खट्टर सरकार का एक साल-जनता का हाल बेहाल
अजय
हरियाणा में खट्टर सरकार एक साल पूरे होने का ढोल बजा रही है। अखबारों, टी.वी. चैनलों पर सरकार अपने झूठे कसीदे पढ़ रही है जैसे ‘बने घणे काम इबे एकै साल, कथनी-करनी एकै ढाल’, ‘जुल्म रहा न भ्रष्टाचार, कथनी करनी एकै सार’, ‘एक वर्ष-सर्वत्र हर्ष’। लेकिन सारे ढोल की पोल तब खुल जाती है जब उन्हीं अख़बारों, टी.वी. चैनलों पर हरियाणा में बढ़ती महँगाई, बिजली दरों में बढ़ोत्तरी, बदहाल ग़रीब किसान व दलित और स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार, प्रदेश में पसरी भयंकर बेरोज़गारी, नौकरियों में की जा रही छँटनी आदि-आदि मुद्दों से जुड़ी ख़बरें होती हैं और इन समस्याओं के खि़लाफ़ जनता सड़कों पर सरकार के विरोध में धरने-प्रदर्शन करती हुई भी नज़र आती है। यूँ तो खट्टर सरकार 52 हफ्तों में 52 योजनाओं की घोषणा का गुणगान कर रही है लेकिन ज़मीनी स्तर पर ये योजनाएँ जनता की असल ज़िन्दगी से कोसों दूर हैं और सिर्फ़ बैनरों, होर्डिंगों की ही शोभा बढ़ा रही हैं। अगर भाजपा के चुनावी घोषणापत्र पर नज़र डालें तो पता चलता है कि खट्टर सरकार ने जनता से 150 से ज़्यादा वायदे किये हैं लेकिन आज ये वायदे भी केन्द्र की मोदी सरकार के वायदों की तरह जुमले साबित हो रहे हैं। तो आइये एक नज़र से शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य ज़रूरी मुआमलात की जाँच-पड़ताल करते हैं-कि खट्टर सरकार की कथनी-करनी में कितना फर्क है! और इसके ढोल की पोल क्या है?
सबसे पहले हम हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति का जायज़ा लेते हैं। यूँ तो हुड्डा सरकार के दौरान भी शिक्षा का स्तर दयनीय था लेकिन खट्टर एक वर्ष में शिक्षा के स्तर में बदलाव के जो दावे कर रहे हैं वे सारे असल में हवा-हवाई ही हैं। पिछले एक वर्ष में खट्टर सरकार शिक्षा के बुनियादी ढाँचे में कोई बड़ा बदलाव नहीं कर पायी है और न ही इसका ऐसा करने का कोई इरादा ही है बल्कि शिक्षा के भगवाकरण के संघ के एजेण्डे को तेज़ी से लागू कर रही है। पहले हम सरकारी स्कूलों के ज़मीनी स्तर के हालातों पर नज़र डालकर शिक्षा के ढाँचे को देख लेते हैं।
शिक्षा की स्थिति
मौजूदा समय में हरियाणा के सरकारी स्कूलों में 40 हज़ार अध्यापकों और सहायक-कर्मियों के पद खाली हैं। कैग ने 2014-15 की अपनी रिपोर्ट में 91 स्कूलों का दौरा कर पाया था कि स्कूल में प्रधानाचार्यों, मुख्य अध्यापकों व लेक्चरारों के 37,236 मंजूर पदों की जगह केवल 10,979 पदों पर ही नियुक्तियाँ हुई हैं। साथ ही नियुक्ति पत्र हासिल 9,455 जेबीटी अध्यापकों को सरकारी तंत्र में लटकाकर बेरोज़गारों की लाइन में खड़ा कर रखा है। चुनाव के समय शिक्षामंत्री रामविलास शर्मा अतिथि अध्यापकों को एक कलम से पक्का करने के दमगजे भरते घूम रहे थे और भाजपा के ‘लैटर हैड’ पर उन्हें लिख-लिख कर पक्का करने के “वचन” दिये जा रहे थे किन्तु सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने ऐसा रंग बदला कि गिरगिट भी शर्म से पानी-पानी हो जायें। 