“आधुनिक मनुष्य का बढ़ता सर्वहाराकरण और जनसमुदायों का बढ़ता गठन एक ही प्रक्रिया के दो पहलू हैं। फासीवाद नव-गठित सर्वहारा जनसमुदायों को उस सम्पत्ति संरचना को छेड़े बग़ैर संगठित करना चाहता है जिसे जनसमुदाय ख़त्म करने के लिए जूझते हैं। फासीवाद इन लोगों को उनके अधिकार देने में अपना निर्वाण नहीं देखता, बल्कि उन्हें अपने आपको अभिव्यक्त करने का एक अवसर देने में अपना निर्वाण देखता है। जनसमुदाय के पास सम्पत्ति सम्बन्धों को बदल डालने का अधिकार है; फासीवाद सम्पत्ति की रक्षा करते हुए उन्हें अभिव्यक्ति देने का प्रयास करता है। फासीवाद की तार्किक परिणति होता है राजनीतिक जीवन में सौन्दर्यशास्त्र का प्रवेश। जनसमुदाय के विरुद्ध अतिक्रमण, जिसे फासीवाद अपने फ्यूहरर कल्ट के जरिये, घुटनों के बल ले आता है, का समानान्तर एक ऐसे उपकरण के विरुद्ध अतिक्रमण में होता है जो कि संस्कारगत मूल्यों के उत्पादन में लगाया गया होता है।”