सत्ताधारियों का आतंकवाद
शिशिर
हाल में ही लंदन में आतंकवादी हमले हुए जिसमें कई लोग मारे गए। इसके बाद आतंकवादियों की धरपकड़ करने के नाम पर लंदन पुलिस ने एक बेगुनाह ब्राज़ीली प्रवासी नौजवान ज्याँ चार्ल्स दि मेंज़ेस को मार दिया। यह नौजवान लंदन में इलेक्ट्रीशियन का काम करता था। 27 वर्षीय इस नौजवान को पुलिस ने दौड़ाया और उसे पकड़कर ज़मीन पर गिरा दिया। उस पर काबू पाने के बाद भी उसे गिरफ़्तार करने की बजाय उसपर प्वाइण्ट ब्लैंक रेंज से ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाईं जिससे वह फ़ौरन मर गया। अगले दिन लंदन के मेट्रोपालिटन पुलिस प्रमुख ने मीडिया को बताया कि मारा गया नौजवान बेगुनाह था। उसके अगले ही दिन पुलिस प्रमुख का यह बयान भी आया कि “आतंक के विरुद्ध युद्ध” में अभी और बेगुनाह भी मारे जा सकते हैं। यह कथन काफ़ी कुछ बताता है। इसके कुछ दिनों बाद ही कश्मीर में सुरक्षा बलों ने तीन बेगुनाह किशोरों को मार दिया। बाद में उसपर अफ़सोस जाहिर कर दिया गया।
पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा दुनिया भर में इस तरह की हत्याओं को आतंकवाद के विरुद्ध मुहिम के ‘नेसेसरी ईविल’ के रूप में पेश करके उन्हें मान्य बनाया जा रहा है। दुनिया भर में जो आतंकवादी हमले हो रहे हैं वे शासक वर्गों को दमन और अपना आतंक स्थापित करने का एक बहाना मुहैया करा रहे हैं। बुश और ब्लेयर आंतकवाद के विरुद्ध युद्ध का कितना भी ढिंढोरा पीट लें यह बात भूली नहीं जा सकती कि यह आतंकवाद दरअसल विश्व साम्राज्यवाद की ही उपज है। साम्राज्यवादी शोषण और लूट के ख़िलाफ़ इस समय कहीं भी कारगर और संगठित प्रतिरोध आंदोलन प्रकट नहीं हो रहे हैं। हर जगह जनता की ताकतें बिखरी हुई हैं। दूसरी तरफ़ साम्राज्यवाद उन्हें एक कोने में धकेले जा रहा है। तेल और प्राकृतिक गैस के लिए इराक और अफ़गानिस्तान को अमेरिका ने तबाह कर दिया। इराक पर अमेरिका का साम्राज्यवादी कब्ज़ा अभी भी बरकरार है और अफ़गानिस्तान में उसकी कठपुतली सरकार बैठी हुई है। फ़िलिस्तीन में इज़राइल द्वारा कत्लेआम जारी है। इसके अलावा, अमेरिका ने अपने विरोधी देशों की लोकतांत्रिक सरकार के ख़िलाफ़ एक दौर में जिस इस्लामी कट्टरपंथी आतंकवाद को पैसे और हथियारों से बढ़ावा दिया था, वह भस्मासुर साबित हो रहा है। ऐसे में दमित जनता के नौजवानों का एक हिस्सा अनिवार्य रूप से निराशा और असहायता के कारण आतंकवाद की ओर आकर्षित होता है।
पूरे विश्व में आज आतंकवाद की वजह यही है। अगर जनता साम्राज्यवादी और पूँजीवादी दमन और लूट के ख़िलाफ़ संगठित होकर उसे नेस्तनाबूद करने के प्रयासों में नहीं लगती, तब तक जनता की निराशा और सहायता के फ़लस्वरूप आतंकवाद पनपता रहेगा। जिस आतंकवाद को ख़त्म करने की बात आज दुनिया भर के साम्राज्यवादी कर रहे हैं वह बमों, पिस्तौलों और आतंक के ख़िलाफ़ सत्ताधारियों का आतंक खड़ा करके ख़त्म नहीं हो सकता। इससे तो वह और बढ़ेगा। अमेरिका ने जब से ‘वॉर ऑन टेरर’ शुरू किया है तब से आतंकवाद और आतंकवादी हमले और बढ़ गए हैं। अमेरिका की इराक में ऐसी-की-तैसी हो रही है। हज़ारों अमेरिकी सैनिक इराक़ में मारे जा चुके हैं।
आतंकवाद का ख़ात्मा विश्व साम्राज्यवाद के ख़ात्मे के साथ ही होगा क्योंकि वही आतंकवाद के पनपने की ज़मीन तैयार करता है। जब तक जनता की ऊर्जा क्रान्तिकारी और परिवर्तनकारी दिशा में नहीं मोड़ी जाती, तब तक आतंकवाद पनपता रहेगा और उसके ख़ात्मे के नाम पर यह व्यवस्था बेगुनाहों के ख़ून से अपने हाथ रंगती रहेगी।
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2005
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