4,000 से ज़्यादा अतिथि अध्यापकों को अतिरिक्त यानी ‘सरप्लस’ बताकर बाहर कर दिया गया। इस मुद्दे पर जब अतिथि अध्यापक विरोध स्वरूप सड़कों पर उतरे तो उनका स्वागत लाठी-डण्डों, पानी की बौछारों और आँसू गैस के गोलों से किया गया इतना ही नहीं ‘बेटी बचाने’ की बात करने वाली भाजपा के राज में यहाँ अध्यापिकाओं को भी नहीं बख्शा गया। “डिजिटल इण्डिया” का नारा देने वाली हरियाणा सरकार ने 2,800 कम्प्यूटर अध्यापकों और 2,300 लैब सहायकों का अनुबन्ध रद्द करके उन्हें घर बैठा दिया। नयी शिक्षा नीति की योजना में भी सरकार ने 350 स्कूलों को बन्द करने का फैसला ले लिया है। साफ़ है – ये फैसला प्राईवेट शिक्षा माफ़िया का धन्धा बढ़ाने के लिए है। आगे खट्टर सरकार के “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान का असली चेहरा नर्सिंग छात्राओं पर बर्बर पुलिसिया दमन से सामने आ गया। मुख्यमंत्री सिटी करनाल में 1,200 नर्सिंग छात्राओं पर हरियाणा पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया। ये नर्सिग छात्राएँ एएनएम अैर जीएनएम की प्रथम वर्ष की परिक्षार्थी थीं जिनका सात माह से प्रथम वर्ष की परीक्षाओं का परिणाम ही घोषित नहीं किया गया था। जब इन्हानें आन्दोलन की चेतावनी दी तो खट्टर सरकार ने तुगलकी फ़रमान जारी कर प्रथम वर्ष की परीक्षाओं को ही रद्द कर दिया। इस पर जब उक्त छात्राएँ विरोध स्वरूप आन्दोलनरत हुई तो सरकार ने ‘बेटी पढ़ाने और बेटी बचाने’ वाला नकाब उतारकर एक तरफ रख दिया और अपनी “वीर-पराक्रमी” पुलिस को इन्हें ‘सबक सिखाने’ का आदेश दे दिया।
कुछ जिलों के सरकारी स्कूलों के आँकड़े देखकर शिक्षा की बदतर हालत की तस्वीर और भी साफ़ हो जाती है। मुख्यमंत्री सिटी करनाल में 150 स्कूलों में शौचालय तक नहीं, यमुनानगर में सामाजिक विज्ञान, गणित और विज्ञान के 400 अध्यापकों के पद खाली हैं और तो और जिले के शेरगढ़ गाँव के प्राथमिक स्कूल में एक ही कमरा है जहाँ 60 बच्चे बैठते हैं, फ़तेहाबाद जिले में 1,380 शिक्षकों की कमी है व 15 स्कूलों के भवन एकदम जर्जर हालत में है। कैथल में 10 स्कूलों के भवनों की हालत खस्ता है तथा ये स्कूल भी एक-एक कमरे में चल रहे हैं। यहाँ लगभग 1,100 शिक्षकों के पद खाली हैं। इतने बदतर हालातों के बाद भी खट्टर सरकार बड़े-बड़े विज्ञापनों के ज़रिये सच्चाई ढँकना चाहती है।
जिला स्वीकृत पद वर्तमान पद
भिवानी 54 24
पनीपत 42 28
हिसार 50 36
फ़तेहाबाद 45 22
भवनों और शिक्षकों की कमी के बाद अब हम शिक्षा की गुणवत्ता पर नज़र डालते हैं। इस साल 10वीं कक्षा के परिणामों में कवेल 41 फीसदी बच्चे ही पास हुए हैं और यह सरकारी व प्राईवेट दोनों तरह के स्कूलों का परीक्षा परिणाम है। इसकी एक मुख्य वजह है खट्टर सरकार शिक्षकों को अध्यापन से ज़्यादा ‘स्वच्छता अभियान’, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ व योग से लेकर वोट बनाने में उलझाये रखती है। वैसे भी खट्टर सरकार सही मायने में शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता में बदलाव लाना चाहती तो शिक्षा, खेल और कला पर पूरे बजट का सिर्फ 1.7 फीसदी हिस्सा ही खर्च नहीं करती। एक ओर शिक्षा के बजट में कोई वृद्धि नहीं की गयी वहीं दूसरी ओर नौटंकीबाज रामदेव के योग दिवस के कार्यक्रम और योगपीठ स्थापन दिवस पर करोड़ों रुपये स्वाहा कर दिये गये।
