वीरेन डंगवाल की कविता का रास्ता देखने में सहज, लेकिन वास्तव में काफी बीहड़ था। उदात्तता और सूक्ष्मतग्राही संवेदना उनके सहज गुण हैं। ये कविताएँ भारतीय जीवन के दुःसह पीड़ादायी संक्रमण के दशकों की आशा-निराशा, संघर्ष-पराजय और स्वप्नों के ऐतिहासिक दस्तावेज के समान हैं। वीरेन ने अपने ढंग से निराला, नागार्जुन, शमशेर और त्रिलोचन जैसे अग्रज कवियों की परम्परा को आगे विस्तार दिया और साथ ही नाज़िम हिकमत की सर्जनात्मकता से भी काफी कुछ अपनाया, जो उनके प्रिय कवि थे। जीवन-काल में उनके तीन संकलन प्रकाशित हुए – ‘इसी दुनिया में’ (1991), ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ (2002) और ‘स्याहीताल’ (2010)। उनकी ढेरों कविताएँ और ढेर सारा गद्य अभी भी अप्रकाशित है। नाज़िम हिकमत की कुछ कविताओं का उनके द्वारा किया गया अनुवाद ‘पहल-पुस्तिका’ के रूप में प्रकाशित हुआ था, लेकिन बहुतेरी अभी भी अप्रकाशित हैं। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बेर्टोल्ट ब्रेष्ट, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रोजेविच आदि कई विश्वविख्यात कवियों की कविताओं के भी बेहतरीन अनुवाद किये थे। उनकी कविताएँ उत्तरवर्ती पीढ़ियों को ज़िन्दादिली के साथ जीने, ज़िद के साथ लड़ने और उम्मीदों के साथ रचने के लिए हमेशा प्रेरित और शिक्षित करती रहेंगी। पाब्लो नेरूदा ने कहा थाः “कविता आदमी के भीतर से निकलती एक गहरी पुकार है।” वीरेन डंगवाल की कविताएँ ऐसी ही कविताएँ