संगठित क्षेत्र में भी बेरोज़गारी में तीव्र वृद्धि
बेरोज़गारी का कारण उन्नत तकनीक नहीं है बल्कि वह उत्पादन प्रणाली व उत्पादन सम्बन्ध हैं जिनमें इन तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। बेरोज़गारी को तो वैसे ही बेहद कम किया जा सकता है अगर मज़दूरों से जानवरों की तरह काम लेना बन्द कर दिया जाय। मिसाल के तौर पर, भारत में मज़दूरों को आज 10 से 14 घण्टे तक काम करना पड़ता है। उन्नत तकनीकों को बढ़ाकर तो लागत में सापेक्षिक कटौती की ही जाती है लेकिन साथ ही मज़दूरों के श्रम काल को बढ़ाकर उसमें निरपेक्ष रूप से भी कटौती की जाती है। ये दोनों परिघटनाएँ पूँजीवादी व्यवस्था में साथ-साथ घटित होती हैं। जबकि होना तो यह चाहिए कि उन्नत तकनीकों का प्रयोग करके श्रमकाल को घटाया जाय और कामगारों के जीवन में भी मानसिक, सांस्कृतिक उत्पादन और मनोरंजन की गुंजाइश पैदा की जाय। लेकिन मुनाफ़े की हवस में पूँजीपति वर्ग स्वयं एक पशु में तब्दील हो चुका है। मज़दूर उसके लिए महज मशीन का एक विस्तार है, कोई इंसान नहीं, जिसे वह बेतहाशा निचोड़ता है। आज अगर मज़दूरों से 6 घण्टे ही काम लिया जाय तो भी रोज़गार के अवसरों में दो से ढाई गुना की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। लेकिन ऐसा इस पूँजीवादी व्यवस्था में असम्भव है। इसलिए बेहतर है विकल्प के बारे में सोचें।