असल में खट्टर सरकार भी तमाम सरकारों की तरह शिक्षा को बिकाऊ माल बनाने में जुटी है। प्रदेश में निजी स्कूल माफ़ियाओं को सभी प्रमुख पार्टियों का संरक्षण प्राप्त है तभी आज निजी स्कूल प्रबन्धक शिक्षा अधिकार कानून 134-ए के तहत गरीब परिवारों के बच्चों के दाखिले के खि़लाफ़ खड़े हैं। ये शिक्षा माफ़िया हाईकोर्ट के निर्देशों की खुल्लम-खुल्ला धज्जियाँ उड़ाते हैं और सरकार कान तक नहीं हिलाती। यही नहीं प्राईवेट शिक्षा माफ़िया प्रदेश में होने वाली प्रतियोगिताओं के लिए परीक्षा केन्द्र न देने की धमकियाँ दे रहे हैं और इस कानून को लागू करवाने में लगे कार्यकर्ताओं पर हमले भी करवाये जाते हैं लेकिन “सख़्त” और “ईमानदार” खट्टर सरकार उनकी जी-हुजूरी करने में जुटी हुई है। आज हरियाणा के 4,900 से अधिक प्राईवेट स्कूलों में 28 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इस हिसाब से 25 फ़ीसदी सीटों की संख्या लगभग 7 लाख बनती है लेकिन इस बार केवल 80 हजार आवेदनों में से सिर्फ़ 25 हज़ार बच्चों के दाखिले हुए हैं। असल में तो 25 प्रतिशत ग़रीब परिवारों के बच्चों के दाखिले होने से भी शिक्षा की बुनियादी समस्या हल नहीं होने वाली है लेकिन आज खट्टर सरकार के लिए ऐसे सुधारवादी कानून को लागू करना भी मुमकिन नहीं है। तो यहाँ हरियाणा सरकार के नारे ‘कथनी करणी एकै ढाळ’ की असलियत हम देख सकते हैं तथा पाते हैं कि सरकार की कथनी और करनी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है।
रोज़गार की स्थिति
अब आते हैं रोज़गार के मसले पर। खट्टर सरकार ने नये रोज़गार देना तो दूर उल्टे आशा वर्कर, रोडवेज़, बिजली विभाग आदि सरकारी विभागों में निजीकरण-ठेकाकरण की नीतियों के तहत छँटनी की तैयारी कर दी है। कर्मचारियों के रिटायरमेण्ट की उम्र 60 से 58 कर दी। सरकार ने अपने बजट में मनरेगा के तहत खर्च होने वाली राशि में भारी कटौती की है जो कि ग्रामीण मज़दूर आबादी के हितों पर सीधा हमला है। चुनाव के समय भाजपा द्वारा 12वीं पास नौजवानों को 6,000 रुपये और स्तानक नौजवानों को 9,000 रुपये बेरोज़गारी भात्ता देने का वादा किया गया था। लेकिन अब खट्टर सरकार की कथनी-करनी में ज़मीन-असमान का अन्तर आ चुका है। पिछले एक वर्ष में सरकार ने बेरोज़गारी भत्ते देने की कोई योजना नहीं बनायी जबकि हरियाणा में पढ़े-लिखे बेरोज़गार नौजवानों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। मौजूदा समय में रोज़गार कार्यालय में 8 लाख नौजवानों के नाम दर्ज हैं। हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि असल में बेरोज़गारों की संख्या इससे कहीं अधिक है। नौजवानों की अच्छी-खासी आबादी रोज़गार दफ्तर में अपना नाम दर्ज ही नहीं कराती है क्योंकि उसे अहसास है कि इससे उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला है। कौशल विकास योजना में भारी नौजवान आबादी को प्रशिक्षु बनाकर उसे सस्ते श्रम के रूप में देशी-विदेशी पूँजीपतियों के सामने परोसा जा रहा है। मोदी सरकार ‘अपरेण्टिस एक्ट 1961’ में बदलाव करके इसे प्रबन्धन के हितानुरूप ढाल रही है। असल में इस कानून के तहत काम करने वाली नौजवान आबादी को न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलेगी, न स्थायी होने की सुविधा। खट्टर सरकार भी अधिक से अधिक विदेशी पूँजी निवेश को ललचाने के लिए नौजवान आबादी को चारे की तरह इस्तेमाल करना चाहती है।
