़रीब किसानों, मज़दूरों और आम मेहनतकश आबादी के बीच उजागर किया गया। इस मौके पर निकाले गये पर्चे को लोगों में व्यापक तौर पर वितरित किया गया। बागपत में टोली की मुलाकात कुछ सफाई कर्मचारियों से हुई जिन्होंने टोली को अपने मुहल्ले में एक धर्मशाला में रुकवाया। बागपत तक के रास्ते में टोली का गाँवों में लोगों ने तहे-दिल से स्वागत किया और टोली के सन्देश के साथ सहमति जतायी। रास्ते भर अभियान दस्ते के भोजन और रुकने का प्रबन्ध गाँवों की जनता ने किया। बागपत में भी सफाई कर्मचारियों के मुहल्ले में अभियान का हार्दिक स्वागत किया गया। अगले दिन सुबह टोली बागपत के वन्दना चौक पर पहुँची जहाँ अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अमर शहीद अशफाक़ उल्ला की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। वहाँ टोली ने एक बड़ी नुक्कड़ सभा का आयोजन किया और शहीदों की मूर्तियों पर माल्यार्पण करके श्रृद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद टोली बड़ौत के लिए रवाना हुई।

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रास्ते में पड़ने वाले गौरीपुर गाँव में अभियान टोली ने दो सभाएँ आयोजित की। इसके बाद सरूरपुर समेत कुछ और गाँवों में सभाएँ आयोजित करने के बाद शाम 6 बजे के करीब टोली बड़ौत पहुँची। वहाँ नौजवान भारत सभा की टोली ने उसका स्वागत किया और रात का पड़ाव बड़ौत के प्रसिद्ध जाट कॉलेज में हुआ। अगली सुबह टोली बड़ौत के रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और बाज़ारों में सभाएँ करने के बाद दिल्ली की ओर वापस बढ़ी। पहले दिन ही करीब 45 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए टोली दिल्ली से करीब 20 किलोमीटर पहले मसूरी नामक गाँव में रुकी। इससे मावी कलाँ समेत कुछ अन्य गाँवों में भी शहीदों के सन्देश और एक नई आज़ादी की लड़ाई की चुनौती को पहुँचाया गया। 26 मई की सुबह करीब 9 बजे अभियान टोली दिल्ली पहुँची और करावलनगर के विभिन्न क्षेत्रों में सभाएँ करते हुए नौजवान भारत सभा के कार्यालय पर अभियान का समापन हुआ।

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अभियान टोली के संयोजक अभिनव ने बताया कि जहाँ पर भी अभियान टोली पहुँची लोगों ने हर्ष-मिश्रित आश्चर्य के साथ स्वागत किया। आज़ादी के 63 वर्ष बीतने के बाद आज देश की 80 फीसदी ग़रीब आबादी महँगाई, ग़रीबी, भुखमरी, कुपोषण और बेरोज़गारी के चक्के तले पिस रही है। देश की 77 फीसदी आबादी 20 रुपया प्रतिदिन या उससे कम आमदनी पर गुज़ारा करती है। देश के 46 प्रतिशत बच्चे और 50 फीसदी महिलाएँ कुपोषण व अरक्तता का शिकार हैं। 27 करोड़ लोग देश में बेरोज़गार घूम रहे है। 1997 से लेकर 2010 तक करीब सवा दो लाख ग़रीब और मँझोले किसानों ने कर्ज तले दबकर आत्महत्या कर ली है और न जाने कितने अपनी जगह-ज़मीन से उजड़कर सड़कों पर मुफलिसी की जिन्दगी बिताने को मजबूर है। करीब 18 करोड़ लोग बेघर है और करीब इतने ही झुग्गियों में रहने का मजबूर हैं। वहीं दूसरी तरफ ऊपर की 15 फीसदी आबादी के लिए देश के विकास का हर फल मौजूद है। आधुनिक सुख-सुविधा के सामानों से लेकर कार, घर, बैंक बैलेंस और करोड़ों की सम्पदा उनके पास है। कारपोरेट घरानों, धनी किसानों, नेताओं और नौकरशाहों और कमीशनखोरों के वर्गों के लिए सरकार हर प्रकार की नीति बनाती है और उनका हित साधती है। छह दशकों की आज़ादी में साबित हो चुका है कि यह व्यवस्था पूँजीपतियों की प्रबन्धन समिति के रूप में काम करती है। उनके आर्थिक और सामाजिक हितों के अनुसार ही हर योजना और नीति बनाई जाती है। जनता का उपयोग हर पाँच वर्ष पर अरबों रुपये ख़र्च करके चुनावों की महानौटंकी के जरिये वोट लेने के लिए किया जाता है। वोट लेकर जनता में यह भ्रम पैदा किया जाता है कि यह सरकार उनकी चुनी हुई सरकार है। लेकिन जब कोई विकल्प ही नहीं है तो चुनाव कैसा? पूँजीवादी चुनाव महज़ एक धोखा है। इसमें जिसके पास पूँजीपतियों का समर्थन है और गुण्डे-भ्रष्टाचारियों का सहयोग वही जीतता है। सभी चुनावी पार्टियाँ पूँजीपतियों का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनमें झगड़ा सिर्फ इसी बात का होता है कि अगले पाँच वर्षों तक देश की आम मेहनतकश जनता पर पूँजीपतियों की तानाशाही को लागू करने का काम कौन करेगा। सेना, पुलिस से लेकर नौकरशाही तक पूरी राजसत्ता पूँजीपतियों के हितों की रक्षा और जनता का कुचलने का उपकरण हैं। इस राजसत्ता का चरित्र की पूँजीवादी है। यह मज़दूरों और ग़रीब किसानों के किसी भी हित की परवाह नहीं करती। कोई विकल्प नहीं होने के कारण जनता का एक हिस्सा चुनावों में कभी किसी निशान पर तो कभी किसी और निशान पर ठप्पा लगा आती है। लेकिन 50 फीसदी लोग तो वोट डालने ही नहीं जाते। उनका इस व्यवस्था पर से विश्वास उठ चुका है। जो वोट डालते भी हैं वे किसी भरोसे के कारण नहीं डालते। इसके पीछे कई कारक काम करते हैं। कभी जाति तो कभी धर्म के कारण बहुत से वोट पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त, बड़े पैमाने पर वोटों की ख़रीद-फरोख़्त होती है। इन चुनावों की नौटंकी से सभी वाकिफ हैं।

इसलिए आज ज़रूरत इस बात की है कि हम चुनावों में नागनाथ या साँपनाथ का चुनाव करने की बजाय इसी पूरी पूँजीवादी व्यवस्था, समाज और राजसत्ता का विकल्प तैयार करें। यह विकल्प इंक़लाब ही हो सकता है; एक क्रान्तिकारी विचारधारा की रोशनी और मार्गदर्शन में, एक क्रान्तिकारी पार्टी के नेतृत्व में पूरे देश में एक आमूलगामी क्रान्ति। यही एकमात्र रास्ता है। इसके अतिरिक्त, कोई विकल्प नहीं है। 63 वर्ष बहुत होते हैं। अब जाग जाने का समय है। यही इस क्रान्तिकारी युवा जनजागृति यात्रा का सन्देश था।

हर जगह लोगों ने नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता और दिशा छात्र संगठन से जुड़ने में दिलचस्पी दिखाई। मुहिम का नागरिकों, नौजवानों, मज़दूरों, छात्रों और महिलाओं ने जमकर सहयोग किया और मुहिम एक साथ अपनी एकजुटता दिखाई।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2010

 

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