दिल्ली विश्वविद्यालय में पुलिस दमन के विरोध में छात्रों का जोरदार आन्दोलन
8 सितम्बर की रात दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैम्पस में, जिसे जनवाद और जनवादी संस्कृति का गढ़ माना जाता है, एक ऐसी घटना हुई जिसने सभी आजादीपसन्द लोगों को चौंका दिया। रात को किसी एण्टी–टेरर ऑपरेशन के अन्दाज में पुलिस मानसरोवर छात्रावास में, जो कि स्नातकोत्तर छात्रों के लिए बनाया गया है, घुसी और पूरे छात्रावास में अन्धेरा करके कमरों में घुस–घुसकर छात्रों पर बेतहाशा लाठियाँ बरसायीं और उन्हें बेइज़्ज़त किया। इस हैवानियत से भी मन नहीं भरा तो एसएचओ के आदेश पर तमाम छात्रों को जबरन थाने ले जाकर मुर्गा बनवाया गया। ज्ञातव्य हो कि इन छात्रों में से तमाम अनियमित और अस्थायी विश्वविद्यालय शिक्षकों की भूमिका में आ चुके शोधार्थी भी थे। कहा जा रहा था की पुलिस ने यह जघन्य कार्रवाई दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर के इशारे पर की। साथ ही इस पूरी घटना के दौरान प्राक्टर गुरमीत सिंह और एसएचओ पठानिया छात्रावास के गेट पर खड़े होकर अपने निर्देशन में यह काम करवा रहे थे। इससे पहले के घटनाक्रम में चुनाव की समाप्ति के बाद कुछ चुनावबाज पार्टियों के गुण्डा तत्वों ने, जो विधि संकाय में अपनी विजय के बाद मानसरोवर छात्रावास में आकर हंगामा मचा रहे थे, छात्रावास के कुछ लड़कों को पीटा और उनके साथ बदसलूकी की। इस पर छात्रावास के लड़कों और इन असामाजिक तत्वों के बीच झड़प हुई। इसके बाद छात्रावास के रुष्ट छात्रों ने पास से गुजरने वाली रिंग रोड को जाम कर दिया और पुलिस से इन गुण्डा तत्वों पर कार्रवाई की माँग की। इसके जवाब में पुलिस ने उनपर लाठी चार्ज शुरू कर दिया। इस पर छात्रों की भीड़ पीछे हटने लगी लेकिन पुलिस सारे क़ायदे–क़ानून ताक पर रखकर पीछे हटती भीड़ (रिट्रीटिंग मॉब) पर लाठी चार्ज करती रही। और फिर हॉस्टल में अन्दर घुसकर पुलिस वालों ने प्रॉक्टर और एसएचओ के इशारे पर लड़कों को दौड़ा–दौड़ा कर बेरहमी से पीटा और फिर उन्हें थाने ले जाकर तरह–तरह से अपमानित किया। इसके जवाब में छात्रों ने छात्रावास के बाहर धरना देना शुरू किया और कुछ छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर भी बैठ गये। इस घटना की ख़बर मिलते ही सारे चुनावबाज मदारी छात्र संगठन अपनी रोटियाँ सेंकने पहुँचे। लेकिन उन्हें शायद इसमें बहुत लाभ नहीं दिखा इसलिए एक–दो रैलियों में आकर या निन्दा वक्तव्य जारी करके उन्होंने खानापूर्ति कर ली। कुछ बड़े चुनावी संगठन डबल–डीलिंग का काम करके मामले को रफा–दफा करवाने के काम में लग गए।
11 सितम्बर को मानसरोवर छात्रावास से कुलपति कार्यालय तक एक विशाल रैली निकाली गयी। इस रैली में 700 से 800 छात्र तक आए थे और कई छात्र संगठन इसमें शामिल हुए थे। रैली के बाद कुलपति कार्यालय पर छात्रों ने जोरदार नारेबाजी की और विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद कुलपति एक प्रतिनिधि मण्डल से मिलने को तैयार हो गये। लेकिन प्रॉक्टर को बर्ख़ास्त किये जाने और उनके ख़िलाफ जाँच बैठाने और एसएचओ को निलम्बित करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की तरफ से आधिकारिक अनुशंसा देने की माँगों पर कोई समाधान नहीं निकल सका। आन्दोलन जारी रहा लेकिन एक–एक करके सभी चुनावी और तथाकथित वामपन्थी छात्र संगठनों की इसमें दिलचस्पी ख़त्म होती गयी। दिशा छात्र संगठन लगातार इन छात्रों के संघर्ष में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलता रहा। कई बार दलालों की साजिशों के कारण इस आन्दोलन को टूटने से भी दिशा छात्र संगठन के हस्तक्षेप ने बचाया। 15 तारीख़ को भूख हड़ताल पर बैठे एक छात्र की हालत नाजुक हो गयी और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इससे विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव काफी बढ़ने लगा। मीडिया भी धीरे–धीरे इस मामले को कवर करने लगा। प्रशासन ने बड़े चुनावी संगठनों के नेताओं और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पदाधिकारियों की मदद से समझौते के रास्ते की तलाश करना शुरू कर दिया। नेताओं का आना–जाना 15 सितम्बर से काफी अधिक बढ़ गया। ये लोग छात्रों को डराने लगे कि कैरियर ख़राब हो जाएगाय पुलिस केस तुम सब पर लगा हुआ है; भूख हड़ताल में कोई मर गया तो क्या होगा, वगैरह।
अन्तत: 16 सितम्बर को आंशिक विजय के साथ इस आन्दोलन की समाप्ति हो गयी। प्रॉक्टर गुरमीत सिंह को आधिकारिक छुट्टी पर भेज दिया गया और आदेश दिया गया कि उनके ख़िलाफ जाँच पूरी होने तक वह ऑफिस वापस नहीं आ सकते; पुलिस के उपायुक्त ने एसएचओ की हरकत के लिए आधिकारिक तौर पर माफी माँगी और भविष्य में ऐसी घटना न होने का वायदा किया।
लेकिन इस आंशिक विजय के बावजूद अच्छी बात यह रही कि सारे चुनावबाज इस क्रम में पूरी तरह बेनकाब हो गये और आम छात्रों के बीच उनकी काफी लानत–मलामत हुई। इस आन्दोलन की विजय इस बात में निहित नहीं है कि सारी माँगें पूरी हुईं या नहीं हुईं। इसके विजय की असली कसौटी यह थी कि- (1) कोई भी पुलिस अधिकारी अब ऐसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा; (2) छात्रों की निगाह में दलाल चुनावबाज छात्र संगठनों का चरित्र बिल्कुल साफ हो गया। दिशा छात्र संगठन को मानसरोवर के छात्रों का पूरा समर्थन मिला।
आह्वान कैम्पस टाइम्स, जुलाई-सितम्बर 2006
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