शिक्षा, रोज़गार के बाद अब देखते हैं कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में खट्टर सरकार ने कौन से गुल खिलाये हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं के हालात भी बद से बदतर होते जा रहे हैं। एक तरफ गुड़गाँव में मेन्दाता और फोर्डिस जैसे पाँच सितारा अस्पताल हैं जहाँ पर खर्च इतना ज़्यादा होता है कि औसत हरियाणवी इलाज के बारे में सोच भी नहीं सकता तो दूसरी तरफ हैं जिलों और कस्बों के सरकारी अस्पताल जहाँ भले-चंगे व्यक्ति की भी बीमार होने की सम्भावना बनी रहती है, मरीजों का यहाँ क्या हाल होता होगा यह बताने की ज़रूरत नहीं है। जनता चिकित्सकों-केमिस्टों व दवा कम्पनियों के जाल में बुरी तरह से फंसी हुई है और तमाम पूर्व सरकारों की तरह भाजपा सरकार भी इस मौके पर आपराधिक और अक्षम्य चुप्पी साधे हुए है। जानबूझकर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति की जा रही है ताकि स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में लगा प्राईवेट माफ़िया उद्योग फल-फूल सके। हाथी के दिखाने के दाँत देखने हों तो स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के “छापों” को देखिये इनमें आपको जगह-जगह ये महाशय नौकरशाही के साथ सींग फँसाते नज़र आ सकते हैं लेकिन असल खाने के दाँत देखने के लिए अस्पतालों के हालात पर नज़र डालिये! यहाँ भी व्यवस्था के नाम पर वही ढाक के तीन पात हैं। पूरे हरियाणा में “विख्यात” रोतहक के ‘पीजीआई’ सरकारी अस्पताल की हालत पर ही नज़र डाल ली जाये तो पूरे हरियाणा में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ‘पीजीआई’ में रोज़ाना लगभग 5,500 मरीज़ों की ओपीडी तथा 1,700 मरीज़ों को दाखि़ल करने की व्यवस्था है। इतने मरीज़ों पर करीब 3,000 नर्स होनी चाहियें, लेकिन यहाँ सिर्फ़ 800 नर्स ही हैं। ‘ट्रॉमा सेण्टर’ और ‘रेडियोलॉजी’ विभाग में ‘अल्ट्रासाउण्ड’ और ‘सीटीस्कैन’ मशीनें खराब पड़ी हैं। ‘एनेस्थीसिया’ में ‘स्टाफ’ के अलावा ‘वेण्टिलेटरों’ की भी कमी है। प्रदेश के अन्य जिलों के सरकारी अस्पतालों की तस्वीर कम बुरी नहीं है। तालिका-1 बता रही है कि जिले के सरकारी अस्पताल डॉक्टरों व सहायक-कर्मियों की कमी से किस कदर जूझ रहे है – ख़ुद सरकार अपने द्वारा स्वीकृत पदों को ही नहीं भर पायी है। असल में जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश में हज़ारों डॉक्टरों व सहायक-कर्मियों की ज़रूरत है। ख़ुद मुख्यमंत्री के शहर करनाल का ‘ट्रामा सेण्टर’ केवल चार चिकित्सकों के भरोसे है। साल की शुरुआत में आये दो वेण्टिलेटर अभी तक नहीं चल सके हैं।
हरियाणा में साल 2015 के शुरुआती सात माह में ही 8,862 बच्चों ने दम तोड़ दिया। स्वास्थ्य विभाग के आँकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर रोज़ औसतन 42 नवजात बच्चों की मौत हो रही है। साथ ही अप्रैल से जुलाई में 159 गर्भवती महिलाओं की मौत हो चुकी है। इन बढ़ती मौतों का कारण ग़रीबी तो है ही लेकिन महिला रोग विशेषज्ञों का न होना भी है। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली भी इसके पीछे प्रमुख कारण है। हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे देश में स्वास्थ्य के हालात बदतर हैं उसके बावजूद भी केन्द्र की मोदी सरकार ने स्वास्थ्य बजट में 20 करोड़ की कटौती कर दी है। खट्टर सरकार भी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की जगह रामदेव के योग संस्थान को विकसित करने पर ही रुपये खर्च कर रही है।
