राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना – आखिर गारण्टी किसकी और कैसे?
बेरोज़गारों की एक रिज़र्व आर्मी की पूँजीवाद को हमेशा ही आवश्यकता रहती है जो रोज़गारशुदा मज़दूरों की मोलभाव की क्षमता को कम करने के लिए पूँजीपतियों द्वारा इस्तेमाल की जाती है। अगर बेरोज़गार मज़दूर न हों और श्रम आपूर्ति श्रम की माँग के बिल्कुल बराबर हो, तो पूँजीपति वर्ग मज़दूरों की हर माँग को मानने के लिए विवश होगा। इसलिए पूँजीपति वर्ग तकनोलॉजी को उन्नत करके, मज़दूरों का श्रमकाल बढ़ाकर एक हिस्से को छाँटकर बेरोज़गारों की जमात में शामिल करता रहता है। लेकिन जब बेरोज़गारी एक सीमा से आगे बढ़ जाती है और सामाजिक अशान्ति का कारण बनने लगती है और सम्पत्तिवानों के कलेजे में भय व्यापने लगता है तो सरकार के दूरदर्शी पहरेदार कुछ ऐसी योजनाओं के लॉलीपॉप जनता को थमाकर उनके गुस्से पर ठण्डे पानी का छिड़काव करते हैं। यह व्यवस्था की रक्षा के लिए आवश्यक होता है कि कुछ ऐसे ‘चेक्स एण्ड बैलेंसेज़’ का तंत्र हो जो व्यवस्था की दूरगामी रक्षा का काम करता हो। जब पूँजीपति वर्ग मुनाफ़े की हवस में अन्धा होकर जनता को लूटने लगे और सड़कों पर धकेलने लगे तो कुछ कल्याणकारी नीतियाँ लागू कर दी जाती हैं। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार में ऐसे तमाम पहरेदार–चौकीदार बैठे हैं जो समझते हैं कि कब जनता को भरमाने के लिए कोई कल्याणकारी झुनझुना उनके हाथ में थमा देना है। रोज़गारी गारण्टी योजना, अन्त्योदय योजना आदि ऐसे ही कुछ कल्याणकारी झुनझुने हैं जिनसे होता तो कुछ भी नहीं है लेकिन शोर बहुत मचता है।