फ़ै़ज़ अहमद फ़ैज़: उम्मीद का शायर
फै़ज को अवाम का गायक कहा जाय तो ठीक ही होगा। उनकी कविता में भारतीय उपमहाद्वीप से लेकर दुनिया के तमाम मुल्कों में बसे हुए बेसहारा लोगों, यतीमों की आवाज़ें दर्ज है, उनकी उम्मीदों ने जगह पायी है। अदीबों की दुनियां उसे मुसलसल जद्दोजहद करते शायर के रूप में जानती है। सियासी कारकूनों की निगाह में फै़ज के लफ्ज ‘खतरनाक लफ्ज’ है। अवाम के दिलों में सोई आग को हवा देने वाले लफ्ज है। बिलाशक यही वजह होगी जिसके एवज़ में फ़ैज़ की जिन्दगी का बेहतरीन दौर या तो सलाख़ों में बीता या निर्वासन में, पर हज़ारहों नाउम्मीदी भरे आलम के बावजूद उनकी कविता में उम्मीद की चिनगियाँ कभी बुझी नहीं, उनकी मुहब्बत कभी बूढ़ी नहीं हुई।