मज़दूरों और ग़रीब किसानों की बदहाली
देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर में लगे उद्योग-धन्धों के मामले में हरियाणा वाकई “नम्बर वन” पर है। गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के पूरे औद्योगिक क्षेत्र में दस लाख से ज़्यादा मज़दूर काम करते हैं। चौटाला-हुड्डा सरकार भी उद्योगपतियों के तलवे चाटने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती थीं लेकिन खट्टर इन दोनों सरकारों से भी दो चन्दे ऊपर है। तभी तो खट्टर सरकार राज्य के श्रम कानूनों को कमज़ोर करके पूँजीपतियों को मज़दूरों की मेहनत लूटने की खुली छूट देना चाहती है। साथ ही “औद्योगिक शान्ति” कायम करने के नाम पर मज़दूरों के लिए सरकार ने पुलिस-प्रशासन का आंतक-राज कायम कर रखा है। इस साल भी मारुति के ठेका मजदूरों और ब्रिजटाउन मज़दूरों के आन्दोलन पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया। गुड़गाँव में भी तमाम फैक्टरियों में प्रबन्धन हड़ताल के समय किराये के बाउंसरों से लेकर स्थानीय गुण्डों तक का इस्तेमाल करता है और पुलिस-प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी होती है। हर मज़दूर अपने जीवन के हालात से समझता है कि हुड्डा और खट्टर राज में मज़़दूरों के शोषण और दमन में कोई अन्तर नहीं आया है। चुनाव के समय भाजपा ने किसानों से एम.एस. स्वामीनाथन कमेटी की सिफ़ारिशें लागू करने और बिजली-पानी जैसी तमाम सुविधाएँ प्रदान करने का वायदा किया था लेकिन अब सरकार ने इन वायदों को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है। प्रदेश में पहली बार किसानों को कृषि खाद लेने के लिए लम्बी-लम्बी लाइनों में खड़े होकर पुलिस के डण्डे खाने पड़े। हालत ये थे कि प्रशासन द्वारा पुलिस थाने में कृषि-खाद का वितरण किया गया। साथ ही पूँजीवादी खेती के संकट और मौसम की मार ने ग़रीब किसान आबादी के उजड़ने की प्रक्रिया तेज़ कर दी है। मौसम की मार से बर्बाद हुई फसलों के मुआवज़े का भी गरीब और ज़रूरतमन्द किसान इन्तज़ार करते रहे जबकि दूसरी तरफ बड़े धनी किसान ‘कमीशन’ देकर मुआवजे़ की रकम ले उड़े और बहुत जगह किसानों को 10, 20 और 50-100 रुपये तक के चैक दिये गये। अभी हाल में सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,450 रुपये तय किया लेकिन सरकारी-अधिकारियों की मिलीभगत के बाद 1,450 मूल्य पर्ची के बाद 1,200 रुपये ही मिल पाये और जब किसानों से लगभग 90-95 प्रतिशत धान मिलों और व्यापारियों के द्वारा ख़रीद लिया गया तो धान के दाम दोगुने और तीन गुने तक बढ़ गये। तब तक किसानों के हाथ से चिड़िया फुर्र हो चुकी थी। इस तरह की धोखाधड़ी-जमाखोरी व कालाबाज़ारी करके व्यापारी और आढ़ती अपना उल्लू सीधा करते हैं, सस्ती खरीद के बावज़ूद भी बाजार में चीज़ों के दामों में कोई फर्क नहीं पड़ता। इसका ख़ामियाज़ा ग़रीब किसान आबादी को ही भुगतना पड़ा क्योंकि धनी किसान तो इतने साधनसम्पन्न होते हैं कि फसल को बाद तक यानी मूल्यवृद्धि तक अपने गोदाम में रख सकते हैं किन्तु ग़रीब किसान पर एक तरफ तो आढ़ती का दबाव होता है और दूसरी तरफ उसके पास रखने की ही स्थिति नहीं होती। स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने की रट लगाने वाली खट्टर सरकार के राज में खुलकर भ्रष्टाचार जारी है। अभी कुछ दिनों पहले हरियाणा की एक भाजपा नेत्री के पति द्वारा 18 करोड़ के सरकारी अनाज के घोटाले का मामला सामने आया था।
बढ़ती महँगाई पर खट्टर सरकार ने ‘एक चुप-सौ सुख’ की नीति अपना रखी है। जहाँ पहले ही प्याज़ और दाल की आसमान छूती कीमतें जनता की कमर तोड़ रहीं थीं अब बिजली के बिलों में 30 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक वृद्धि करके रही सही कसर भी पूरी कर दी गयी है। बिजली बिलों में वृद्धि का पूरा लाभ भी मोदी के चहेते अदानी की जेब में जाना है जिसका खुलासा एक आरटीआई कर रही है। इस आरटीआई के मुताबिक साल 2008 में दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम ने ‘अदानी पावर लि.’ के साथ 26 साल के लिए बिजली सप्लाई का करार किया था। करार के मुताबिक ‘अदानी पावर लि.’ पहले दो रुपए 94 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम को बिजली की आपूर्ति कर रहा था। लेकिन खट्टर ने 2015-16 में तीन रुपए 19 पैसे के प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली लेने का नया समझौता कर लिया। जिसमें हरियाणा की खट्टर सरकार ‘फ्यूल सरचार्ज’ के नाम से एक रुपए 69 पैसे की अतिरिक्ति वसूली जनता से कर रही है। खट्टर सरकार ने बिजली के दामों को बढ़ाकर जनता की जेब पर सरेआम डाकेजनी की है।
खट्टर सरकार के दौर में बढ़ती साम्प्रदायिकता और जातिगत हिंसा
यूँ तो पूरे देश में ही पिछले दो सालों में साम्प्रदायिक घटनाओं के मामले में तेज़ी आयी है। शासक वर्ग के लिए साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने की बड़ी वजह है लगातार जारी आर्थिक संकट के कारण जनलामबन्दी का ख़तरा। कहीं लोग मन्दी और महँगाई-बेरोजगारी के असली कारणों तक न पहुँच जायें इसलिए इन्हें धर्म के नाम पर बाँटा जा रहा है। भारत में ऐसी विघटनकारी शक्तियाँ आज़ादी के भी पहले से ही सक्रिय थी किन्तु हाल-फिलहाल ये पूर्ण बहुमत से सत्ता के गलियारों तक भी पहुँच गयीं हैं। तमाम बड़ी-बड़ी बातें करके, लम्बे-चौड़े वायदे करके सत्ता तक पहुँची भाजपा भी यह बात अच्छी तरह से जानती है कि वह किये गये वायदों को पूरा नहीं कर सकती इसीलिए अब जनता को बाँटा जा रहा है ताकि वह मन्दिर-मस्जिद और गाय-बैल के मुद्दों में ही उलझी रहे।
एक साल में ही केन्द्र से लेकर राज्यों तक में चुनावी वायदों की असलियत जनता के सामने आ रही है। न तो एक साल में काला धन आया न ही महँगाई कम हुई। खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के अनुसार काले धन का वायदा चुनावी जुलमा था। हरियाणा में भी साम्प्रदायिकता के कार्ड का खूब इस्तेमाल हो रहा है। अटाली, मेवात से लेकर हिसार में सुनियोजित तरीके से साम्प्रदायिक दंगे और तनाव का मौहाल पैदा किया गया। प्रदेश में संघ परिवार के नेटवर्क को फैलाने के लिए शासन-प्रशासन के तंत्र का खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा है। हुड्डा सरकार के समय में भी मिर्चपुर, गोहाना, भगाणा इत्यादि काण्डों के रूप में दलित-विरोधी घटनाएँ हुई थीं। इस तरह की घटनाएँ खट्टर राज में भी जारी हैं। इस साल सुनपेड़, गोहाना और युमनानगर में हुए बर्बर दलित विरोधी मामले बता रहे हैं कि भाजपा राज भी गरीब दलित-उत्पीड़न करने की खुली छूट देता है, बल्कि कहना चाहिए कि भाजपा अन्य चुनावी पार्टियों के मुकाबले इसमें कहीं आगे है। दूसरी ओर भाजपा सरकार का अल्पसंख्यक विरोधी रुख भी साफ़ है कुछ दिनों पहले खुद मुख्यमंत्री खट्टर ही बीफ खाने पर मुसलमानों को देश छोड़ने का तुग़लक़ी फ़रमान सुना रहे थे। असल में बीफ तो बहाना है जनता की एकता निशाना है ताकि ‘फूट डालो और राज करो’ की चाल के तहत जनता की जुझारू एकता कायम न हो सके।
संघ के लाडले खट्टर “शिक्षा का भगवाकरण” करके संघ परिवार के एजेण्डे को दूरगामी तौर पर लागू करने पर आमादा हैं ताकि शिक्षा और संस्कृति के माध्यम से युवा पीढ़ी के दिलो-दिमाग में साम्प्रदायिकता का ज़हर घोला जा सके। सरकार ने नयी शिक्षा नीति में संघ के प्रचारक रहे दीनानाथ बत्रा को नेतृत्वकारी जगह दी है जो खुलकर शिक्षा के भगवाकरण की वकालत कर रहे हैं। खट्टर सरकार दीनानाथ बत्रा की ‘तेजोमय भारत’ जैसी घोर अवैज्ञानिक, अतार्किक पुस्तक को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर रही है। दीनानाथ बत्रा की किताबों के बारे में कुछ प्रख्यात इतिहासकारों की राय भी जान लेते हैं। प्राचीन भारत पर काम करने वाली प्रख्यात इतिहासकार प्रो. रोमिला थापर ने दीनानाथ बत्रा कि पुस्तकों के बारे में कहा हैः “ये इतिहास नहीं, बल्कि फैंटेसी है” और मध्यकालीन भारत पर काम करने वाले ख्यातिप्राप्त इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब की राय में “विषय वस्तु इतनी बेतुकी है कि किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देना ज़रूरत से ज़्यादा महत्व देना है।”
असल में हरियाणा या पूरे देश में पूँजीवादी चुनावी राजनीति से जनता के हालात में कोई बुनियादी बदलाव सम्भव नहीं है। शिक्षा-स्वास्थ्य से लेकर महँगाई, बेरोज़गारी जैसी समस्याओं का समाधान इन तमाम चुनावबाज पार्टियों के पास नहीं है। हरियाणा में पूर्ण बहुमत से आई खट्टर सरकार जनता की पाई-पाई निचोड़ने का काम धर्म, राष्ट्रवाद और प्राचीन-संस्कृति की चादर ओढ़कर करती है। वैसे भी भाजपा और संघ परिवार की सारी देशभक्ति देशी-विदेशी पूँजीपतियों के लिए होती है तभी तो मज़दूरों के श्रम कानूनों को ख़त्म करने से लेकर गरीब किसानों की ज़मीनें छीनकर उन्हें पूँजीपतियों को सौंपने में भाजपा अव्वल है। बुनियादी बात ये है कि पूँजीवदी चुनावी राजनीति में चेहरे-मोहरे बदलने से जनता के हालात नहीं बदलने वाले हैं। चुनाव के खेल में चाहे कांग्रेस, भाजपा, इनेलो या अन्य कोई पार्टी सत्ता में आये उससे जनता की मुक्ति सम्भव नहीं। ऐसे वायदे करके जो कभी पूरे नहीं हुए और न ही होंगे सत्ता में आयी खट्टर सरकार भी पाँच साल तक जनता की छाती पर मूँग दलेगी और विकल्पहीनता के दौर में पाँच साल बाद दूसरा कोई छद्म विकल्प इसका स्थान ले लेगा। इसलिए जनता को ज़रूरत है कि वह समूची पूँजीवादी व्यवस्था और धनबल-बाहुबल पर टिके जनतन्त्र के विकल्प के बारे में सोचे।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्बर 2015-फरवरी 2016
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